अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
गुरुवार, 19 मई 2016
वरूणा गीत
मॉ वरूणा को समर्पित इस गीत की रचना प्रख्यात कवि पं० हरि राम द्विवेदी जी ने हमारी वरूणा अभियान के आग्रह पर वर्ष २००७ मे किया था।यह गीत वरूणा के महत्व के साथ काशी के संस्कृति को भी संप्रेषित करता है।
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