एकाएक एलबम मे यह पुरानी फोटो मिल गई. दिसंबर 2012 मे नगरीय स्वायत्तता पर एक सेमिनार मे पुणे जाना हुआ था. वहॉ से हम लोग 21 दिसंबर की शाम की फ्लाईट से पुणे से दिल्ली आये. साथ मे सहभागी शिक्षण केन्द्र के सुधीर भाई थे. फ्लाईट लेट होने के कारण हम दिल्ली रात के 11.30 पर पहुँचे. जबर्दस् गलन व कोहरा था. लखनऊ के लिये हमारी ऊड़ान अगले दिन सुबह 6.30 बजे थी. एअरपोर्ट से निकलते निकलते 12.15 बजे मध्यरात्रि हो गया. हम लोग टैक्सी लेकर महिपालपुर पहुँचे व बिना खाये पीये होटल मे सो गये. सुबह एअरपोर्ट पहुँचाने के लिये टैक्सी ड्राईवर शर्मा जी ने हामी भरा था फिर भी हमे डर था कि ठण्ड मे वह सुबह आ पायेगा या नही. बहरहाल शर्माजी बेचारे अलसुबह समय से आ गये और हम दोनो लोग बिना चाय नाश्ता के सुबह 5 बजे टर्मिनल3 पर हाजिर. अंदर घुस कर एक लंबी दूरी तय करने के बाद डोमेस्टिक लॉऊंज 52 पर पहुँचे. चाय नाश्ता वहीं किया गया. तो पता चला कि लखनऊ एअरपोर्ट पर जबर्दस्त कोहरा है इस लिये फ्लाईट देर से जायेगी और साहब जो देर होना शुरू हुआ तो हम लोगो की फ्लाईट दिल्ली से 1 बजे उड़ी. यह तस्वीर उसी इंतजार के क्षणों की है.
जब हम एअरपोर्ट की आरानकुर्सी पर अधलेटे सोच रहे थे कि "होइहि सोई जो राम रूचि राखा"
(बनारस, 23 जनवरी 2017, सोमवार)
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अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
सोमवार, 23 जनवरी 2017
सन 2012 दिसंबर 22 की कुहरे भरी सुबह और टी3 एअरपोर्ट नईदिल्ली : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 23 जनवरी 2017, सोमवार
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