बुधवार, 4 जून 2025

व्योमवार्ता/ गंगा दशहरा

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा हिन्दू‌ओं का एक प्रमुख त्यौहार है जो प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन मां गंगा नदी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। यह हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो गंगा नदी ही पूजा के लिये समर्पित है। इस शुभ अवसर पर हम भारतवासी गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति करते हुये उन्हें सम्मान और आदर देते है। मां गंगा के भक्त नदी के किनारे एकत्र होते हैं। गंगा नदी में स्नान करते हैं और पूर्ण पवित्रता एवं रीति रिवाज से उनका पूजन कर आशीर्वाद की कामना करते है। माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह त्यौहार गंगा को संराक्षत और सुरक्षित रखने के महत्व को भी दर्शाता है जो हिन्दू धर्म में अध्यात्मिक व सांस्कृतिक महत्व रखती है। सृष्टि के निर्माता ब्र‌ह्मा जी के कमंडल से राजा भगीरथ द्वारा देवी गंगा को धरती पर अवतरण दिवस को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक क‌थाओं के अनुसार पृथ्वी पर अवतार से पहले गंगा नदी स्वर्ग का हिस्सा थी। एक बार महाराज सगर ने अपने राजधानी अयोध्या में अश्वमेध यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने ईष्यावश यज्ञ के प्रतीक अश्व का अपहरण कर लिया और उसे ले जा कर समुंदर के किनारे महर्षि कपिल के आश्रम में बांध दिया। अश्व का गायब होना यज्ञ में विघ्न के समान था। इसे यद्य में विघ्न के साथ हो अपशकुन और आने वाले अनिष्ट के रूप में मानते हुये राजा सगर की समस्त प्रजा राजकुमार अंशुमान के नेतृत्व में हर कहीं यज्ञ के अश्व को दूढ़‌ने लगी। महर्षि कपिल के आश्रम पहुँचने पर लोगों ने देखा कि वहीं एक कोने में यज्ञ का अश्व बंधा हुआ है और आश्रम के यज्ञशाला में महर्षि कपिल अपने साधना में समाधिस्थ थे। अश्व को देखते ही दूढ़ रही प्रजा एवं सैनिक महर्षि कपिल को ही अश्व चुराने का आरोपी मानते हुये उन्हें चोर चोर चिल्लाने लगी जिससे महर्षि कपिल की समाधि दूर गई एवं उन्होने बिना सोचे समझे स्वयं पर आरोप लगाने वालों को अपने क्रोधाग्नि व श्राप से भस्म कर दिया। जब इस बात की जानकारी महाराजा सगर को हुई तो उन्होंने महर्षि कपिल से क्षमा मांगते हुये अपने भस्म हो चुके प्रजा एवं सैनिकों के मुक्ति का मार्ग पूछा। महर्षि कपिल ने उन्हें बताया कि यदि स्वर्ग से गंगा नदी धरती पर आ कर इस स्थान से प्रवाहित हो तो भस्म चिता बन चुके प्रजा और सैनिकों को मुक्ति मिल सकेगी। राजा सगर फिर उनके पुत्र राजा दिलीप ने गंगा को धरती पर बुलाने के लिये अथक तपस्था किया पर उन्हें सफलता नहीं मिली। दिलीप के पश्चात उनके पुत्र भगीरथ ने अपनी घोर तपस्या से ब्रहमा को प्रसन्न किया एवं उनसे वरदान के रूप में गंगा को पृथ्वी पर उतारने की मांग किया। ब्रह्मा जी ने भगीरथ को वरदान में गंगा को धरती पर भेजने का वरदान देते हुये कहा कि गंगा के वेग को धरती पर संभालने की क्षमता केवल शंकर भगवान के पास है। यदि वे तैयार हो तो गंगा धरती पर उतर सकती है। इसके पश्चात भगीरथ ने शंकर भगवान से तप कर के गंगा के वेग को धारण करने को कहा। जिसके परिणाम स्वरुप गंगा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन धरती पर अवतरित हुई। शिव जी जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की वादियों में कल कल निनाद करते हुवे मैदान को अपने जल से सिंचित करते हुये महर्षि कपिल के आश्रम में राजा सगर के सैनिकों एवं प्रजाओं को मुक्ति दिलाते हुये सागर में समाहित हो गई।
इस प्रकार महाराज भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण कर बड़े भाग्यशाली हुये। उन्होने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों युगों तक बहने वाली गंगा की अविरल धारा महाराज भगीरथ के कठोर तप एवं साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणिमात्र को जीवन-दान ही नहीं देती. मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में गंगा की महिमा गाई जाती है।
गंगा दशहरा के दिन गंगा जी में स्नान किया जाता है यदि कोई श्रद्धालु गंगातट तक नही पहुंच पाता तब वह अपने घर के पास ही किसी नदी या तालाब में श्रद्धापूर्वक गंगा मां का ध्यान करते हुये स्नान करते हैं। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी हस्त नक्षत्र में होने के कारण यह तिथि: फोर पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है। कहते हैं कि हस्त नक्षत्र में बुधवार के दिन गंगावतरण हुआ था। इसलिये यह तिथि अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। लाखो करोणों श्रद्धालु दूर दूर से आ कर गंगा की पवित्र धारा में स्नान करते है। हरिद्वार, प्रयाग, काशी पटना गंगासागर के साथ ही अन्य शहरों में गंगा तट पर गंगा दशहरा के मेले लगते है जहां लोग दान में कोई भी वस्तु दस की संख्या में दान देते हैं। गरीबो को भोजन कराने और उन्हें आम दान करने की परंपरा अभी भी बहुत से गंगातटीय क्षेत्रों में मनायी जाती है।
काशी में गंगा दशहरा के दिन दशाश्वमेध घाट में दस बार डुबकी मार के स्नान करके शंकर भगवान को दस की संख्या में गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन कर के रात्रि को जागरण करने से अनन्न फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ठ महत्व है। इस दिन विधि विधान से गंगा जी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ, दस सेर गेंहू और दस आम दस ब्राह‌मणों को दान देने व दशहरा स्त्रोत्र का पाठ किया जाता है।
गंगा दशहरा धार्मिक पर्व होने के साथ साथ ह‌मारे भारतीय संस्कृति का भी प्रतीक है। गंगा दशहरा के माध्यम से हम अपने प्रकृति प्रदत्त उपहारों जल स्रोत गंगा नदी को मां मानते हुये उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते है एवं अपनी संस्कृति की महत्वपूर्ण अंग गंगा नदी के पुण्यता पवित्रता एवं स्वच्छता के प्रति संकल्पित होते है क्योंकि गंगा हमारे लिये मात्र एक नदी ही नही हमारीजीवनदायिनी मां है तभी तो हम गंगा को विश्वरूप मान कर प्रार्थना करते हैं-
ॐ नमो गंगाये, विश्वरुपिणे नारायण्यै नमो नमः।
(गंगा दशहरा ५जून २०२५ के अवसर पर आकाशवाणी वाराणसी पर प्रसारित वार्ता का अंश)
-व्योमेश चित्रवंश,एडवोकेट
हमारी वरूणा अभियान के संयोजक

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