रविवार, 15 जून 2025

गंगा की सीढ़ीयॉं.......(कविता) 14जून 2025

गंगा की सीढ़ीयॉं......

ये गंगा की सीढ़ीयॉं
शहर से बस नदी की ओर
नही ले आती हैं
वे ले आती है
कोलाहल से शांति कीओर
भौतिकता से आध्यात्म की ओर
स्व से शिव को ओर
सांसरिकता से बैराग्य की ओर
इन्ही सीढ़ीयों पर
शिव ने शंकर को बताया था
द्वैत अद्वैत से परे ब्रहम को,
तुलसी ने लिखा था रामायण
रामानंद ने दिया था कबीर को
रामनाम का गुरूमंत्र
इन्ही सीढीयों पर
बुलाया था जगन्नाथ ने
अपनी लवंगी के लिये
माँ गंगा को
और गंगा चढ़ती आयी थी
इन्ही सीढ़ीयों पर
अपन पुत्र रत्नाकर के
निश्छल प्रेम का साक्ष्य देने
इन्ही सीढीयों पर
रैदास ने किया था आवाहन
अपनी कठौती में मां गंगा का
नजीर ने देखा था
इन्ही सीढ़ीयों पर
सुबह ए बनारस को
गंगा में नहाते हुये
ख्वाहिश कर जीने मरने की
गंगा में बजू कर कर के
इन सीढ़ीयों पर
हरिश्चन्द्र ने नहीं छोड़ा सत्य को
छोड़ दिया सारे संबंधों को
राजपाट, पत्नी पुत्र सर्वस्व काे
क्योंकि ये केवल सीढ़ीयां नहीं
बॉहे है मॉ गंगा की गोंद की
वह मॉं है हमारी प्रकृति मॉं
स्रोत है सत्य,श्रद्धा,निर्मल
पवित्र मोक्ष और कल्याण की
ये सीढीयॉ उतारती है
हमारे अंतर का अहंकार
मिटाती है तम और क्लेश,
हिमालय की उंचाई से
चल कर सागर मे समाते हुये,
बताती है सच्चाई
स्वयं को समाहित कर
अथाह सागर में विलीन होने की
तभी वह श्रद्धा पात्र होती है
हम सबके लिये
तभी केशव को भरोसा है
एकमात्र अपने मॉं गंगा पर
हे भागीरथी
हम दोष भरे,
पर भरोसे यही है कि भरोस तुम्हारे
नाम लिए कितने तर जात,
प्रणाम किए सुरलोक सिधारे।

-व्योमेश चित्रवंश
काशी, 14जून2025 रविवार

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