शनिवार, 28 जून 2025

गोदौलिया ....(बनारस पर व्योमेश की कविता)28जून2025

गोदौलिया ....

मैं खड़ा हूँ
गोदौलिया चौराहे पर
ढूंढ़ रहा हूं प्राचीन गोदावरी तीर्थ
वह कहीं नहीं दिखता
दिखता तो गोदौलिया भी नहीं
बल्कि वहाँ है, स्टील प्लेट्स और पाईप के ढेर
पैदल बेशुमार भीड़
चौराहे के तीन तीन ओर
टोटो का रेला
जो बढ़ा रहे है अनिच्छित चिड़‌चिड़े जाम को
बाबा बताते थे है गोदौलिया
गाडविला से बना है
चौराहे के सेंट थामस चर्च के नाम पर
प्रिंसेप ने ढूढ़ा था
शाही नाला और घोड़ा नाला यही कहीं
सुबह इसी चौराहे से, गमछा कांधे पर डाले
हर हर महादेव गंगे, काशी विश्वनाथ शंभो
अलख जगाते जाते थे श्रद्धालु नेमीगण
बाद में दोनो चौराहों के किनारे
बैठा दिये गये नंदी जमी से पंद्रह फीट ऊपर
दोनो गोदौलिया के तीन किनारे खुदे पड़े हैं
निर्माणाधीन स्टेशन के लिये,
जो बनेगें नंदी की तरह पचासों फीट ऊपर
चलने वाले वाले हवाई झलुआ टोटो के लिये
जिन्हे अखबारी भाषा मे रोप वे कहते हैं
बड़े बड़े होटल दिखने लगे है
ग्लोसाईन औ डिस्प्ले मानीटर वाले
सुंदर आकर्षक शोरुम भी
पर नही दिखता वह पुराना गोदौलिया
जो शहर का हृदयस्थल कहा जाता था
नही दिखती, गमछा टांगे अलमस्त
दुनिया को अपने ठेगें पे रखे चाय लड़ाती
पान घुलाती वो बनारसी फक्कड़ रहीसियत
जो कभी मेरे शहर के पहचान थी
अब दिखते है देर सारे पर्यटक, तीर्थयात्री
पैदल चलता सड़क के दोनो लेन में,
सब दिखता है पर नही दिखता
इसी भीड़ मे खो गया बनारसीपन
खुदाई, रोपवे, ग्लोसाईन टूरिज्म वाले चौराहे में
मेरे शहर की पहचान, गोदौलिया की तरह...

-व्योमेश चित्रवंश
28.06.2025

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