रविवार, 29 जून 2025

क्वीन्स कालेज का नाम प्रेमचंद राजकीय इण्टर कालेज हो..../व्योमवार्ता, 29062025

 क्वीन्स कालेज का नाम प्रेमचंद राजकीय इण्टर कालेज हो....

  वाराणसी  जनपद के जाने माने राजकीय क्वीन्स इण्टर कालेज का शुभारंभ 1731ई० मे गवर्नमेंट संस्कृत कालेज के रूप मे हुआ था । आरंभ में उसकी स्थापना मैदागिन मोहल्ले के किराये के कमरों में हुई थी। बाद में काशीनरेश द्वारा चौकाघाट मौजा में दान में संस्कृत कालेज को जमीन प्राप्र हुई और इस पर अपना भवन बना | सन 1857 में ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरया के राज्याभिषेक होने के साथ ही इस गवर्नमेंट संस्कृत कालेज का नामकरण भी क्वींस  कालेज हो गया। आरंभ में यह कलकत्ता विश्वविधालय से सम्बद्ध था | 1827 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना होने पर इसकी सम्बद्धता वहां से हो गई । सन 1918 में हर्टोंग कमीशन की रिपोर्ट के सिफारिस से क्वीन्स कालेज में वीए और एमए की पढ़ाई यहां बंद हो गई और यहां पर सिर्फ इण्टर तक की कक्षायें चलने लगी। सन 1957 में क्वीन्स कालेज से जुड़े संस्कृत विद्यालय को विश्वविधालय (वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय) का दर्जा मिलने के बाद मुख्य भवन संस्कृत विश्वविद्यालय को मिल गया और क्वीन्स कालेज अपने छात्रावास प्रांगण (वर्तमान प्रांगण) में स्थानान्तरित हो गया। जहाँ सन 1969 में कालेज का नया भवन तैयार हुआ। और वर्तमान में राजकीय क्वीन्स इंटर कालेज के नाम से संचालित है।
नगर ही नही पूर्वांचल के प्राचीन माध्यामिक विद्यालयों में राजकीय क्वीन्स कालेज का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है। इस कालेज में हिन्दी के प्रख्यात लेखक उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी ने शिक्षा प्राप्त किया था। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभ रहे है एवं इन्हे साहित्य संसार की महत्वपूर्ण हासेयों में से एक माना जाता है। प्रेमचंद जी का जीवन परिचय एक प्रेरणादायक साहित्यिक यात्रा है। 31जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही मे मुंशी अजायब राय और पाता आनन्दी देवी के परिवार में जन्में धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ प्रेमचंद जी ने अपनी पढ़ाई गांव अगल बगल के विद्यालय से प्रारंभ करने के बाद क्वीन्स कालेज से हाईस्कूल व इण्टर किया था। उनके जीवन में क्वीन्स कालेज का बहुत बड़ा योगदान रहा है। क्वीन्स कालेज ने उन्हे जीवन में विद्यालयीय शिक्षा के साथ ही व्यवहारिक जीवन की शिक्षा भी दिया। उनके साहित्यिक जीवन की शुरुआत भी क्वीन्स कालेज से ही हुई थी। जो उनके प्रारंभिक कहानियों और उपन्यास सेवा सदन कर्मभूमि अन्य में परिलक्षित होता है। वर्तमान समय में सांस्कृतिक अभिनवीकरण व भारतीय मूल्यों व प्रतीकों को पुनर्स्थापना की जा रही है ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि दो सदियों से अंग्रेजी दासता के प्रतीक रहे क्वीन्स कालेज के नाम पर चलने वाले इस महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान का नाम भी परिवर्तित कर अपने महान छात्र के नाम पर प्रेमचंद राजकीय इण्टर कालेज किया जाये।                 अब समय आ गया है कि वाराणसी एवं वाराणसी के धरोहरों के प्रति संकल्पित और समर्पित लोग एवं संस्थाये अपने माटी के सपूत प्रेमचंद जी के नाम पर करने के लिये एकजूट हो और यह प्रेमचंद जयंती पर उनके प्रति हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

-व्योमेश चित्रवंश,एडवोकेट
29.06.2025
(लेखक चित्रगुप्त सभा काशी के उपाध्यक्ष एवं प्रेमचंद मार्गदर्शन केन्द्र लमही के सलाहकार संरक्षक हैं)

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