अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
रविवार, 16 नवंबर 2025
बनारस पर कविता (7)
बनारस
बुलाता है बार बार
हर तीज त्योहार पर
प्रयोगकर्मी बनारस, उत्सवधर्मी बनारस
परंपरावादी बनारस, अपने रंग में डूबा बनारस
अपने इतिहास संस्कृति पर
इतराता आधुनिक बनारस
जहां महादेव ईस्ट व भगवान नही
वे बावा है, बहुतअपने से हर किसी के
सर्व सिद्धि देवी अन्नपूर्णा देखती है
हर काशीवासी को माई बन कर
वह बनारस, जो रामनगर की लीला में
साथ साथ चलता है अपने प्रभु के संग
अयोध्या के राजमहल से जनकपुर की फुलवारी
चित्रकूट व पंचवटी से लंका फिर अयोध्या तक
वह बनारस जो प्याले का मेला को जीता है
तो नागनथैया में ग्वाल वन कान्हा के संग
कंदुक क्रीड़ा का सहभागी होता है
अस्सी से रथ को खींच खींच कर
रथयात्रा में अपने कान्हा को नानखटाई खिलाता है सारनाथ के मृगदाव में महीनो मेला देखता बनारस
दौड़ पड़ता है अपने रामजी को कान्हे पर लेने
नाटीइमली, जब वह लौटते है
चौदह साल बनवास के बाद अपनी अयोध्या में
दशहरे के आखिरी तीन दिनों
दुर्गामय होने वाला बनारस
गुलाब बाड़ी के केवड़ा फुहारों से
मसाने में होली व बुढ़वा मंगल में
जीवन व मृत्यु को उत्सव मनाता बनारस
नक्कटैया में अपने विरोध के स्वांग से शुरु
विश्वनाथ का बराती बन शिव बरात ही नही
सब को अपने ठेगें ये रख फगुआ पर
गरियाता, मौज मस्ती करता बनारस,
अमौसा जूतियाँ सोरहिया, ललहीछठ से
परदोस, एकादशी ही नही हर रोज
अपने मस्ती में जीता, अपने में रमता
तीन वार तेरह त्योहार मनाता बनारस
वह बनारस बुलाता है
छठ फगुआ अमऊसा पर
अपने अपनों को
जो दूर दराज गये है
कमाने पेट के खातिर
नहीं आ पाते छुट्टी,
भीड़ और रिजर्वेशन के कारण
पर ने नही बिलग हो पाते
अपनी माटी और बनारसियत से
याद कर कर के अपने बनारस को
जो हर तीज त्योहार पर बुलाता है
उन्हें बार बार, हर बार
हर तीज त्यौहार .....
- व्योमेश चित्रवंश
22.10.2025
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें