बुधवार, 28 मई 2025

बनारस इस पार और उस पार......(कविता)

बनारस इस पार और उस पार...

 देखता हूँ
तरना रेलवे ओवर बृज के
नीचे उतरने वाले फ्लाईओवर से
बदलते बनारस को
मेट्रो सिटी के लुक में
फिल्मों के रीलों में चलती जैसे
ओवरबृज के पार
दिखती बहुमंजिली इमारतें
उन पर चमकतें ग्लोसाईन बोर्ड
नहीं पता चलता
हम इ‌मारत की तरफ है
या उसके दूसरी ओर
पुल के ऊपर आ कर
संशय दूर होता है
कि हम इमारत के ओर हैं
यानि इसी पार
पर पीछे देखने पर
हम फिर उस पार हो जाते है
एक भ्रम और संशय को जीते
बनारस के मर्म और अध्यात्म के जैसे
जीवन के इस पार
भौतिकता, सांसारिकता, स्वार्थ और अहम
और उस पार
आत्मा के चरम पर, शरीर से परे
सिर्फ आत्मा अघोर शून्य और शिव
वह ऊँचा ओवरबृज
दूर कर देता है मन व जीवन के संशय को
बनारस को महसूस करने जैसे
वैसे भी इस शहर को समझने के लिये
बनना पड़‌ता है कबीर
चढ़ना होता है मन की ऊंचाइ‌यों पर
तब हम देख पाते है
बनारस को मन की आखों से
जान पाते है बनारस को
जीवन के इस पार
और उस पार के सच को
जो बनारस दिखाता है
रेलवे ओवरबृज की ऊंचाइयों जैसे
इस पार और उस पार का बनारस
प्रकृति और पुरुष के मध्य का बनारस...

- व्योमेश चित्रवंश
28मई2025 बुधवार

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