व्योमवार्ता, VYOMESH CHITRAVANSH advocate
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
गुरुवार, 7 नवंबर 2024
नाटी इमली का भरतमिलाप / व्योमवार्ता
बनारस मे पियरिया पोखरी वाली पीताम्बरा काली माँ /व्योमवार्ता
रविवार, 27 अक्तूबर 2024
व्योमवार्ता/ मन का आंगन कुछ कहता है......
सोमवार, 26 अगस्त 2024
व्योमवार्ता/ऊमस भरे दिन मेरे शहर में 05जुलाई2024
मेरा शहर इस समय गर्मी के ताप से लरज रहा है। सूरज से बरसते अंगारे और धरती से निकलती तपिश के साथ पारे ने ऊपर और ऊपर चढ़ने की होड़ लगा रखी है। कितना अजीब है नदियों के नाम पर बसा गंगा के खूबसूरत घाटों वाला यह शहर आज खुद में हैरान व परेशान है। परेशान भी क्यों न हो? शहर को नाम देने वाली नदियों या तो विलुप्त हो चुकी या विलुप्त होने के कगार पर है और गंगा के घाट? आह ! जब कल गंगा ही नही रहेगी तो ये घाट क्या करेगे? मुझे याद नहीं कहाँ लेकिन कहीं सुना था कि एक बार माँ पार्वती ने भगवान शंकर से पूछा था कि बनारस की उम्र क्या और कितनी होगी तो अवधूत भगवान शंकर ने कहा था कि "यह आदि काल से भी पहले अनादि काल से बसी है यानि मानव सभ्यता के आदिम इतिहास काशी से जुड़ते है और जब तक सुरसर गामिनी भगीरथ नन्दिनी गंगा बनारस के घाट पर रहेगी तब तक काशी अक्षुण्ण रहेगी।" तो क्या गंगा के घाटों को छोड़ने के साथ ही मेरा शहर......? और कहीं अन्दर तक मन को हिला देती है यह भयानक कल्पना याद आता है, चना चबेना गंगा जल ज्यों पुरवै करतार, काशी कबहुँ न छोड़िये विश्वनाथ दरबार। अब तो न गंगा में 'गंगा जल' रह गया, न ही सबके लिये मुअस्सर 'विश्वनाथ दरबार। अब तो दोनों ही सरकारी निगहवानी में दिल्ली और लखनऊ के इशारों पर मिलते हैं। माँ गंगा और भगवान विश्वनाथ के सरकारीकरण से अपने शहर की स्थिति उतनी नहीं खराब हुई जितनी हम बनारसियों के नव भौतिकवादी सोच और तोर से बढ़कर मोर वाली अपसंस्कृति ने अपने शहर का नुकसान किया। शहर बढ़ता गया और हमारी सोच का दायरा सिकुड़ता गया। कभी लंगड़े आम व बरगद के पेड़ों और लकड़ी के खिलौने के लिए मशहूर बनारस में पेड़ों की छाँव अब गिने चुने उदाहरण बनकर रह गयी। 'मेरे घर की नींव पड़ोस के घर से नीची न रहे क्योंकि ऊँचे नाक का सवाल है।' इस 'नाँक' के सवाल ने बरसाती पानी के रास्तों को सीवर जाम, नाली जाम के भुलभुलैया में उलझा दिया तो पड़ोसी के दो हाथ के बदले हमारी चार हाथ सड़क की जमीन की सोच ने इस शहर को एक नई समस्या अतिक्रमण के नाम से दी। तालाब पोखरों का तो पता ही नहीं, कुयें क्या हम इन आलीशान मकानों के बेसमेन्ट में मोमबत्ती जलाकर ढूंढ़ेगें? ऊपर से तुर्रा यह कि तालाब, पोखरों, नदियों के सेहत का ख्याल रखने वाला वाराणसी विकास (उचित लगे तो विनाश भी पढ़ सकते है) प्राधिकरण खुद ही मानसिक रूप से बीमार होने की दशा में है। कितने तालाब, पोखरे पाट डाले गये यह कार्य उसके लिए "आरूषि हत्या काण्ड" की तरह किसी मर्डर मिस्ट्री, फाइनल रिपोर्ट, क्लोजर रिपोर्ट, रिइनवेस्टिगेशन से कम नही है और तो और दो तीन को तो वी०डी०ए० ने खुद ही पाट कर अपने फ्लैट खड़े कर दिये। शहर के जमींन मकान और योजनाओं का लेखा-जोखा रखने वाले तहसील, नगर निगम और वी०डी०ए० के पास अपना कोई प्रामाणिक आधार ही नहीं है जिस पर वे अतिक्रमणकारियों के खिलाफ ताल ठोंक सके। कम से कम वरूणा नदी और सिकरौल पोखरे के बारे में तो मेरा व्यक्तिगत अनुभव यही सिद्ध करता है।
कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन लब्बोलुआब यह है कि शहर की सेहत ठीक नही है। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक अगर कहीं मानसून आ गया तो आम शहरी की चिन्ता यही है कि गर्मी की तपिश तो कम हो जायेगी लेकिन नाले बने गडढ़ेदार सड़कों से घर कैसे पहुँचेगें? इसी से तो बरसात चाहते हुए मन में एक दबी सी चाहत है कि दो चार दिन और मानसून टल जाये तो शायद..
अपनी ही नहीं सारे शहर की बात कहें तो एक शेर याद आता है-
शनिवार, 24 अगस्त 2024
बनारस मे नाश्ता यानि चौचक चकाचक चपंत व्यवस्था
बुधवार, 19 जून 2024
व्योमवार्ता/ समाज जिसमे हम रहते हैं...../जरूरत परिवार संस्था को बचाने की...
मंगलवार, 18 जून 2024
नवगीत के प्रणेता डाॅ०शंभुनाथ सिंह की जयन्ती पर विशेष
गुरुवार, 30 मई 2024
महावीर स्वामी
सत्य अहिंसा के प्रेरणास्तंभ भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवै तीर्थकर के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें महावीर वर्द्धमान भी कहते है। तीर्थकर का अर्थ सर्वोच्च उपदेशक होता है जो समाज को अपने उपदेशों एवं जीवन चरित्र व कार्यों के माध्यम से एक सही दिशा दिखाये। महावीर स्वामी का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में 540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम वैशाली में हुआ था । तत्कालीन महाजनपद वैशाली वर्तमान बिहार प्रदेश में स्थित था। उनकी माता का नाम प्रियकारणी त्रिशला व पिता का नाम सिद्धार्थ था। मान्यताओं के अनुसार महावीर के माता पिता तेइसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ जी के अनुयायी थे। जब महावीर का जन्म होने वाला था उसके पूर्व से ही इंद्र ने यह जानकर कि प्रियकारिणी त्रिशला के गर्भ से महान आत्मा का जन्म होने वाला है, प्रियकारिणी त्रिशला की सेवा के लिये षटकुमारी देवियों को भेजा। रानी त्रिशला ने स्वप्न में ऐरावत हाथी और अनेकों शुभ चिन्ह देखे जिससे यह अनुमान लगाया कि नये तीर्थकर इस पावन धरा पर पुनर्जन्म लेने वाले है। चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन वर्द्धमान का जन्म हुआ। महावीर के जन्म वर्ष में कृषि व्यापार, उद्योग में जबदस्त लाभ हुआ। लोगों को आत्मिक, भौतिक व शारीरिक सुख शान्ति का अनुभव हुआ। इस लिये उनके जन्म पर पूरे राज्य में उत्सव मनाये गये और बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया गया। कुलगुरु सोधमेन्द्र ने उनका नाम नगर में उत्साह व वृद्धि को ध्यान में रख कर 'वर्द्धमान' रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने उन्हें 'सन्मति' कह कर पुकारा। संगमदेव ने उनके अपरिमित साहस की परीक्षा ले कर 'महावीर नाम से अभिहित किया।
बचपन से ही महावीर सांसारिक क्रिया कलापों के बजाय आध्यात्मिक एवं आत्मिक शांति, ध्यान जैसे कार्यों में अधिक समय बीताते थे। तीस वर्ष की आयु में उन्होंने अपने परिजनों से अनुमति ले कर सभी सांसारिक सम्पतियों, सुख सुविधाओं को त्याग दिया और आध्यात्मिक जागृति की खोज में घर छोड़ कर तपस्या करने लगे। साढ़े बारह वर्षों तक गहन ध्यान और कठोर तपस्या के पश्चात उन्हें सर्वज्ञता की प्राप्ति हुई। सर्वग्यता का अर्थ शुद्ध एवं केवल ज्ञान होने से इसे कैवल्यता प्राप्ति भी कहते हैं। कैवल्य प्राप्ति के पश्चात 'वर्द्धमान' जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर के रूप में जाने जाने लगे और 'महावीर जैन' के रूप में प्रतिष्ठित हुये। महावीर जैन का अर्थ है वह महावीर जिसने स्वयं हो जान लिया और सर्वस्व को जीत लिया। इसके पश्वात महावीर समाज में अहिंसा सत्य अपरिग्रह की शिक्षा देने लगे। महावीर ने सिखाया कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय अर्थात चोरी न करना, ब्रह्मचर्य अर्थात शुद्धता एवं अपरिग्रह अर्थात किसी से लगाव व मोह का न होना आध्यात्मिक मुक्ति के लिये आवश्यक है। उन्होंने अनेकांतवाद अर्थात बहुपक्षीय वास्तविकता के सिद्धान्तों की शिक्षा दी। महावीर की शिक्षाओं को उनके प्रमुख शिष्य इंद्रभूति गौतम ने जैन आगम के रूप में संकलित किया था। माना जाता है कि जैन भिक्षुओं द्वारा मौखिक रूप से संप्रेषित ये ग्रंथ ईषा की पहली शताब्दी तक आते आते काफी हद तक विलुप्त हो गये।
महावीर ने जीवन चर्चा के लिये सर्वजन हेतु एक आचार संहिता बनाई जिसमें किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना, किसी भी वस्तु को किसी के दिये बिना स्वीकार न करना, मिथ्या भाषण अर्थात झूठ नहीं बोलना आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, मात्र शारीरिक आवरण के वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना प्रमुख है।
जैन ग्रंथों एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं है। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवे तीर्थकर है जिन्होंने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बना कर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। महावीर ने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रांति संपन्न करते हुये उद्घोष किया कि आँख मूंद कर किसी का अनुकरण या अनुशरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, धर्म रूढ़ि नहीं है, धर्म प्रदर्शन नहीं है एवं धर्म किसी के प्रति घृणा एवं द्वेषभाव भी नहीं है। महावीर ने धर्म को कर्म काण्डों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाल धर्मो के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाया। महावीर ने घोषणा किया कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिसमें आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परम- शक्ति का अवतार बन कर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन होने में नहीं है बाल्के वह तो बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार तपश्या को अवधि पूर्ण कर कैवल्य प्राप्ति के पश्चात लगभग तीस वर्षों तक महावीर धर्म का प्रचार करते रहे और उनका निर्वाण 527 ईषा पूर्व नालन्दा जिले के पावापुरी में हुआ।
महावीर स्वामी के अनेक नाम है जिनमें अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर प्रमुख है। मान्यता है कि 'जिन' नाम से ही उनके अनुयायियों ने धर्म का नाम जैन धर्म रखा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मो की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह को साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को भूल कर भी कोई दुख नहीं देना चाहते थे। भगवान महावीर के अनुयायी उनके नाम का स्मरण श्रद्धा और भक्ति से लेते हैं। उनका यह मानना है कि महावीर स्वामी ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया अपित मुक्ति की सरल व सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। पूरे भारत में भगवान महावीर के उपदेशों का पालन करते हुये श्रद्धापूर्वक उनका जन्मदिन महावीर जयंती के रूप में मनाता है।
(दिगंबर जैन मंदिर धर्मशाला मे महावीर जयंती पर उद्बोधन,जिसका प्रसारण #आकाशवाणी वाराणसी द्वारा दिनांक 21अप्रैल 2024 को सायं 5 बजे हुआ।)
व्योमवार्ता/ बोयेगें पेड़ कैक्टस का....../व्योमेश चित्रवंश की डायरी 30मई2024
सोमवार, 27 मई 2024
व्योमवार्ता/ टूटते हुये बनते परिवार,कौन है जिम्मेदार /व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24मई2024,शनिवार
शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2023
व्योमवार्ता/ पितृ पक्ष वही जो हमें बुजुर्गों और अपनों के बीच ले जाये.....
#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं......
जो बात पहले जितनी आसान रही, वह आज उतनी ही मुश्किल होती जा रही है। जीते जी अपने मां-बाप की सेवा करना, घर के बुजुर्गों व पूर्वजों के प्रति सदैव आदर भाव रखना अब आसान नहीं रह गया। ऐसे दौर मे पितृपक्ष हमें एक संदेश देता है। हमें कुछ याद दिलाता है। लोग इन दिनों एक अलग ही भाव में रहते हैं और श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करते हैं,ताक अपने पूर्वजों से जुड़े रहें। मगर पितृ पक्ष हमसे कुछ सवाल भी करता आज के नौजवा है- क्या हम इसे एक घिसी-पिटी परंपरा मानकर भूल जाना चाहिये और अपनी सामान्य जिंदगी जीते रहें।क्या हमें यह नही सोचनाकि चाहिए कि पितृ पक्ष की कल्पना क्यों की गई थी ? क्या हम इससे सीखकर समाज को बेहतर बना सकते हैं? क्या हमारे अंदर भूखों- 'गरीबों का पेट भरने की करुणा इस पक्ष में आ सकती है? क्या हम दरिद्र नारायण के दर्द को समझ सकने की स्थिति में हैं? क्या हमारे अंदर ऐसा इंसान बचा है, जो किसी के एहसान नहीं भूलता ? हमारा देश बुजुगों व पूर्वजों के प्रति कितना संवेदनशील है?
अगर हम 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें, तो देश में बुजुगों की आबादी दस करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। यह संख्या करीब 13 करोड़, 80 लाख हो गई है, जिसके वर्ष 2031 तक 19.4 करोड़ हो जाने की संभावना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह भी कम ध्यान देने योग्य नहीं है कि केवल 25 फीसदी कंपनियों के पास ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा सुविधाए हैं। ऐसे में, ज्यादातर ग्राहक अपने पर आश्रित माता-पिता और सास-ससुर के लिए स्वास्थ्य बीमा लेने में सक्षम नहीं हैं। एक पक्ष यह भी है कि माता-पिता का बीमा खरीदने
में सक्षम होने के बावजूद कई लोग मुंह मोड़ लेते हैं। भारत सरकार ने 'वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटीजन्स ऐक्ट 2007' (माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख एवं कल्याण अधिनियम 2007) लागू किया है। बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक आत्मसम्मान व शांति से जीवन-यापन कर सकें, इसी के लिए यह कानून बनाया गया है। वहीं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा जारी इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 ने भारत में बुजुर्ग जनसंख्या के बढ़ने और देश पर इसके प्रभावों कीपुष्टि भी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष से अधिक) की संख्या सन 2022 में 10.5प्रतिशत थी तो 2050 तक यह 20.8 प्रतिशत हो जाएगी। देश मे 15करोड़ के बजाय 35 करोड़ बुजुर्ग हो जायेगें। ऐसे मे,पितृपक्ष के समय ही सही, आज के युवाओं को अपने भविष्य के बारे में जरूर सोचना चाहिए। भारतीयों को यह देखना चाहिए कि दूसरे देश अपने बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? अमेरिका में 'फैमिली मेडिकल केयर ऐक्ट' के मुताबिक, वरिष्ठ नागरिकों की सेवा के लिए सात दिन तक पेड लीव की सुविधा है। वहीं जापान की तो 40 प्रतिशत जनसंख्या 60 साल से ऊपर की है। वहां सरकार ने 40 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा को जरूरी कर दिया है। कमाल की बात यह है कि माता-पिता की अच्छी सेवा करने वालों को जल्दी पदोन्नत करने का भी सरकारी प्रावधान है। फ्रांस में हरेक शख्स को अपने एक दिन का वेतन बुजुगों के कल्याण-कोष में देना पड़ता है।
पितृ पक्ष पर हमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वह कविता याद आ रही है, 'सूरज डूब रहा है। चारों तरफ अंधेरा छाने लगा है। एक वृद्ध चिंतित है कि अब भला कौन उन्हें संभालेगा। तभी एक युवा हाथ में एक छोटा- सा दिया लिए उठते हुए कहता है, मैं!'
साभार #नंदितेश_निलय
हिन्दुस्तान,6अक्टूबर2023,शुक्रवार
#व्योमवार्ता http;//chitravansh.blogspot.com
सोमवार, 24 जुलाई 2023
#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....../"चलो न,अपने घर"
#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....../"चलो न,अपने घर"
सुधा जी अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानती थीं।जहां आजकल बेटे बहुओं द्वारा अपने माता पिता या सास श्वसुर को अपमानित या प्रताड़ित करने की घटनाएं आए दिन देखने सुनने को मिलती रहती हैं,वहां उनका बेटा विकास ,बहू अनाया उनका और उनके पति लोकेश का बहुत ध्यान रखते थे।दो वर्ष होने को आए थे विकास की शादी को।वह और अनाया मुंबई में एक ही कंपनी में अच्छे ओहदों पर काम कर रहे थे।लोकेश जी पिछले वर्ष ही रिटायर हुए थे और पेंशन के नाम पर मात्र कुछ हज़ार ही उनको हर माह मिलते थे।लाख मना करने के बावजूद विकास उनके अकाउंट में कुछ रुपए हर माह डाल देता था और समय समय पर उनके ब्लड प्रेशर इत्यादि की दवाइयां उनके घर ऑनलाइन ऑर्डर करके भिजवा देता था।बेटे बहू अक्सर रोज़ ही फोन करके सुधा जी और लोकेश जी के हाल चाल रोज़ रात को ले लेते थे।लोकेश जी और सुधा हापुड़ में अपने पैतृक मकान में रह रहे थे और अपने मकान के ही ग्राउंड फ्लोर पर उन्होंने एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया था ताकि मन भी लगा रहे और थोड़ी इनकम भी हो जाए।
विकास से छोटी उनकी एक बेटी वनिता भी थी जिसकी पिछले वर्ष ही शादी हुई थी।वनिता और उसका पति अतुल गुड़गांव में ही मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहे थे।
पिछले एक महीने से विकास और अनाया सुधा से आग्रह कर रहे थे कि वह और पापा दोनों कुछ दिन उनके पास आकर मुंबई रह जाएं।रोज़ रोज़ के एक से उबाऊ जीवन से कुछ समय के लिए छुटकारा भी मिल जाएगा ।उधर बेटी वनिता और दामाद जी भी उनको फोन करके कुछ दिन अपने पास रहने के लिए बुलाते रहते थे।
बेटे विकास के पास उसके घर मुंबई दोनों सिर्फ एक दिन के लिए उस समय गए थे जब पिछले वर्ष शिरडी साई बाबा के दर्शन के लिए गए थे और लौटते समय एक दिन बेटे के पास मुंबई रुक गए थे क्योंकि वहीं से उनकी दिल्ली के लिए वापसी की फ्लाइट थी।
इस बार विकास ने जबरन दोनों का फ्लाइट का टिकट बुक करा ही दिया अतः उनको मुंबई आने का प्रोग्राम बनाना ही पड़ा।
अनाया ने खाना ,नाश्ता बनाने के लिए कुक लगा रखी थी। वह रोज़ सुबह ब्रेकफास्ट,लंच और डिनर का मेन्यू कुक को बता कर विकास के साथ कार से ऑफिस निकल जाती और रात सात ,आठ बजे तक ही घर लौट पाती थी।विकास और अनाया दोनों ही फिटनेस फ्रीक और हेल्थ कॉन्शस थे।बहुत कम घी तेल में उनके यहां खाना बनता था, अनाया को अपनी फिगर खराब होने का भी डर लगा रहता था।अपने 3 बीएचके फ्लैट में एक रूम की बालकनी को तो उन्होंने जिम में ही परिवर्तित कर रखा था जहां डेली एक्सरसाइज करने वाले तमाम इक्विपमेंट्स रखे हुए थे।
लोकेश जी और सुधा जी को ये उबली हुई बिना घी तेल की सब्जियां बिलकुल नहीं अच्छी लगती थीं।सुधा अपने घर तो आए दिन कभी बेसन के गट्टे की सब्ज़ी,कोफ्ते,बड़ी आलू, चिली पनीर इत्यादि बनाती रहती थी क्योंकि लोकेश के साथ साथ उसको स्वयं भी अच्छे तेल मसाले वाली चटपटी सब्जियां और नाश्ते पसंद थे।यह जीरे वाली लौकी,स्प्राउट्स, ओट्स मील वह रोज़ रोज़ खा ही नहीं सकती थी।एक हफ्ते तक तो दोनों ने किसी तरह यह स्वास्थ्यवर्धक पर बेस्वाद खाना खाया फिर एक दिन सुबह सुधा ने आटे में अजवाइन ,नमक और घी का मोइन डाल कर स्वयं गरम गरम मठलियां और नमकपारे नाश्ते में अपने और पति के लिए बनाए। कुछ नमकपारे,मठरी बेटे बहू के लिए एयर टाइट डिब्बे में पैक करके रख दिए।फिर उन्हें याद आया कि विकास को लौकी के कोफ्ते बड़े पसंद हैं।रात में डिनर में उन्होंने कुक से सिर्फ रोटियां सिकवा लीं और स्वयं बड़े मन से ग्रेवी वाले चटपटे लौकी के कोफ्ते तैयार कर दिए।
शाम को बेटा बहू जब लौटे तो चाय के साथ उन्होंने मठरी और अपने साथ लाया हुआ आम का अचार रखा।
" ओह मम्मी जी इतनी खस्ता मठरी !! मेरा वजन इतनी मुश्किल से कम हुआ है,इतना ऑयली खा के फिर से बढ़ जाएगा,कहते हुए अनाया ने बस मठरी का एक कोना तोड़ कर अपने मुंह में डाला और चाय पी कर उठ गई।विकास ने तो मठरी को हाथ भी नहीं लगाया।रात में मसालेदार कोफ्ते देख कर विकास बजाए खुश होने के सुधा जी पे भड़क गया।
" मां,कितनी बार कहा कि आप पापा को इतना ऑयली खाना मत खिलाया करो,और खुद भी मत खाया करो।पापा को ब्लड प्रेशर रहता है,आपकी भी उम्र हो रही है,कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ जायेगा तो फालतू में हार्ट रिलेटेड बीमारियों का खतरा बढ़ जायेगा।
और आपको पता है कि हम दोनों सिर्फ आधी एक चम्मच घी में बनी कम मसाले की सब्जियां खाते हैं।आप कुक से वो तो बनवा लेती। ख़ैर,आपने इतने मन से बनाए हैं तो एक टुकड़ा चख लेता हूं।," कह कर उसने रोटी के एक टुकड़े से कोफ्ता चखा और वह और अनाया फ्रिज से दही निकाल कर , रोटी उसी के साथ खा कर डाइनिंग टेबल से उठ गाएं
बेटे बहू से अपनी प्रशंसा सुनने की आस लगायी बैठी सुधा जी का मुंह उतर गया।
वह जानती थीं कि विकास जो कह रहा है,सही कह रहा है,उनके और लोकेश जी के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर ही कह रहा है,पर अंदर ही अंदर उनके मन में कुछ दरक सा गया।
रात में सोने से पहले दोनो उनके कमरे में आए।
" पापा,आपने अपने ब्लड प्रेशर की दवाई खा ली न?मम्मी ,आप बहुत घी तेल खाने लगी हो।परसों आप दोनों का फुल बॉडी चेक अप करवा दूंगा, रात आठ बजे तक कल डिनर कर लेना," विकास बोला।
" हां,मम्मी जी,कल संडे है।कल आप दोनों को नेशनल पार्क, जुहू बीच और हैंगिंग गार्डन दिखाने ले जायेंगे।", अनाया बोली।
" अच्छा बेटा,ठीक है," सुधा थोड़े उदास स्वर में बोली।गुड नाईट बोल कर दोनों अपने कमरे में सोने चले गए।
अगले दिन संडे को विकास और अनाया देर सुबह तक सोते रहे।आखिर बेचारों को एक ही दिन मिलता था रेस्ट का।उनके ऑफिस में 5 डेज वीक नहीं था।
सुधा जी जबसे आई थीं,देख रही थीं कि विकास के घर में स्थापित लकड़ी के छोटे मंदिर का मुंह दक्षिण की तरफ था,जोकि उनके अपने बुजुर्गों के मुंह से सुनी गई मान्यताओं के अनुसार ठीक नहीं था।यद्यपि सुधा जी स्वयं भी इन बातों को अधिक नहीं मानती थीं पर फिर भी मन में वहम तो आ ही जाता है , अतः घरेलू नौकर से बोल कर उन्होंने उसको वहां से हटवा कर उसके बगल वाली खाली दीवार पे टंगवा दिया ताकि उसका मुंह पूरब की तरफ हो जाए।अब तक अनाया भी उठ चुकी थी।मंदिर को वहां टंगे देख गुस्से में जोर से चिल्ला कर नौकर से बोली," रामदीन,तुमने मुझसे बिना पूछे यह मंदिर इस दीवार पर क्यों टांगा? यहां तो मुझे एक बड़ी फुल साइज पेंटिंग लगानी है,"!
" मेम साब,आंटी जी ने कहा तो मैंने लगा दिया," रामदीन सफाई देते हुए बोला।
" मम्मी जी प्लीज,मेरा फ्लैट मुझे मेरे हिसाब से सेट करने दीजिए।आप हापुड़ में शौक से अपने हिसाब से अपना घर सजाइए।मंदिर का मुंह इधर करने से ड्रॉइंग रूम में बैठे गेस्ट्स ,मेरी खरीदी हुई कीमती नई पेंटिंग देख ही नहीं पाएंगे।
रामदीन,इसको वापस अपनी पुरानी जगह ही लगा दो", अनाया ने रामदीन को आदेश दिया और ब्रश करने वाशरूम में चल दी।
सुधा चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई।
दोपहर में लंच के बाद सब घूमने निकल गए। कार में सुधा चुप चुप सी ,उखड़ी सी बैठी रही।लोकेश जी सब समझ गए थे,आखिर पति थे उनके।
शाम को घर लौटने पर लोकेश जी विकास से बोले," बेटा हमारा कल की वापसी का रिजर्वेशन करवा दो,अगर मिल रहा हो तो!!मैं तो सिर्फ तीन चार दिन के लिए तुम्हारे पास रहने आया था,आज देखो पूरा एक हफ्ता हो गया।दुकान इतने दिन से बंद है,सारे ग्राहक टूट जायेंगे और मिश्रा की दुकान से सामान लेने लगेंगे।तुम दोनों ने खूब हमारा ख्याल रखा।खूब घुमाया फिराया,अब जाने दो।लौटते पर दो दिन बेटी के पास गुड़गांव रह लेंगे,वह भी कई दिन से बुला रही है।"
" यह क्या पापा,आपने तो कहा था कि इस बार पूरा एक महीना रहेंगे आप मेरे पास।इतनी जल्दी मन ऊब गया? " विकास नाराज़ होते हुए बोला।
" ऐसी बात नहीं बेटा",सुधा बोलीं," हम फिर आ जायेंगे।अभी दिवाली पर दुकान में लक्ष्मी गणेश पूजन भी करना है।फिर वनिता भी बुलाए पड़ी है।दो दिन उसके पास भी रुक लेंगे।"
दोनों के ज़िद करने पर विकास ने दो दिन बाद का उनका वापसी का रिजर्वेशन करवा दिया। अनाया ने भी उनसे काफी ज़िद करी रुकने की,कहा कि अभी तो मुंबई के कई स्थान घूमने के लिए रह गए हैं,पर सुधा ने प्यार से मना कर दिया।
वापसी में दोनों बेटी वनिता के यहां आ गए।
वनिता का पति अतुल डेली नॉन वेज खाने वालों में से था,बहुत ही शौकीन।जबकि लोकेश और सुधा अंडा तक नहीं खाते थे,यहां तक कि अंडे की स्मेल से सुधा जी का जी मिचलाने लगता था।
दोपहर लंच में डाइनिंग टेबल पर बेटी ने खाना लगा दिया।अपने पापा मम्मी के लिए उसने मटर पनीर,रायता,मेथी के साग की सब्ज़ी बनाई थी पर साथ में ही लंच करने बैठे दामाद अतुल जी की प्लेट में रखे चिकन पीस की गंध दोनों बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे अतः अपनी प्लेट लगा कर दोनों बेड रूम में ही आकर खाने लगे।
" क्या करूं पापा,आपको तो पता है कि इनको रोज़ नॉन वेज चाहिए, न मिले तो यह भूखे से रह जाते हैं,वनिता हंसते हुए बोली।
" कोई बात नहीं बेटा,दामाद जी को जिस चीज़ का शौक है,वह उनको मिलनी ही चाहिए," लोकेश जबरन मुस्कुराते हुए बोले।
शाम को अचानक से कानपुर से लोकेश जी के समधी समधिन भी बेटे अतुल के घर आ गए क्योंकि उन्हें गुड़गांव में कोई शादी अटेंड करनी थी।
रात में दूसरे कमरे के डबल बेड पर वनिता के सास ससुर सो गए और वनिता ने ड्राइंग रूम में ही दो फोल्डिंग डाल कर अपने पापा मम्मी का बिस्तर लगा दिया।
लोकेश जी को फोल्डिंग चारपाई पे बिलकुल नींद नहीं आती थी और उनकी पीठ में दर्द हो जाता था। रात भर वह करवटें बदलते रहे।
सुबह सुधा जी और लोकेश जी को चार बजे से ही आंख खुल गई।
" आज ही घर वापस चलें क्या? लोकेश जी ने सुधा से पूछा।
हां,आज ही कैब बुक करवा के या बस से वापस घर चलते हैं।मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है।सारे कमरे,आंगन इतने दिन से बंद पड़े हैं,गंदे हो गए होंगे।तुलसी जी कहीं सूख न गई हों,बिना पानी के।"सुधा जी खुश होते हुए बोलीं।
" हां,शर्मा जी, मिश्रा जी,श्रीवास्तव साहब से भी बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हुई। उस दिन उनका फोन भी आया था, मिश्रा कह रहा था कि जबसे मैं वहां से गया हूं,चारों की चांडाल चौकड़ी जमी ही नहीं।शाम को चारों इकट्ठा होकर गपशप लड़ाया करते थे," लोकेश जी बोले।
" हां,हमारा घर हमें वापस बुला रहा है,जिसकी मालकिन सिर्फ मैं हूं,सिर्फ मैं!
जहां मैं अपनी मन मर्जी का खा, पका सकती हूं,कहीं भी सो सकती हूं,कुछ भी अपने मन का कर सकती हूं,जहां सिर्फ मेरी मनमर्जियां चलती हैं," सुधा जी मुस्कुराते हुए एक चैन की सांस लेते हुए बोलीं।
दोनों ने उठ कर अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया।
#व्योमवार्ता
रविवार, 23 जुलाई 2023
#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....आज की कटु कहानी
#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....
आज की कटु कहानी
निशा काम निपटा कर बैठी ही थी की फोन की घंटी बजने लगी।मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से। बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”
निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।
बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था, कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर। दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी। दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।
रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है, मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं।
रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”
विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।”
निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए। और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।”
विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है। आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?”
निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा। पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।
निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।” सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।
बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।”
रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। विवेक का घर बहुत छोटा है, उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है। मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।”
पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”
अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है। बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।”
निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं। क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा? अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो।
आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं।
अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं। मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है। ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।”
निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।”
तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए। निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।
रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती।
वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद।बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।”
सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”
निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे कोई किसी का नहीं होता, फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’
” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “
#व्योमवार्ता