चौकाघाट आयरन ब्रिज से संस्कृत विश्वविद्यालय और तेलियाबाग की तरफ से जाने वाली सड़क के दायी पटरी पर एक छोटा सा मुहल्ला है पियरिया पोखरी। कभी यहाँ पियरिया की पोखरी हुआ करती थी, पर अब कंक्रीटों के जंगल में वह कहीं गुम हो गयी है। वहाँ दिखती है, टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ और ढ़ेर सारे लोग। इन्हीं गलियों की भूल-भूलैया में एक छोटे से मकान में छोटा सा मंदिर है, पीताम्बरा व खप्पर वाली काली माँ का मंदिर। इस छोटे से मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ है। मंदिर के कमरे में बैठने की क्या खड़े होने की भी जगह नहीं बची है। मंदिर के पुजारी बाबा के पुत्र रामजी भाई साथ में लगा हुआ, अपने घर का ड्राइंग रूप खोलकर श्रद्धालुओं को वहाँ बैठने के लिए कहते हैं। पर पाँच मिनट के अन्दर स्थिति पूर्ववत। भीड़ बिल्कुल अनुशासित, किसी को कोई जल्दी नहीं, हर कोई अपने पास खड़े व्यक्ति से दर्शन करने का अनुरोध करते हुए, माँ के दरबार में रखे रजिस्टर में अर्जी लिखने के लिए कहते हैं।
यह छोटा सा मंदिर सिद्धपीठ है। माँ बंगलामुखी पीताम्बरा का यहाँ आशुतोष भगवान चन्द्रमौलिश्वर महादेव शंकर एवं खप्पर वाली काली माँ विराजमान है। इस मंदिर का इतिहास भी इतना ही विचित्र और जीवन्त है। बताते हैं मन्दिर के अधिष्ठाता श्री पीताम्बरा बाबा। वे बताते हैं कि 40-45 वर्ष पूर्व जब मैं क्वींस कालेज में कक्षा 6 में पढ़ता था, तो प्रायः मुझे अकेले होने पर खप्पर वाली काली माँ नजर आती थीं। लाल- लाल आँखों वाली, हाथ में कटार लिए और गले में नरमुण्डों की माला डाले। ऐसा आभास होता था कि माँ मुझसे कुछ कहना चाहती है परन्तु मैं बालपन के कारण काफी भयभीत हो जाता था और यह आभास होते ही भागने का प्रयास करता था। जब यह प्रवृत्ति बढ़ने लगी तो मैं यह प्रयास करने लगा कि मैं अकेले न रहूँ। उसी समय एक बार अपनी बहन को विदाई कराके जंघई रेलवे स्टेशन से आ रहा था कि एकाएक तबियत बहुत खराब हो गई। डाक्टरों को दिखाया पर कोई लाभ नहीं मिला। स्थिति यहाँ तक बिगड़ गई कि कई बार लोगों ने मृत जानकर जमीन पर उतार दिया। उसी रुग्णावस्था में मुझे सम्भवतः हनुमान और माँ काली के दर्शनों का अनुमान हुआ। माँ काली का स्वरूप तो वही था जिससे मैं बार-बार भयभीत हो जाता था परन्तु माँ के चेहरे पर मेरे लिए दया थी, करुणा थी और ममत्व था, जैसे कह रही हो, 'अरे पगले ! तू मुझसे भयभीत हो भाग रहा है। आपनी माँ से! बता आखिर, माँ को छोड़कर कहाँ जायेगा ?
माँ काली का आदेश होने के पश्चात् बाबा पंचगंगा घाट पर शिव स्तुति करने लगे। साथ-साथ श्मशान काली माँ, तारा माँ, मशान बाबा की धूनी जमाई। तुलसी घाट पर बैठ माँ की समस्त क्रियाओं से पूजन किया। इस कठोर साधना के वर्षों के परिणाम स्वरूप वहीं माँ के भक्त बालक का प्रति अभ्युदय पीताम्बरा बाबा के रूप में हुआ। पियरिया पोखरी स्थित घर पर शिवजी के अखण्ड जप सोमवार व्रत और माँ काली के असीम कृपा से घर का पूरा स्थान ही खप्पर वाली सिद्धपीठ के रूप में प्रतिष्ठापित हो गया। फिर तो माँ के भक्ति में यह लगन लगी कि सोते जागते दिन रात नींद में भी केवल शिव और काली का जाप। ऐसे में पत्नी बीमारी से अस्पताल में जीवन के लिए संघर्षरत थी और बाबा नाम जप रहें थे। उसी अवस्था में बाबा को आभास हुआ कि माँ ने आदेश दिया कि मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ। आओ मुझे ले चलो। आप उसी अवस्था में चाँदपुर चल पड़े। वहाँ पहुँचे तो देखा कि माँ काली का एक भव्य प्रतिमा और प्रतिमाओं से भिन्न बिल्कुल वैसे ही जैसे दर्शनों में आभास होता था। ममत्व एवं करुणा से भरी हुई रौद्र रूप से भिन्न माँ की प्रतिमा जैसे कह रही हो, तुम आ गये, चलो मैं तुम्हारी ही बाट जोह रही हूँ। परन्तु मूर्तिकार ने उस प्रतिमा को देने से मना कर दिया। बिलकुल भी टस से मस होने को तैयार नहीं। सीधे कह दिया कि 'आप कोई अन्य मूर्ति ले लें, यह बिल्कुल नहीं दूंगा।'
बाबा ने माँ से गुहार लगाई 'हे माँ जब तुझे नहीं चलना था तो मुझे बुलाया क्यूँ ?' अंततः माँ ने अपने पुत्र की गुहार सुनी और शाम के समय मूर्तिकार माँ की वहीं मूर्ति देने को तैयार हो गया। आखिर 6 बजे बाबा जी माँ काली की अपनी वांछित मूर्ति लेकर घर पहुँचे तो घर वाले खुशी एवं आश्चर्य में पड़ गये कि माँ को कहाँ विराजमान किया जाये? माँ की प्रतिमा आने के साथ अस्पताल से खबर आई कि पत्नी की हालत खतरे से बाहर है। अंततः माँ की प्रतिमा पूजास्थल पर लगाई गयी तब से लेकर आज तक माँ की पूजा अनवरत जारी है। वर्तमान समय में खप्पर वाली काली माँ का मंदिर सिद्धपीठ बन चुका है जहाँ केवल हिन्दू जन ही नहीं वरन सभी धर्मों के लोग आकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। यहाँ आ रहे भक्तों को माँ के दर्शनों का तुरन्त लाभ मिलता है। वर्तमान मंदिर में चन्द्रमौलिश्वर भगवान शंकर की पारद लिंग, पीताम्बरा माँ की प्रतिमा काली माँ के साथ भव्य रूप से प्रतिष्ठापित है। मान्यता है कि 21 रविवार को माँ का दर्शन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
( पीतांबरा माँ काली पर यह लेख मासिक पत्रिका थर्टी डेज के प्रवेशांक अक्टूबर 2008 में पूर्व मे प्रकाशित हो चुका है)
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