शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

व्योमेश की कविताये: आज इस ख्वाब को सच में....

आज इस ख्वाब को चलो सच में सजाया जाए
हम गरीबो का भी एक देव बनाया जाए.
देव ऐसा जो चडावे पे न बिक जाए
बस्तिया छोड़ कें महलो में ना वो बस जाये
हम उसक सुने, उससे कहे अपने गम
मन का दुःख दर्द जिसे जा के सुनाया जाए।
उसका मन्दिर मरमरका ना हो कच्चा हो
वह कुछ और भले हो ना मगर सच्चा हो
सोने चंडी की नही, मूरत तो भी क्या है गम
खेत की माटी से उसकी मूरत को बनाया जाए।
हम गरीबो की रोटी में जो खुश हो ले
हमारे टूटे हुए बर्तन में जो पानी पी ले
हमारे टूटे हुए झोपडी में सो जाए जो
ऐसे ही देव को मन्दिर में बसाया जाए।
जो हर शाम हर मेहनतकश को रोटी दे दे
दिन के थके हारे को रातो को एक छत दे दे
और कुछ न दे तो वो हमको सलामत रखे
अपने उस देव से बस ये ही मनाया जाए।