शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

व्योमेश की कविताये: हम अपनी रह बना लेंगे....

रूठे खुशी , हँसी रूठे , तन थके हुए तो क्या
अपने पारो से चल कर ,हम मंजिल पास बुला लेंगे
सिसकी से जी बहला लेंगे ,आंसू कपोल सहला देंगे
पीड़ा तेरे ही आँचल में, हम संसार भुला देंगे
ले लो अपना फूल, सुरभि से महका लो अपना आँगन
कांटे ही दो हमें , हम काँटों से ही फूल खिला देंगे
अमृत तेरा हो जाए ,तुम जियो अमर हो कर लेकिन
विष ही दे दो हमे ,हलाहल विष पीकर प्यास बुझा लेंगे
तुम्हे उजालो से मतलब है ,जाओ अपना पथ पकडो
हम अंधियारी रातो में भी अपनी रह बना लेंगे
तुम महलो का सुख भोगो, तुम्हे मुबारक वह जीवन
मेरा अपना फक्कड़पन है ,सडको पे अलख जगा लेंगे
सुखी रहो ,तेरे सुख को मई नही बटने वाला हूँ
पीडा ही थाती है अपनी,हम पिदगले लगा लेंगे
पीडा मेरी जीवन संगिनी, सहचारी जीवन की
हम पिदाके पीडा मेरी, नभ को ब्यथा सुना लेंगे
होठ सी लिया है अब हमने ,हमको अब मूक ही समझो
पी न सकेंगे जब आंसू , हम मोटी से सज सजा लेंगे.

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