पहाड़ के शिखर पर बैठा रहा
सूरज, उदास अनमना सा
पहाड़ ने सूरज से पूछा
क्यों ?, आज घर नही जाना
इतने उदास क्यों बैठे हो?
क्या आसमान से झगडा हुआ है
सूरज ने उसे देखा बहुत बेबसी से
फ़िर रुक रुक कर बोला
बहुत थके थके शब्दों में
नही, आसमान से झगडा नही हुआ है
घर भी जाना है , पर मै उदास हूँ
क्योकि आज धरती ने मुझसे पूछा था
की सूरज बाबा तुम किसके लिए चमकते हो?
क्या ख़ुद के लिए या इन्सान के लिए?
क्या तुम नही जानते कि
आज के इन्सान को
रौशनी नही चाहिए
क्योकि वो अंधेरे में रहने का
आदी हो चुका है.
मै तब से सोच रहा हूं
कि क्या मेरा तप कर जलते रहना
बेमतलब व बेकार है?
या मेरी नियति ही है
तपते व जलते रहने की
क्योंकि मै सोचता हूं
कि हजारोंआशाये
मेरे विश्वास पर टिकी हैं
(बनारस, 17अक्टूबर 1996)
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