शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

व्योमेश की कविताये: पत्थर की मूरत...

पत्थर की मूरत को हमने जिस दिन देवता मन लिया
उस दिन हमने मानव से बढ़ पत्थर को सम्मान दिया
मानव तो बस अपनी ही कहता अपने स्वारथ में रहता
अणि सीमाओ में रह कर लोगो को मन नही देता
पर पत्थर सबकी सुनता है अपनी कभी नही कहता
बारिश सर्दी धुप सहे पर कभी शिकायत न करता
बस इस कारन निजिवन को हमने जीवन देवता मान लिया।
हम नही जानते देव देवता है या महज कल्पना है
देवता स्वयं ही मानव है या वह भी एक वेदना है
इस लिए सख्त आकृति वाले देवता को पूजा है हमने
मानवता के आदर्शो को चुन केर देवता का नाम दिया
राम कृष्ण हो या शिव हो इस मानवता के वाहक है
मानवता के लिए दिया इनने अपना जीवन है
इन आदर्शो पर चलने जब मानव कोई नही आया
पत्थर को ही आदर्शो का अनुपूरक हम ने मान लिया.


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