गुरुवार, 11 सितंबर 2008

नूतन वर्षाभिनन्दन, 2003, :व्योमेश की कविताये: तुम आ गए....01-01-2003

कल साँझ
ठिठक गए थे मेरे पाँव
मैदेर तक देखता रहा
गंगा में तरते दीप मालाओं को
बीत वर्ष को विदा देते हुए
शन्ख्धवनि, घंटे , घरियालों के मध्य
और आज अल सुबह
अचानक सुन कर किसी की आहट
मैंने खोल दिए थे द्वार
एक ठिठुरता कोहांसा भरा हवा का झोका
मुझे हौले से छूकर निकल गया
झनझना उठे तन मन के सुप्त तर
तभी मैंने पहचान ली थी
तुम्हारी पदचाप
तुम आ गए हो न नववर्ष?

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