रूठे खुशी , हँसी रूठे , तन थके हुए तो क्या
अपने पारो से चल कर ,हम मंजिल पास बुला लेंगे
सिसकी से जी बहला लेंगे ,आंसू कपोल सहला देंगे
पीड़ा तेरे ही आँचल में, हम संसार भुला देंगे
ले लो अपना फूल, सुरभि से महका लो अपना आँगन
कांटे ही दो हमें , हम काँटों से ही फूल खिला देंगे
अमृत तेरा हो जाए ,तुम जियो अमर हो कर लेकिन
विष ही दे दो हमे ,हलाहल विष पीकर प्यास बुझा लेंगे
तुम्हे उजालो से मतलब है ,जाओ अपना पथ पकडो
हम अंधियारी रातो में भी अपनी रह बना लेंगे
तुम महलो का सुख भोगो, तुम्हे मुबारक वह जीवन
मेरा अपना फक्कड़पन है ,सडको पे अलख जगा लेंगे
सुखी रहो ,तेरे सुख को मई नही बटने वाला हूँ
पीडा ही थाती है अपनी,हम पिदगले लगा लेंगे
पीडा मेरी जीवन संगिनी, सहचारी जीवन की
हम पिदाके पीडा मेरी, नभ को ब्यथा सुना लेंगे
होठ सी लिया है अब हमने ,हमको अब मूक ही समझो
पी न सकेंगे जब आंसू , हम मोटी से सज सजा लेंगे.
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
व्योमेश चित्रवंश 0101194 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
व्योमेश चित्रवंश 0101194 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)