अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
गुरुवार, 16 दिसंबर 2021
काशी विश्वनाथधाम का स्थापना संघर्ष
शुक्रवार, 5 नवंबर 2021
व्योमवार्ता/आज के दीवाली का सच
बुधवार, 15 सितंबर 2021
व्योमवार्ता/ श्रीमद्भागवदगीता का व्यवहारिक पक्ष
सोमवार, 13 सितंबर 2021
व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-8)
व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-8) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13सितंबर2021
आज चर्चा उन चिकित्सकों की जो आज भी चिकित्सा धर्म के प्रति अपने समर्पण से वास्तव मे धरती के भगवान कहे जा सकते हैं। ये नव दधिचि बिना प्रचार प्रसार के अपने मरीजों की सेवा करते हुये हिप्पोक्रित्ज के शपथ को आज भी अपने जीवनर्या मे शामिल किये हैं। ऐसे ही एक युवा और समर्पित चिकित्सक है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान मे मेडिसिन के प्रोफेसर डा० दीपक गौतम। डा० दीपक मेडिसिन विभाग के लगभग सभी ओपीडी मे अपनी सेवा दे चुके है चाहे वह किशोर चिकित्सा हो या जरायु चिकित्सा या माडर्न जनरल मेडिसिन, पर हर विभाग से दूसरे विभाग मे जाने के बाद भी उनके पुराने मरीजों की फेहरिस्त उनसे जुड़ी ही रहती है। डा० गौतम के बार बार विभाग बदलने के पीछे संस्थान की अंदरूनी राजनीति भी हो सकती है पर इससे उनके चिकित्सा धर्म पर कोई साईड इफेक्ट नही पड़ता। अपने चैम्बर मे भीड़ भरे पर तनाव मुक्त माहौल मे सबसे मुस्करा कर सबकी समस्यायें सुनते सबको सामान्य भाव से सबको समझाते रहते है। कोई तनाव नही कोई उलझन नही चेहरे पर एक आत्मसंतोष व मन मे सेवा भाव ही सामने बैठे मरीज के मन मे आत्मविश्वास भर देता है।
डॉ०दीपक गौतम के सेवा भाव का कायल मै पांच साल पहले हुआ। मेरी माँ के पाटस्पाईन के सर्जरी के बाद उन्हे मेडिसिन वार्ड मे भरती करना पड़ा था। डा० दीपक गौतम जी के देखरेख मे उन्हे प्राईवेट वार्ड मे भरती कराया गया। जो लोग बीएचयू हास्पीटल से परिचित होगें उन्हे मालूम होगा कि सर सुन्दर लाल अस्पताल का प्राईवेट वार्ड अस्पताल के बिलकुल किनारे है ठीक आईएमएस के सामने। मेडिसिन वार्ड से प्राईवेट वार्ड की अच्छी खासी दूरी। मिलने वाले और परिचितजन पूछते थे कि यहां प्राईवेट वार्ड मे क्यों भरती करा दिये यहां तो डाक्टर आते ही नही है।वार्ड से ही चले जाते है। यह सुन कर हम भी पहले दिन काफी परेशान हुये पर यह परेशानी मेरे लिये मात्र इसलिये नही खड़ी हुई क्योंकि मेरी माँ की चिकित्सा डॉ०दीपक गौतम कर रहे थे। दिन भर मे कम से कम चार बार स्वयं आने और हर दो घंटे पर अपने रेजिडेंट डाक्टरों को भेजने मे उनसे किसी दिन कोताही या लापरवाही हुई हो याद नही। ऐसा नही ये सिर्फ मेरी माँ के साथ हुआ हो बल्कि अपने हर मरीज के बारे मे उनकी जिम्मेदारी और फीडबैक लेना डा० दीपक गौतम का स्वभाव है।
मॉ के डिस्चार्ज होने के दो महीने के बाद एक बार उनकी रिपोर्ट लेकर डा० दीपक गौतम जी को दिखाना था। मै कचहरी से होकर अपने मित्र सूर्यभान जी के साथ समय से निकलने के बावजूद शहर के जाम मे उलझ कर जब तक उनके ओपीडी पहुंचा। ओपीडी बंद हो चुके काफी देर चुकी थी और वे निकल चुके थे। मैने उनके मोबाइल नंबर पर एक बार संपर्क करने का प्रयास यह सोच कर किया कि संभवतः संस्थान मे मिल जायें तो मुझे फिर से पूरे शहर का चक्कर काट कर आना नही पड़ेगा। मोबाइल मिलते ही उन्होने बताया कि वे तो आवास पर पहुँच चुके है। मैने कोई बात नही कहते हुये फोन काट दिया। तभी पुन: उनका कालबैक आया "आप कहां पर है और कहां जाना है? " मेरे बताने पर कि अब हास्पीटल से निकल रहा हूँ, उन्होने पूछा कि "किधर से आप जायेगें।आप बृजइंक्लेव मेरे आवास पर आ सकते है तो आपको दूबारा नही आना होगा।" आश्चर्य यह कि तब तक मै उनके लिये एक अननोन नंबर ही था, जिसे वे शायद पहचानते भी नही थे। जब मै उनके बताये लेन मे बृजइंक्लेव पहुंचा तो वे लेन मे खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे।उन्होने न सिर्फ रिपोर्ट देख कर दवाओं मे परिवर्तन किया बल्कि घर मे अकेले रहने होने के बावजूद स्वयं चाय बना कर भी हम लोगों को पिलाये।मेरे धन्यवाद देने पर वे और विनम्र हो गये, "अरे ये तो मेरा काम ही है। आपको केवल इसके लिये दूबारा इतनी दूर से आना पड़ता। "
रास्ते मे लौटते समय हम और सूर्यभान जी यही बात कर रहे थे कि आज के चिकित्सा स्वार्थ के धंधे मे यह चिकित्सा धर्म बिरले ही देखने को मिलता है।ऐसा अनुभव मात्र हमारे साथ ही नही औरों के साथ भी हुआ है। जो भी डा० दीपक गौतम के यहां गया उनका कायल बन कर ही लौटा। यहीं कारण है कि उनके मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और अपने मरीजों की सेवा मे ही अपना सुख पाने वाले डॉ०दीपक गौतम के प्रशंसको का सूकून भी।
आज भी ऐसे ही डाक्टरों से चिकित्सा धर्म की प्रतिष्ठा बनी हुई है जो आधुनिक दधिचि, चरक और सुश्रुत के रूप मे सेवा भाव मे लगे हुये है। धन्यवाद #डॉ०दीपक_गौतम।
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काशी, 13सितंबर 2021,सोमवार
रविवार, 12 सितंबर 2021
व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-7) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 12 सितंबर 2021
शनिवार, 11 सितंबर 2021
व्योमवार्ता/धरती के भगवान या मानवगिद्ध (भाग-6)
शुक्रवार, 3 सितंबर 2021
व्योमवार्ता/ सनातन इतिहासबोध व कथित नवबौद्ध राजनेता
सोमवार, 23 अगस्त 2021
व्योमवार्ता/ चाल-ढाल तो मेरी बचपन से ही वकील वाली थी। पर वकालत मे आने के लिये डिग्री लेना भी जरूरी था।🤪
व्योमवार्ता/ चाल-ढाल तो मेरी बचपन से ही वकील वाली थी। पर वकालत मे आने के लिये डिग्री लेना भी जरूरी था।🤪
नौंवीं कक्षा में मैंने किरकिट मैच खेलने के चक्कर मे विज्ञान की कॉपी नही बनाई थी और कॉपी चेक कराने का भयंकर दबाव था......
गूरूजी भी बहुत सख्त थे, पता चलता उनको तो उल्टा ही टांग देते या भरे क्लास मे मुर्गा बना देते। 😢😭
पूरे नौ अध्याय हो चुके थे......
लड़के 40- 40 रुपए वाले रजिस्टर भर चुके थे और मेरे पास रजिस्टर के नाम पर बस एक रफ़ कॉपी में ही थी 😐
दो रात एक मिनट भी नींद नहीं आई,
ऊपर से प्रिंसिपल साहब को पता चलने का डर 😞
इस प्रकार चेकिंग का दिन आ ही गया 😰
गूरूजी ने चेकिंग शुरू की 🤢 18 रोल नंबर वालों तक की कॉपी चेक हुईं और घंटी बज गई,
मैंने राहत की सांस ली..... 😁
तभी गूरूजी ने जल्दी जल्दी में कहा:-
सभी बच्चे अपनी अपनी कॉपी जमा करके दे दो, मैं चेक करके भिजवा दूंगॉ..... 🙄
तभी मेरा शातिर दिमाग घूमा🤔, और मैं भीड़ में कॉपियों तक गया और जैसे अलजेब्रा में मान लेते हैं
ठीक वैसे ही मैंने भी मान लिया कि कॉपी मैंने जमा कर दी ......😁😁
अब कॉपी की जिम्मेदारी गूरूजी की..... 😉
दो दिन बाद सबकी कॉपी आई लेकिन मेरी नहीं आई...आती भी कैसे......?☺️☺️😊😃😂
मैं गूरूजी के पास गया और बोला:-
सरजी, मेरी कॉपी नहीं मिली...🤔
वो बोले:-
मैं चेक कर लूंगा, स्टाफ रूममें होगी.....😏
अगले दिन मैं फिर पहुच गया और बोला :-
सर, मेरी कॉपी ?🤔
गूरूजी बोले-
स्टाफरूम में तो है नहीं, मेरे घर रह गई होगी, कल देता हूं 😏
मैंने कहा:- ठीक है 😊
अगले दिन.......
मैं फिर....सर कॉपी ? ☹️
सर बोले :-
बेटा मेने घर देखी थी,तुम्हारी कॉपी मिल गयी है, आज मैं लाना भूल गया, कल देता हूं 😊
मैं(मन ही मन ☺️😁):- वाह ! कमाल हो गया, कॉपी दिए बिना ही गूरूजी के घर में मिल गई , असंभव हुआ संभव 😆😂
अगले दिन मैं फिर:- सर कॉपी 😐
वो क्या है ना सर जी, याद भी करना भी जरूरी है😞🙄
और यूं मैंने 5 दिन तक जो मुझे मिला वही तनाव गूरूजी को दिया 😁
फिर गूरूजी ने हमको स्टाफरूम में बुलाया बोले:-
देखो बेटा! आपकी कॉपी हमसे गलती से खो गयी है 😐😐
मैंने ऐसा मुरझाया मुंह बना बनाया जैसे पता नहीं अब क्या होगा 😲😞🤕 और कहा:-
सर अब क्या होगा 🤢😢😟?
मैं दोबारा कैसे इतना लिखूंगा,याद कैसे करूंगा? इम्तिहान कैसे दूंगा, इतना सारा काम मैं फिर से कैसे लिखूंगा....? 😢😥😪😵
सर ने ज्यों ही कहा:- बेटा तुम चिंता ना करो🤔🤗 दसवें चैप्टर से कॉपी बनाओ और बाकी दोबारा मत लिखना, वो मैं बंदोबस्त कर दूंगा 🤔
ऐसे लगा जैसे भरी गर्मी में कलेजे पर बर्फ रगड़ दी हो किसी ने 15 अगस्त के दिन लड्डू की जगह छेने बँटे हों 🤗☺️😄😃😁😂🤣
मानो 50 किलो का बोझा सिर से उतर गया हो☺️ गूरूजी के सामने तो खुशी जाहिर नहीं कर सकता था 😆लेकिन
गूरूजी के जाते ही तीन बार घूंसा💪🏻 हवा में मारकर "Yes! Yes! Yes!" बोलकर अपन कालर ऊपर करते हुए आगे बढ़ लिया 😉
अगले दिन गूरूजी उन 9 चैप्टर की 80 पेज की फोटोस्टेट लेकर आये और मुझे देते हुए बोले:-
ये लो बेटा, कुछ समझ ना आए तो कभी भी आकर समझ लेना 🤗
तो साहेब बाद पढ़ाई जब नौकरी सौकरी नही मिली तो सोचा चलो पुराना अनुभव व्यवहार मे लाया जाये और वकील बन जाते है। कमाल देखिये विज्ञान का सिद्धांत विधि मे भी खूब कारगर हैहै🤪
(काशी, श्रावण पूर्णिमा, संवत2077 वि०, रविवार, 22अगस्त 2021)
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गुरुवार, 19 अगस्त 2021
व्योमवार्ता/धर्म बनाम आधुनिकता को समझने की जरूरत: रंगनाथ सिंह की फेसबुक वाल से
शनिवार, 14 अगस्त 2021
व्योमवार्ता/मानुष भज ले गुरू चरणम् । दुस्तर भव सागर तरणम...
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
व्योमवार्ता/आज के दौर का नंगा सच
व्योमवार्ता/आज के दौर का नंगा सच : व्योमेश चित्रवंश की डायरी
आज सोशल मीडिया पर एक सच्ची कहानी पढ़ी जो आज के दौर के सच को प्रतिबंबित करती है। हम सोचना पड़ेगा कि इस आपाधापी के जीवन मे भागदौड़ के दौर मे आखिर गड़बड़ी कहां हुई।
आखिर गड़बड़ कहाँ हुई ....???
एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया। वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया।
अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा. 5 बेडरूम का घर उसके पास। शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई।
एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।
लेकिन दुर्भाग्य वश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई।
ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में। उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने ‘What went wrong'? जानने के लिए study किया।
पहले कारण क्या था, suicide नोट से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियां ढूंढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :
This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए।
अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा फर्स्ट ही आया। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से। गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए। फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को, 12th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी। अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets।
कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है। आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे। वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है। और सवाल, सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है। कोई डेट sheet नहीं।
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था। एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है। Mom, there is a jungle out there।
इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये।
बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी देना जरूरी है, हर परिस्थिति को ख़ुशी ख़ुशी धैर्य के साथ झेलने की क्षमता, और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है।
बच्चे हमारे है, जान से प्यारे है।
(काशी, 3अगस्त 2021, मंगलवार)
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#व्योमवार्ता
मंगलवार, 27 जुलाई 2021
व्योमवार्ता/चकाचक बनारसी और सावन की बरसात
व्योमवार्ता/चकाचक बनारसी और सावन की बरसात
आज सावन की पहली बारिस बनारस मे हुई तो तन मन मयूर हो गया।भीषण ऊमस से जूझते तबियत को बरसात की फुहार का सुख देने छत पर चला गया तो बरसात की बूंदों के टपटप मे रम्मन चाचा "चकाचक बनारसी" की याद आ गई। रम्मन चच्चा हमारे रिश्तेदार थे, फक्कड़ बनारसी, कबीर की तरह बेबाक, मिजाज से शानदार।
रम्मन चच्चा की याद आई तो उनकी कविता भी याद आ गई। जिन्हे उनको सुनने का सुख मिला है उनके होठ बरबस ही फड़क पड़ेगें चकाचक जी की इस कविता के बोल के साथ।
बदरी के बदरा पिछयउलेस,
सावन आयल काऽ।
खटिया चौथी टांग उठेउलस,
सावन आयल काऽ।
मेहराये के डर से माई लगल छिपावै अमहर,
भईया के बहका फुसला के भउजी भागल नइहर,
सांझै छनी सोहारी दादा तोड़ लियइलन कटहर,
बाऊ छनलन ललका दारू बनके बड़का खेतिहर,
बुढ़िया दादी कजरी गईलेस,
सावन आयल काऽ।
गुद्दड़ कऽ चौउथी मेहररूआ मेंहदी सुरूक लियाईल,
सास क ओकरे कानी अंगुरी सड़-सड़ के बस्साइल,
झिंगुरी के घर भुअरी बिल्ली तिसरे बार बियाइल,
रामभजन क नई पतोहिया झूलै के ललचाईल,
धनुई फिर गोदना गोदवउलेस
सावन आयल का।
चमरउटी कऽ उलटल पोखरी मचल हौऽ छूआछूत,
खेलत हौऽ धरमू पंडित कऽ बेवा धईलेस भूत,
ननकू के ननका के मुंह पर मकरी देहलस मूत,
छींकत हौऽ जमिदार कऽ बिटिया गईल खुले में सूत,
पटवारी के दमा सतउलेस,
सावन आयल काऽ।
सांझ के अहिराने में गड़गड़ गड़गड़ बजल नगाड़ा,
कलुआ गनगनाय के नचलेस लगल कि जइसे जाड़ा,
ओकरे साथे अन्हऊ पंडित नचलन तिरछा आड़ा,
लोटा लेके दउड़त हंउवन उखड़ल ओनकर नाड़ा,
उन्हें गांव भर दवा बतउलेस,
सावन आयल काऽ।
मुखिया के बखरी पर भर-भर चीलम उड़ल खमीरा,
उनके पिछवारे मेघा के लपक के धईलेस कीरा,
एक कोठरी में मुखियाइन के उठल कमर में पीरा,
लगत हौऽ राजा कजरी होई बाजल ढोल मजीरा,
पुरुवा भक दे गैस बुझउलेस,
सावन आयल काऽ।
बदरी के बदरा पिछयउलेस,
सावन आयल काऽ।
खटिया चौथी टांग उठेउलस,
सावन आयल काऽ।
#चकाचक_बनारसी जी की मशहूर कविता #सावन_आयल_का..
#व्योमवार्ता/ व्योमेश चित्रवंश की डायरी, काशी, 27 जुलाई 2021, मंगलवार
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गुरुवार, 22 जुलाई 2021
व्योमवार्ता/ वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ता इंसान
वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ रहा इंसान, 19 साल में नर्क हो जाएगी जिंदगी
दुनिया को खत्म करने के लिए इंसान एकदम सही रास्ते पर चल रहा है. अब से मात्र 19 साल बाद यानी 2040 में इंसानों की जिंदगी नर्क हो जाएगी. ये दावा किया जा रहा है 1972 में बनाई गई एक रिपोर्ट का दोबारा विश्लेषण करने के बाद. क्योंकि इंसान लगातार अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों से भाग रहा है. आइए जानते हैं कि इस रिपोर्ट में इंसानों की जिंदगी को क्यों नर्क बनाने की बात कही गई है. ये क्यों कहा गया है कि इंसान वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ रहा है.
1972 में एक किताब छपी थी द लिमिट्स टू ग्रोथ (The Limits to Growth). इसमें मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि औद्योगिक सभ्यता हर कीमत पर लगातार आर्थिक विकास की ओर बढ़ती रही तो एक दिन सरकारें गिर जाएंगी. सहयोग खत्म हो जाएगा. इसकी वजह से भविष्य में 12 संभावित भयावह स्थितियां बन सकती हैं, जो किसी भी इंसान, समुदाय या देश और धरती के लिए फायदेमंद नहीं होंगी.
इस रिपोर्ट में बताई गई 12 संभावित खतरनाक स्थितियों में से एक सबसे भयावह स्थिति ये थी कि साल 2040 तक दुनिया का आर्थिक विकास तेजी से होगा. यह अपने पीक पर रहेगा. उसके बाद एकदम तेजी से नीचे गिरेगा. इसके साथ ही वैश्विक आबादी कम होगी. खाना की कमी होगी. साथ ही प्राकृतिक संसाधनों की भारी किल्लत होगी. इसे बिजनेस ऐज यूजुअल (Business As Usual - BAU) सीनेरियो कहा गया।
इस वैश्विक गिरावट से इंसानों की नस्ल तो खत्म नहीं होगी, लेकिन बिना पैसे, बिना खाने और बिना प्राकृतिक संसाधनों के इनकी जिदंगी नर्क हो जाएगी. स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग पूरी दुनिया में गिर जाएगा. अब इस बात की पुष्टि और वर्तमान परिस्थितियों में क्या होगा भविष्य में यह जानने के लिए MIT की सस्टेनिबिलिटी और डायनेमिक सिस्टम एनालिसिस रिसर्चर गैरी हैरिंग्टन ने इस रिपोर्ट का आज के अनुसार फिर से विश्लेषण किया. जिसकी रिपोर्ट येल जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.
पिछले साल ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हुई हैं. वो आज के रियल वर्ल्ड डेटा के साथ द लिमिट्स टू ग्रोथ (The Limits to Growth) का एनालिसिस कर रही हैं. इस एनालिसिस में गैरी ने 10 फैक्टर्स पर ध्यान दिया. जिनमें आबादी, प्रजनन दर, प्रदूषण स्तर, खाद्य उत्पादन और औद्योगिक आउटपुट प्रमुख हैं. उन्होंने देखा कि इस एनालिसिस के परिणाम बहुत हद तक 1972 में प्रस्तावित BAU सीनेरियो से मिलते-जुलते हैं. हालांकि, एक जगह रियायत मिलने की संभावना है.
गैरी ने बताया कि एक सीनेरियो उस रिपोर्ट में बताई गई थी, जिसे कॉम्प्रिहेंसिव टेक्नोलॉजी (CT) कहा गया. यानी तकनीकी रूप से इतना ज्यादा विकास हो जाए कि प्रदूषण कम किया जा सके और खाद्य सामग्रियों का उत्पादन बढ़ाया जा सके. ताकि प्राकृतिक संसाधनों की कमी भी हो तो खाने की कमी न हो. लेकिन इससे बढ़ती हुई वैश्विक आबादी और व्यक्तिगत कल्याण की भावना को नुकसान पहुंचता है.
इसके पीछे वजह ये है कि जब प्राकृतिक संसाधनों की कमी होगी, तब आर्थिक विकास तेजी से नीचे की ओर गिरेगा. यानी आज के औद्योगिक सभ्यता का तेजी से पतन होगा. गैरी कहती है कि आज से करीब 10 साल बाद ही BAU और CT सीनेरियो के विकास में बाधा आने लगेगी. ये रुक जाएंगे. यानी लगातार विकास की कोई भी अवधारणा पूरी नहीं होगी. इससे इंसानों को नुकसान होने लगेगा.
गैरी ने कहा फिलहाल अच्छी खबर ये है कि अब भी देर नहीं हुई है. इन दोनों परिस्थितियों से बचने के लिए इंसानी समाज को सही दिशा और दशा में काम करना होगा. इसका विकल्प है - स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो (Stablilized World Scenario) यानी स्थिर दुनिया परिस्थिति. इस स्थिति में आबादी, प्रदूषण, आर्थिक विकास तो बढ़ेंगे लेकिन प्राकृतिक संसाधन धीरे-धीरे कम होंगे. इससे फायदा ये होगा कि जैसे ही प्राकृतिक संसाधनों की कमी दिखे, आप बाकी को रोक दें या सीमित कर दें.
तकनीकी विकास के साथ स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो को चलाएं तो उससे वैश्विक समाज की प्राथमिकताएं बदलेंगी. गैरी ने कहा कि लोगों को अपने मूल्यों पर काम करना होगा. नीतियां बनानी होंगी. परिवार छोटे रखने होंगे. चाहतें और जरूरतें कम करनी होंगी. जन्म दर को नियंत्रित करना होगा. औद्योगिक आउटपुट को सीमित करना होगा, सेहत और शिक्षा को प्राथमिकता से चलाना होगा. इससे प्राकृतिक संसाधन सीमित तरीके से खर्च होंगे. तब धरती बचेगी, इससे इंसान और उसके देश बचेंगे.
स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो (Stablilized World Scenario) के ग्राफ को देखें तो इससे पता चलता है कि उस समय यानी 20 साल बाद भी वैश्विक आबादी के हिसाब से खाद्य सामग्री रहेगी. प्रदूषण कम होगा. प्राकृतिक संसाधनों की कमी स्थिर हो जाएगी. सामाजिक खात्मे को बचाया जा सकेगा. ये एक काल्पनिक परिस्थिति लगती है क्योंकि उस समय तक कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ चुकी होगी. लेकिन अगर इस सीनेरियो के हिसाब से चले तो वह भी कम होगा.
गैरी ने बताया कि कैसे इंसान ने वैश्विक स्तर पर एकता दिखाई है. कोविड-19 के समय में जब वैक्सीन विकसित करने और उसे पूरी दुनिया में पहुंचाने की बात आई तो इंसानों ने एकता दिखाई. सामुदायिक और वैश्विक जिम्मेदारी निभाई है. इसी तरह अगर हर देश का इंसान जलवायु समस्या को एकसाथ मिलकर खत्म करने की कोशिश करे तो कुछ भी संभव है. हम अपना भविष्य किसी भी समय सुधार सकते हैं.
गैरी हैरिंग्टन कहती हैं कि अभी देर नहीं हुई है. अगर इंसान अपनी आबादी, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और औद्योगिक विकास की रफ्तार को सीमित करे तो वह 20 साल बाद भी सुरक्षित रह सकता है. इसके लिए जरूरी है कि इंसानियत अपनी सीमा तय करें. या फिर किसी बिंदु पर पहुंच कर सीमा बना दें. ताकि मानव कल्याण की भावना धरती से खत्म न होने पाए.
(आजतक ब्लाग पर प्रकाशित एक लेख)
#व्योमवार्ता
काशी, 22जुलाई 2021, गुरूवार
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मंगलवार, 20 जुलाई 2021
व्योमवार्ता / धरती के भगवान (भाग-5)
धरती के भगवान (भाग-5)
पिछले दिनों बाबा #रामदेव ने एलोपैथ के कारोबार पर सवाल क्या उठाया। देश के डाक्टर्स बिलबिला उठे। पर एक कटु सच्चाई सबके सामन आ गई।डाक्टरों के बौखलाहट से ये तो समझ मे आ गया कि बाबा रामदेव ने मधु मख्खी के छत्ते को पत्थर मारा है जो बहुत सोची समझी स्टाइल से भारत की #प्राकृतिक_चिकित्सा को आहिस्ता आहिस्ता खत्म कर रहे थे और उसमे काफी हद तक सफल भी थे।
हमारे बड़े भाई डाॅ०उमा शंकर सिंह जी डा. उमा शंकर सिंह ने पूरे प्रकरण पर गहराई से विचार कर परिचित डाक्टरों के समक्ष कुछ सवाल उठाये पर किसी भी #डाक्टर ने इसका जबाब नही दिया। बल्क सच तो ये है कि धरती के भगवान कहे जाने वाले किसी डाक्टर के पास इन सवालों का जबाब है भी नही। यदि है तो वे देना नही चाहते। कुल मिला कर स्थिति जलेबी की तरह गोल गोल घूम वैसे हीह बन जाती है जो आपको बेहतरीन स्वाद के आड़ मे अनजानेन ही ढेर सारी चीनी खिला देती है। भाई उमा शंकर सिंह का #स्वैच्छिक_संगठनों मे कार्य करने व #ग्रामीण_स्वास्थ्य_शिक्षा पर कार्य करने का लंबा अनुभव रहा है। उनके उठाये सवाल हमें आधुनिक चिकित्सा पद्धति विशेषकर डाक्टरों के नीयत व कर्तव्य पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करते हैं।
वे सभी सवाल आज ज्यादा प्रासंगिक है जिन्हे अब जनता पूछना चाह रही है डाक्टरों से भी और सरकार से भी कि...
1.#एलोपैथी की दवाई में #MRP की जगह #प्रोडक्शन_कॉस्ट बता दे तो बड़ी बड़ी #फार्मास्युटिकल कंपनीयाँ कितनी लूंट मचा रही है वो जनता को समझ आएगा ।
2.एक ही दवाई की बीस कंपनी के अलग दाम क्यों है?
3.डॉक्टरों को यूरोप की टूर कंपनी वाले क्यों देते हैं ?
डॉक्टरो के घर के AC, TV, Fridge और बहोत सारी बाते #pharma कंपनीयो की देन क्यों होती है..?
4.#जेनरिक दवाइयों को #सरकार को क्यों लाना पड़ा है?
5.कुछ मेडिकल स्टोर्स 20 से 30 % डिस्काउंट क्यों देते हैं? इतना #डिस्काउंट है तो कमाई कितनी है?
6.हॉस्पिटल्स के कमरे का किराया 3 हजार से 60 हजार एक दिन का क्यों है? भारत की 5 स्टार 7 स्टार होटल से भी इन #हॉस्पिटल्स का भाडा ज्यादा क्यों है?
7.#मेडिक्लेम आने के बाद 1996 से मेडिकल #ट्रीटमेंट इतनी महेंगी क्यों हुई?
8.बड़े दवाई के #डिस्ट्रीब्यूटर दस बीस करोड़ की प्रॉपर्टी गाजर मूली के जैसे क्यों खरीदते हैं?
9.जब भी कोई नया हॉस्पिटल तैयार होता है तो वहा की pharmacy वाला वाला दुकान Shops करोडों में कैसे बिकती है
10.केंद्र सरकार भी दवाई की ऊपर भाव क्यों नही बांध सकती है?
11.#लूट_का_लाइसेंस किसने दिया इन फार्मा कंपनियों को?
12.सभी बातों को साइंस से प्रमाणित किया जाना अच्छी बात है लेकिन विज्ञान में आज जो सही है वो कल गलत हो जाता है ऐसा क्यों है?
13.दूसरी #पारम्परिक_दवाईओ को जो आज तक हमारी दादीमाँ और वैध देते आये थे उसको नजरअंदाज करने के लिए #ब्रेनवॉश किस ने किया?
14.दूसरी सब चिकित्सा पद्धतियों को क्यों नजरअंदाज किया गया?
15.एलोपैथी की उम्र कितनी ? प्राचीन #आयुर्वेद कितना पुराना?,
महर्षि #चरक को किसने भुला दिया?
16.भारत मे मौसम अलग अलग है..उस हिसाब से हमारे खान पान है, सेंकडो मिठाई खाने के बाद हमारे बाप दादा 100 साल निकाल लेते थे।
17.#डायबिटीज में सुगर की मात्रा हर चार-पाच साल में नीचे लाने का पाप किसका है?याने जो चार साल पहले #sugar_patient नही था, वो अचानक से अब #Diabetes का रोगी हो गया।
🤔🤔
आप को क्या करना है वो आप को तय करना है। 🤔
*देश की जनता तक #सत्य पहुँचना जरूरी हैं। क्योंकि धरती के भगवान के मुखौटे मे छिपे इन मानवगिद्धों का असली रूप अब ऊजागर होना ही चाहिये।
#धरती_के_भगवान
#मानवगिद्ध