गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

काशी विश्वनाथधाम का स्थापना संघर्ष

ये कहानी है अहल्या बाई होल्कर और श्रीकाशी विश्वनाथ की….. इसी कहानी में मोदी और श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के विरोध का रहस्य छिपा है……..

विरोध केवल मोदी का ही नहीं हो रहा है और विरोध पहली बार ही हो रहा है ऐसा भी नहीं है।विरोध तो श्रीमंत मल्हार राव होल्कर और मातोश्री अहल्याबाई होल्कर का भी हुआ था। 

बुरा लग सकता है लेकिन आज लिखना आवश्यक है: 1735 में बाजीराव पेशवा की माँ राधाबाई तीर्थयात्रा पर काशी आईं।उनके लौटने के पश्चात ‘काशी के कलंक’ को मिटा देने के संकल्प के साथ पेशवा बाज़ीराव के सेनापति मल्हार राव होल्कर 1742 में गंगा के मैदानों में आगे बढ़ रहे थे। उस समय पेशवाओं की विजय पताका चहुँओर लहरा रही थी।काशी विश्वनाथ के मन्दिर की मुक्ति सुनिश्चित थी। 27 जून 1742 को मल्हार राव होल्कर जौनपुर तक आ चुके थे। उस समय काशी के कुछ तथाकथित प्रतिष्ठित लोग उनके पास पहुँच गए और कहा कि “आप तो मस्जिद को तोड़ देंगे लेकिन आप के चले जाने के बाद मुसलमानों से हमारी रक्षा कौन करेगा।” इस तरह बाबा की मुक्ति के बजाय स्वयं की सुरक्षा को ऊपर रखने वाले काशी के कुछ धूर्तों ने उन्हें वापस लौटा दिया। बाबा विश्वनाथ के मन्दिर की पुनर्स्थापना होती होती रह गई। मल्हार राव होल्कर लौट तो गए लेकिन उनके मन में कसक बनी रही। वही कसक और पीड़ा श्रीमन्त मल्हार राव होल्कर से उनकी पुत्रवधू अहिल्याबाई होल्कर को स्थानान्तरित हुई।

अहल्याबाई के लिए उनके ससुर मल्हार राव होल्कर ही प्रेरणा थे क्योंकि अहल्याबाई का जन्म किसी राजघराने में नहीं हुआ था। उनके पिता एक गाँव के सरपंच मात्र थे। एक दिन कुमारिका अहल्या मंदिर में सेवा कर रही थी। भजन गाती और गरीबों को भोजन कराती अहल्याबाई के उच्च कोटि के संस्कारों को मालवा के अधिपति मल्हारराव होल्कर ने देखा। उसी समय उन्होंने तय कर लिया कि अहल्य ही उनके बेटे खाण्डेराव की पत्नी बनेंगी। वर्ष 1733 में अहल्याबाई का विवाह खाण्डेराव होल्कर से हो गया। अहल्याबाई की आयु 8 वर्ष थी। खाण्डेराव अहल्याबाई से 2 साल बड़े थे।

सन 1754 में एक युद्ध के दौरान खाण्डेराव वीरगति को प्राप्त हो गए। अहल्याबाई के जीवन में अंधेरा छा गया। अहल्याबाई सती हो जाना चाहती थी किन्तु मल्हार राव ने अहल्याबाई को न केवल सती होने से रोका बल्कि मानसिक तौर पर उन्हें मजबूत भी किया। शासन सञ्चालन के सूत्रों का प्रशिक्षण देकर मालवा का शासन सम्भालने के लिए तैयार किया। 1766 में मल्हार राव के मृत्योपरांत अहल्याबाई होल्कर ने मालवा का शासन अपने हाथों में ले लिया।

काशी विश्वनाथ का मन्दिर महारानी अहल्याबाई होल्कर की अमूल्य कीर्ति है। काशी के लिए अहल्याबाई होल्कर का क्या योगदान है। इसे इतिहास का अवलोकन किए बिना नहीं समझा जा सकता।

आनन्दवन काशी को पहला आघात 1194 में लगा था। जब मोहम्मद गोरी के सिपहसलार क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने काशी विश्वनाथ समेत यहाँ के प्रमुख मंदिरों को तोड़ दिया। बाद के कालखण्डों में हुसैन शाह सिरकी (1447-1458) और सिकंदर लोधी (1489-1517) ने काशी विश्वनाथ और काशी के अन्य प्रमुख मंदिरों को तोड़ा। बार-बार काशी पर इस्लामिक हमलावर आघात करते रहे लेकिन शिवनगरी काशी पुनः पुनः हिन्दुत्व के अमृततत्व से सँवरती रही।

अकबर के कालखण्ड में काशी के जगतप्रसिद्ध धर्मगुरु पण्डित नारायण भट्ट की प्रेरणा से राजा टोडरमल ने 1585 में पुनः काशी विश्वनाथ के भव्य मंदिर का निर्माण कराया। हालाँकि इसमें अकबर का कोई योगदान नहीं था। यह बात इसलिए लिखनी पड़ रही है कि सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपने एक लेख में लिखा था और अभी फिर से लिखा है कि विश्वनाथ मंदिर के लिए अकबर ने धन दिया था।यह सच नहीं है। इसी मन्दिर को औरंगज़ेब के 18 अप्रेल 1669 के फ़रमान से तोड़ दिया गया। मन्दिर के ध्वस्त अवशेषों से ही उसी स्थान पर वर्तमान मस्जिद खड़ी कर दी गयी। पीछे की तरफ मन्दिर का कुछ हिस्सा छोड़ दिया गया ताकि इसे देख कर ग्लानि से हिन्दु रोते रहें।

काशी विश्वनाथ का मन्दिर ध्वस्त कर दिया गया था लेकिन 1669 से ही भग्नावशेष एवं स्थान की पूजा चलती रही। मुक्ति के विभिन्न प्रयास भी चलते रहे। 

मंदिर का पुनर्निर्माण और भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा करना समस्त राजा महाराजाओं और संतों के सामने प्रश्नचिह्न बना हुआ था। काशी के तीर्थपुरोहितों की बहियों से ऐसा ज्ञात होता है कि 1676 ई. में रीवा नरेश महाराजा भावसिंह तथा बीकानेर के राजकुमार सुजानसिंह काशी आए थे। इन दोनों राजाओं ने मंदिर निर्माण की पहल तो की लेकिन सफल नहीं हो पाये। उन्होंने विश्वेश्वर के निकट ही शिवलिंगों को स्थापित अवश्य किया। इसी क्रम में मराठों के मंत्री नाना फड़नवीस के प्रयास भी असफल रहे। 1750 में जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह ने परिसर की पूरी ज़मीन ख़रीद कर विश्वनाथ मंदिर के निर्माण की योजना बनायी जो कि परवान नहीं चढ़ सकी। 7 अगस्त 1770 को महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था।यह योजना भी पूरी नहीं हो पायी।

इतने असफल प्रयासों के पश्चात अहल्याबाई होलकर को सफलता प्राप्त हुई। अहल्याबाई ने वह करके दिखा दिया जिसे समस्त हिन्दू राजा 111 वर्षों में नहीं कर सके थे। अहल्याबाई के प्रयासों से 1777 से प्रारंभ होकर 1781 ई. में वर्तमान मंदिर का निर्माण मूल स्थान से दक्षिण की दिशा में थोड़ा हटकर भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूर्ण हुआ।

महारानी अहल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना के साथ-साथ जो भी धार्मिक स्थल भग्नावस्था में थे, उन सभी को शास्त्रीय मर्यादाओं के साथ पुर्नस्थापित करवाया। वहाँ पूजा-पाठ नित्य होता रहे, इसकी व्यवस्था भी राजकीय कोष से करवायी।

किन्तु काशी ने उस समय भी महारानी का साथ नहीं दिया था। शिवलिंग की प्रतिष्ठा के लिए महारानी को माहेश्वर से पण्डितों बुलवाना पड़ा था। मन्दिर के लिए नित्य पुजारी को लेकर भी समस्या आयी। काशी का कोई ब्राह्मण पुजारी के पद पर कार्य करने को तैयार नहीं था। इसलिए काशी विश्वनाथ का पहला पुजारी तारापुर के एक भूमिहार ब्राह्मण को बनाया गया। ये प्रमाण आज भी इन्दौर के अभिलेखागार में सुरक्षित हैं। 

मल्हार राव को मार्ग से भटकाने वाले और अहल्याबाई का साथ न देने वालों धूर्तों के वंशज आज भी काशी में ही हैं। यही लोग वर्तमान में श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का विरोध कर रहे हैं। 

294 वर्षों के बाद नरेन्द्र मोदी ने अहल्याबाईके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ा कर उन्हें सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित की है। नए परिसर में मातोश्री की प्रतिमा स्थापित कर उनकी कीर्ति को सदैव के लिए अक्षय कर दिया है। तीन हज़ार वर्गफीट में सिमटा मन्दिर आज पाँच लाख वर्ग फ़ीट के भव्य परिसर में विस्तार ले चुका है। काशी की छाती पर खड़ा हुआ ‘कलंक’ एक कोने में सिमट चुका है। विश्व के नाथ को गलियों में सिमटा देख कर हृदय में ग्लानि लिए सदियों से रोता हिन्दू आज धाम के विस्तारीकरण से प्रफुल्लित है।गजवा-ए-हिंद का सपना देखने वाले मुग़लों के वंशजों को भी अब विश्वनाथ धाम के दरवाज़े से ही प्रवेश लेना होगा। नरेन्द्र मोदी अपना कार्य कर चुके। अब बचे हुए कार्य को पूरा करने की ज़िम्मेदारी हिन्दू समाज के कन्धों पर है।
(बनारस, 16दिसंबर 2021, गुरूवार)
http://chitravansh.blogspot.com

शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

व्योमवार्ता/आज के दीवाली का सच

आज सोशल मीडिया पर एक संदेश मिला. पढ़ कर दिल के बहुत करीब से एक हल्की सी चित्कार महसूस हुई. आज के समाज मे औपचारिकताओं को निभाते हुये क्या हम इतने यांत्रिक हो गये हैं कि रिश्ते बस नाममात्र को रह गये है़. सोचने की बात है.

सुबह से संदेशे तो बहुत आये लेकिन मेहमान कोई नही आया. सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं.
दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है. संदेशें आते जा रहे हैं. बधाईयों का तांता है . लेकिन मेहमान नदारद है .
ये है आज के दौर की दीवाली. 
मित्रों, घर के आसपास के पडौसी अगर छोड़ दें तो त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है. पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है. वो खुद नही आते.
दरअसल घर अब घर नही रहा. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये. घर अब सिर्फ घरवालों का है. घर का समाज से कोई संपर्क नही है. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं. हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा. अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है.
वैसे भी शादी अब मेरिज हाल में होती है. बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है. बीमारी में नर्सिंग होम में खैरियत पूछी जाती है. और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पहुँच जाते है.
सच तो ये है कि जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये है तब से मेहमान क्या ...चोर भी घर नही आते.
मे सोचता हूँ कि चोर आया तो क्या ले जायेगा...फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप..टीवी...कितने में बेचेगा इन्हें चोर? अरे री सेल तो olx ने चौपट कर दी है. चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है.

सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही  बचा है.
जी हाँ....क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ? 
इस दीवाली जरा इस सवाल पर गौर करियेगा. नही तो एक दोस्त के घर हो आइयेगा ... अगले साल आपके घर भी कोई आने लगेगा.
(बनारस, कार्तिकशुक्ल प्रतिपदा 5 नवम्बर 2021)
http://chitravansh.blogspot.com

बुधवार, 15 सितंबर 2021

व्योमवार्ता/ श्रीमद्भागवदगीता का व्यवहारिक पक्ष

शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में, संजय कुरुक्षेत्र के उस स्थान पर गए जहां संसार का सबसे महानतम युद्ध हुआ था।

उसने इधर-उधर देखा और सोचने लगा कि क्या वास्तव में यहीं युद्ध हुआ था? यदि यहां युद्ध हुआ था तो जहां वो खड़ा है, वहां की जमीन रक्त से सराबोर होनी चाहिए। क्या वो आज उसी जगह पर खड़ा है जहां महान पांडव और कृष्ण खड़े थे?

तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने वहां आकर धीमे और शांत स्वर में कहा, "आप उस बारे में सच्चाई कभी नहीं जान पाएंगे!"

संजय ने धूल के बड़े से गुबार के बीच दिखाई देने वाले भगवा वस्त्रधारी एक वृद्ध व्यक्ति को देखने के लिए उस ओर सिर को घुमाया।

"मुझे पता है कि आप कुरुक्षेत्र युद्ध के बारे में पता लगाने के लिए यहां हैं, लेकिन आप उस युद्ध के बारे में तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप ये नहीं जान लेते हैं कि असली युद्ध है क्या?" बूढ़े आदमी ने रहस्यमय ढंग से कहा।

"तुम महाभारत का क्या अर्थ जानते हो?" तब संजय ने उस रहस्यमय व्यक्ति से पूछा।

वह कहने लगा, "महाभारत एक महाकाव्य है, एक गाथा है, एक वास्तविकता भी है, लेकिन निश्चित रूप से एक दर्शन भी है।"

वृद्ध व्यक्ति संजय को और अधिक सवालों के चक्कर में फसा कर मुस्कुरा रहा था।

"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि दर्शन क्या है?" संजय ने निवेदन किया।

अवश्य जानता हूं, बूढ़े आदमी ने कहना शुरू किया। पांडव कुछ और नहीं, बल्कि आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं - दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण - और क्या आप जानते हैं कि कौरव क्या हैं? उसने अपनी आँखें संकीर्ण करते हुए पूछा।

कौरव ऐसे सौ तरह के विकार हैं, जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं लेकिन आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है।* पर क्या आप जानते हैं कैसे?

संजय ने फिर से न में सर हिला दिया।

"जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं!" यह कह वह वृद्ध व्यक्ति बड़े प्यार से मुस्कुराया और संजय अंतर्दृष्टि खुलने पर जो नवीन रत्न प्राप्त हुआ उस पर विचार करने लगा..

"कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज, आपकी आत्मा, आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं और यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।" वृद्ध आदमी ने कहा।

संजय अब तक लगभग चेतन अवस्था में पहुंच गया था, लेकिन जल्दी से एक और सवाल लेकर आया।

फिर कौरवों के लिए द्रोणाचार्य और भीष्म क्यों लड़ रहे हैं?

भीष्म हमारे अहंकार का प्रतीक हैं, अश्वत्थामा हमारी वासनाएं, इच्छाएं हैं, जो कि जल्दी नहीं मरतीं। दुर्योधन हमारी सांसारिक वासनाओं, इच्छाओं का प्रतीक है। द्रोणाचार्य हमारे संस्कार हैं। जयद्रथ हमारे शरीर के प्रति राग का प्रतीक है कि 'मैं ये देह हूं' का भाव। द्रुपद वैराग्य का प्रतीक हैं। अर्जुन मेरी आत्मा हैं, मैं ही अर्जुन हूं और  स्वनियंत्रित भी हूं। कृष्ण हमारे परमात्मा हैं। पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं, मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक। द्रोपदी कुंडलिनी शक्ति है, वह जागृत शक्ति है, जिसके ५ पति ५ चक्र हैं। ओम शब्द ही कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है, जो मुझ और आप आत्मा को ढ़ाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूं, अपनी बुराइयों पर विजय पा, अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं, सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर अर्थात अपनी मेटेरियलिस्टिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य  पाठ पर आरूढ़ हो जा, विकार रूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति के हैं।

श्री कृष्ण का साथ होते ही ७२००० नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है, और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्यता, आत्मा, जागृति हूं, मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं, इसलिए उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं सच को जानो, भगवान को पाओ, यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है, यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

ये शरीर ही धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन है। अर्जुन आप हो, संजय आपके आध्यात्मिक गुरु हैं।

वृद्ध आदमी ने दुःखी भाव के साथ सिर हिलाया और कहा, "जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, अपने बड़ों के प्रति आपकी धारणा बदल जाती है। जिन बुजुर्गों के बारे में आपने सोचा था कि आपके बढ़ते वर्षों में वे संपूर्ण थे, अब आपको लगता है वे सभी परिपूर्ण नहीं हैं। उनमें दोष हैं। और एक दिन आपको यह तय करना होगा कि उनका व्यवहार आपके लिए अच्छा या बुरा है। तब आपको यह भी अहसास हो सकता है कि आपको अपनी भलाई के लिए उनका विरोध करना या लड़ना भी पड़ सकता है। यह बड़ा होने का सबसे कठिन हिस्सा है और यही वजह है कि गीता महत्वपूर्ण है।"

संजय धरती पर बैठ गया, इसलिए नहीं कि वह थका हुआ था, तक गया था, बल्कि इसलिए कि वह जो समझ लेकर यहां आया था, वो एक-एक कर धराशाई हो रही थी। लेकिन फिर भी उसने लगभग फुसफुसाते हुए एक और प्रश्न पूछा, तब कर्ण के बारे में आपका क्या कहना है?

"आह!" वृद्ध ने कहा। आपने अंत के लिए सबसे अच्छा प्रश्न बचाकर रखा हुआ है।

"कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। वह इच्छा है। वह सांसारिक सुख के प्रति आपके राग का प्रतीक है। वह आप का ही एक हिस्सा है, लेकिन वह अपने प्रति अन्याय महसूस करता है और आपके विरोधी विकारों के साथ खड़ा दिखता है। और हर समय विकारों के विचारों के साथ खड़े रहने के कोई न कोई कारण और बहाना बनाता रहता है।"

"क्या आपकी इच्छा; आपको विकारों के वशीभूत होकर उनमें बह जाने या अपनाने के लिए प्रेरित नहीं करती रहती है?" वृद्ध ने संजय से पूछा।

संजय ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया और भूमि की तरफ सिर करके सारी विचार श्रंखलाओं को क्रमबद्ध कर मस्तिष्क में बैठाने का प्रयास करने लगा। और जब उसने अपने सिर को ऊपर उठाया, वह वृद्ध व्यक्ति धूल के गुबारों के मध्य कहीं विलीन हो चुका था। लेकिन जाने से पहले वह जीवन की वो दिशा एवं दर्शन दे गया था, जिसे आत्मसात करने के अतिरिक्त संजय के सामने अब कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था।


सोमवार, 13 सितंबर 2021

व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-8)

व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-8) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13सितंबर2021

            आज चर्चा उन चिकित्सकों की जो आज भी चिकित्सा धर्म के प्रति अपने समर्पण से वास्तव मे धरती के भगवान कहे जा सकते  हैं। ये नव दधिचि बिना प्रचार प्रसार के अपने मरीजों की सेवा करते हुये हिप्पोक्रित्ज के शपथ को आज भी अपने जीवनर्या  मे शामिल किये हैं। ऐसे ही एक युवा और समर्पित चिकित्सक है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान मे मेडिसिन के प्रोफेसर डा० दीपक गौतम। डा० दीपक मेडिसिन विभाग के लगभग सभी ओपीडी मे अपनी सेवा दे चुके है चाहे वह किशोर चिकित्सा हो या जरायु चिकित्सा या माडर्न जनरल मेडिसिन, पर हर विभाग से दूसरे विभाग मे जाने के बाद भी उनके पुराने मरीजों की फेहरिस्त उनसे जुड़ी ही रहती है। डा० गौतम के बार बार विभाग बदलने के पीछे संस्थान की अंदरूनी राजनीति भी हो सकती है पर इससे उनके चिकित्सा धर्म पर कोई साईड इफेक्ट नही पड़ता। अपने चैम्बर मे भीड़ भरे पर  तनाव मुक्त माहौल मे  सबसे मुस्करा कर सबकी समस्यायें सुनते सबको सामान्य भाव से सबको समझाते रहते है। कोई तनाव नही कोई उलझन नही चेहरे पर एक आत्मसंतोष व मन मे सेवा भाव ही सामने बैठे मरीज के मन मे आत्मविश्वास भर देता है।
                 डॉ०दीपक गौतम के सेवा भाव का कायल मै पांच साल पहले हुआ। मेरी माँ के पाटस्पाईन के सर्जरी के बाद उन्हे मेडिसिन वार्ड मे भरती करना पड़ा था। डा० दीपक गौतम जी के देखरेख मे उन्हे प्राईवेट वार्ड मे भरती कराया गया। जो लोग बीएचयू हास्पीटल से परिचित होगें उन्हे मालूम होगा कि सर सुन्दर लाल अस्पताल का प्राईवेट वार्ड अस्पताल के बिलकुल किनारे है ठीक आईएमएस के सामने। मेडिसिन वार्ड से प्राईवेट वार्ड की अच्छी खासी दूरी। मिलने वाले और परिचितजन पूछते थे कि यहां प्राईवेट वार्ड मे क्यों भरती करा दिये यहां तो डाक्टर आते ही नही है।वार्ड से ही चले जाते है। यह सुन कर हम भी पहले दिन काफी परेशान हुये पर यह परेशानी मेरे लिये मात्र इसलिये नही खड़ी हुई क्योंकि मेरी माँ की चिकित्सा डॉ०दीपक गौतम कर रहे थे। दिन भर मे कम से कम चार बार स्वयं आने और हर दो घंटे पर अपने रेजिडेंट डाक्टरों को भेजने मे उनसे किसी दिन कोताही या लापरवाही हुई हो याद नही। ऐसा नही ये सिर्फ मेरी माँ के साथ हुआ हो बल्कि अपने हर मरीज के बारे मे उनकी जिम्मेदारी और फीडबैक लेना डा० दीपक गौतम का स्वभाव है।
       मॉ के डिस्चार्ज होने के दो महीने के बाद एक बार उनकी रिपोर्ट लेकर डा० दीपक गौतम जी को दिखाना था। मै कचहरी से होकर अपने मित्र सूर्यभान जी के साथ समय से निकलने के बावजूद  शहर के जाम मे उलझ कर जब तक उनके ओपीडी पहुंचा। ओपीडी बंद हो चुके काफी देर चुकी थी और वे निकल चुके थे। मैने उनके मोबाइल नंबर पर  एक बार संपर्क करने का प्रयास यह सोच कर किया कि संभवतः संस्थान मे मिल जायें तो मुझे फिर से पूरे शहर का चक्कर काट कर आना नही पड़ेगा। मोबाइल मिलते ही उन्होने बताया कि वे तो आवास पर पहुँच चुके है। मैने कोई बात नही कहते हुये फोन काट दिया। तभी पुन: उनका कालबैक आया "आप कहां पर है और कहां जाना है? " मेरे बताने पर कि अब हास्पीटल से निकल रहा हूँ, उन्होने पूछा कि "किधर से आप जायेगें।आप बृजइंक्लेव मेरे आवास पर आ सकते है तो आपको दूबारा नही आना होगा।" आश्चर्य यह कि तब तक मै उनके लिये एक अननोन नंबर ही था, जिसे वे शायद पहचानते भी नही थे। जब मै उनके बताये लेन मे बृजइंक्लेव पहुंचा तो वे लेन मे खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे।उन्होने न सिर्फ रिपोर्ट देख कर दवाओं मे परिवर्तन किया बल्कि घर मे अकेले रहने होने के बावजूद स्वयं चाय बना कर भी हम लोगों को पिलाये।मेरे धन्यवाद देने पर वे और विनम्र हो गये, "अरे ये तो मेरा काम ही है। आपको केवल इसके लिये दूबारा इतनी दूर से आना पड़ता। "
     रास्ते मे लौटते समय हम और सूर्यभान जी यही बात कर रहे थे कि आज के चिकित्सा स्वार्थ के धंधे मे यह चिकित्सा धर्म बिरले ही देखने को मिलता है।ऐसा अनुभव मात्र हमारे साथ ही नही औरों के साथ भी हुआ है। जो भी डा० दीपक गौतम के यहां गया उनका कायल बन कर ही लौटा। यहीं कारण है कि उनके मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और अपने मरीजों की सेवा  मे ही अपना सुख पाने वाले डॉ०दीपक गौतम के प्रशंसको का सूकून भी।
       आज भी ऐसे ही डाक्टरों से चिकित्सा धर्म की प्रतिष्ठा बनी हुई है जो आधुनिक दधिचि, चरक और सुश्रुत के रूप मे सेवा भाव मे लगे हुये है। धन्यवाद #डॉ०दीपक_गौतम।
#धरती_के_भगवान
#व्योमवार्ता
#मानवगिद्ध
काशी, 13सितंबर 2021,सोमवार


रविवार, 12 सितंबर 2021

व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-7) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 12 सितंबर 2021

धरती के भगवान (भाग-7) 
       धरती के भगवान की श्रेणी मे शामिल अधिकांश #चिकित्सक मानवगिद्ध ही हो ऐसी बात नही है जैसा मैने इस श्रृंखला के पहले ही भाग मे लिखा था कि आज भी हमारे समाज मे ऐसे चिकित्सक है जिनके कर्तव्य परायणता एवं #चिकित्सा_धर्म के प्रति निष्ठा को देख कर हम सब का सिर #श्रद्धावनत हो जाता है। आज भी हमारे ही बनारस मे आधुनिक दधिचि परम श्रद्धेय पद्मश्री #डा०टी०के०लहड़ी सर, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ की पूर्व कुलपति पद्मश्री #डा०_सरोज_चूड़ामणि_गोपाल, राजस्थानआयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति #डा०रामहर्ष_सिंह, #डा०रवि_टण्डन,#डा०यू०पी०शाही, कोरोना महामारी में अपने अंतिम समय तक चिकित्सा सेवा करते हुये उत्साह भरने वाले स्व० पद्मश्री# डा०के०के०अग्रवाल, भारत रत्न #डा०बी०सी०राय जैसो ढेरों नाम हमारे लिये उदाहरण है। पर दुखद यह है कि आज स्थितियां बिलकुल बदल गई है अब चिकित्सा धर्म के बजाय पेशा बनता जा रहा है जिसमे चिकित्सा ज्ञान और अभ्यास को मात्र पैसे कमाने वाली मसीन समझा जा रहा है। शोचनीय स्थिति यह है कि चिकित्सक समाज में यह प्रवृत्ति धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही है। हमे तो नही लगता है कि आज कल के किसी चिकित्सक को #हिप्पोक्रित्ज की #शपथ याद होगी जो उन्हे अपने चिकित्सा धर्म के गौरव पवित्रता और सत्यनिष्ठा की सदैव याद दिलाती थी। 
  यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रित्ज (460-320ईसा पूर्व) ने चिकित्सा छात्रों के लिये एक शपथ बनाया था जो #चिकित्सक बनने से पूर्व उन्हे लेना होता था। तब से लेकर आज तक उस शपथ मे भाषा, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार कुछ परिवर्तन भी किये गये पर शपथ के अंतर्वस्तु और उसमे समाहित पवित्रता पर कोई अंतर नही आया। हिप्पोक्रित्ज कीशपथ निम्न प्रकार थी -
              "मैं अपोलो वैद्य, अस्क्लीपिअस, ईयईआ, पानाकीआ और सारे देवी-देवताओं की कसम खाता हूँ और उन्हें हाज़िर-नाज़िर मानकर कहता हूँ कि मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के अनुसार इस शपथ को पूरा करूँगा।
जिस इंसान ने मुझे यह पेशा सिखाया है, मैं उसका उतना ही गहरा सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूँ। मैं जीवन-भर उसके साथ मिलकर काम करूँगा और उसे अगर कभी पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो उसकी मदद करूँगा। उसके बेटों को अपना भाई समझूँगा और अगर वे चाहें, तो बगैर किसी फीस या शर्त के उन्हें सिखाऊँगा। मैं सिर्फ अपने बेटों, अपने गुरू के बेटों और उन सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दूँगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के मुताबिक शपथ खायी और समझौते पर दस्तखत किए हैं। मैं उन्हें चिकित्सा के सिद्धान्त सिखाऊँगा, ज़बानी तौर पर हिदायतें दूँगा और जितनी बाकी बातें मैंने सीखी हैं, वे सब सिखाऊँगा।
रोगी की सेहत के लिये यदि मुझे खान-पान में परहेज़ करना पड़े, तो मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के मुताबिक ऐसा अवश्य करूँगा; किसी भी नुकसान या अन्याय से उनकी रक्षा करूँगा।
मैं किसी के माँगने पर भी उसे विषैली दवा नहीं दूँगा और ना ही ऐसी दवा लेने की सलाह दूँगा। उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भ गिराने की दवा नहीं दूँगा। मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपनी ज़िंदगी और अपनी कला की रक्षा करूँगा।
मैं किसी की सर्जरी नहीं करूँगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह काम उनके लिए छोड़ दूँगा जिनका यह पेशा है।
मैं जिस किसी रोगी के घर जाऊँगा, उसके लाभ के लिए ही काम करूँगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूँगा, हर तरह के बुरे काम से, खासकर स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूँगा, फिर चाहे वे गुलाम हों या नहीं।
चिकित्सा के समय या दूसरे समय, अगर मैंने रोगी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई ऐसी बात देखी या सुनी जिसे दूसरों को बताना बिलकुल गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही रखूँगा, ताकि रोगी की बदनामी न हो।
अगर मैं इस शपथ को पूरा करूँ और कभी इसके विरुद्ध न जाऊँ, तो मेरी दुआ है कि मैं अपने जीवन और कला का आनंद उठाता रहूँ और लोगों में सदा के लिए मेरा नाम ऊँचा रहे; लेकिन अगर मैंने कभी यह शपथ तोड़ी और झूठा साबित हुआ, तो इस दुआ का बिलकुल उल्टा असर मुझ पर हो।"

                   पर आज यह शपथ केवल कागजी और पारंपरिक औपचारिकता बन कर रह गई है। हमे तो आज तक #काशी_हिन्दूविश्वविद्याल_विश्वविद्यालय के एक दो वरिष्ठ चिकित्सकों के चैम्बर मे ही हिप्पोक्रित्ज के चित्र और शपथ के दर्शन हुये हैं और किसी अस्पताल या क्लिनिक मे नही। कोई आश्चर्य नही कि आजकल के डाक्टरों से हिप्पोक्रित्ज शपथ के बारे मे पूछने पर वे हिप्पोक्रित्ज या शपथ के अस्तित्व से ही इंकार कर दें। और आजकल चार कमरों के अंदर बैठे ढेरो ताम झाम बनाये 500 से लेकर 5000/- तक की फीस वसूलने के साथ #मेडिकलस्टोर के छद्म मालिक, #पैथालाजी_लैब से लेकर #दवा_दुकादारों से #कमीशन खाने वाले, दवा #कंपनियों के #गिफ्टटूर पर #विदेश_यात्रा करने वाले आधुनिक मानवगिद्धों से यह आशा करना भी बेमानी होगा। प्रश्न यह है कि हम से विशेष श्रेणी का सम्मानित दर्जा चाहने वाले कथित धरती के भगवान के चोले मे छिपे मानवगिद्ध स्वयं को हिप्पोक्रित्ज के शपथ पर स्वयं का #मूल्यांकन कब करेगें? 
आज वह #समय आ गया है कि इस पर विचार हो ताकि धरती के भगवान श्रेणी मे छिपे मानवगिद्धों की #पहचान #सार्वजनिक हो, भले ही अब मानवगिद्धों के जमात मे धरती के भगवान की संख्या गिनी चुनी ही हो। 
(अगले अंक मे आज के वर्तमान मे चिकित्सा धर्म का निर्वहन करने वाले वे डाक्टर जिनके लिये आज भी मन मे सम्मान व श्रद्धा है जिनके वजह से चिकित्सा अभी धर्म है।) 
काशी, 12सितंबर, 2021,रविवार
#व्योमवार्ता
#धरती_के_भगवान
#मानवगिद्ध
#हिप्पोक्रित्ज

शनिवार, 11 सितंबर 2021

व्योमवार्ता/धरती के भगवान या मानवगिद्ध (भाग-6)

धरती के भगवान? (भाग-6)

 #बनारस के #शिवपुर मे एक बड़ा #अस्पताल है। ट्रस्ट द्वारा कथित तौर पर संचालित #सेवा_सदन_अस्पताल मे ओपीडी फीस मात्र 20/- है। अगर आप बिना नंबर के #वेटिंग लाईन को बाईपास कर के दिखाना चाहे तो फीस 50/- हो जाती है, ये दूसरी बात है कि अब उस बाईपास #वीआईपी लाईन मे भी वेटिंग लिस्ट बनने लगी है। #डाक्टरसाहब मन से मरीजों को देखते भी है बस एक बात जो इन सब पर भारी पड़ती है कि डाक्टर साहब की लिखी दवा #एकमात्र_स्थान उसी कैम्पस मे बनी उनके भाई के #मेडिकल_स्टोर मे ही मिलती है। मेडिकल स्टोर चलाने वाली उनकी भावज के पास #फार्मेसिस्ट की डिग्री भले ही न हो पर #हिसाब_किताब मे उनकी गिनती इतनी फिट है कि 697 रूपये का जोड़ निकाल कर पैसा लेने के लिये  कभी 695/- पर नही आता  वह हमेशा 700/- पर जा कर ही रूकता है।
          आजकल पूरा अस्पताल #डेंगू मरीजों से पटा पड़ा है। अंदर की बात यह है कि डाक्टर साहब फिलवक्त है भी नही। पर वहां मरीजों के भर्ती के लिये आने पर गार्ड साहब एण्ट्री कर के बाकायदा गेट खोलते है। आप की सारी परेशानी बीमारी का दरियाफ्त करेगें। उसके बाद आपको #स्ट्रेचर_व्हीलचेयर पर #इमरजेंसी तक भी पहुंचा देगें। वहां मौजूद कथित #आरएमओ डाक्टर साहेब आपके परेशानी और बीमारी के बारो मे सिलसिलेवार दूबारा दरयाफ्त करेगें। आपसे 500+50/- ले कर आप का पर्चा भी बन जायेगा ।  फिर आरएमओ साहब दो तीन बार परेशान हाल अपनो #मोबाइल से पता नही कहां कहां किस किस को फोन करेगें। और फिर बतायेगें कि "भाई साहब पूरे अस्पताल मे एक भी बेड खाली नही #आईसीयू मे भी नही। सब पर डेंगू के #मरीज भरे है। आप कहीं और एडमिट हो लें।
         अब आरएमओ साहब से कौन पूछे कि "जब अस्पताल मे सारे बेड भरे थे तो आप ये आधे घंटे की #नौटंकी क्यों कर रहे थे? क्या सिर्फ 500/- के लिये। जिसका मरीज को कोई फायदा नही मिला?"
पर कौन पूछे इन धरती के भगवान से जो दरअसल सफेद कोट के चोले के  नीचे मानवगिद्ध हैं.
#धरती_के_भगवान?
#मानवगिद्ध?

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

व्योमवार्ता/ सनातन इतिहासबोध व कथित नवबौद्ध राजनेता

व्योमवार्ता/ सनातन इतिहासबोध व कथित नवबौद्ध राजनेता
: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 3 सितंबर 2021, शुक्रवार

              आज के राजनीतिक स्वार्थ के परिवेश में नवपरिवर्तित कथित स्वयंभू बौद्ध राजनीति करने वालों के मन मे भारतीय सनातन संस्कृति के प्रति कितनी घृणा और पूर्वाग्रह भर दिया गया है कि वे अपने संस्कृति और इतिहास के अस्तित्व को भी नकारने लगे हैं। आश्चर्यजनक तो यह है कि ये नवाचारी स्वयंभू बौद्ध स्वयं को पता नही किस इतिहास व प्रमाण के आधार पर स्वयं को अनार्य मानते हुये सवर्ण समाज से स्वयं को अलग मानते है।  उनका यह मानना है कि वे गौतम बुद्ध के बौद्ध धर्म के अनुयायी है परउनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नही कि गौतमबुद्ध तो स्वयं 563 ईसा पूर्व ईक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल मे हुआ था। जबकि वैदिक काल को 1500 से 600 ईसा पूर्व तक माना जाता है। उसके संबंध मे फिर कभी, अंततोगत्वा बात कल की। 
                 कल एक नामालूम सी छोटी सी पार्टी के बड़े नेताजी तालीबानिक बर्बरता की तुलना भारत के सनातनी व संस्कृति से करते हुये वामपंथी और भारतीय इतिहास को विकृत करने वाले संदर्भों को लेकर बहस कर रहे थे कि तालिबान जो कर रहे है वह तो आप लोग बहुत पहले से करते आ रहे हैं सनातन हिन्दू धर्म मे महिलायें अधिकारहीन व पुरूषों के लिये मात्र उपभोग्य वस्तुयें थी उन्हे शिक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार नही था। 
               मैने उन्हे टोंकते हुये वैदिक साहित्य व इतिहास का अध्ययन करने को कहा जहाँ महिलायें न केवल शिक्षित थी वरन वे गुरूकुलों मे संस्कृति ,संस्कार व अन्य विषयों का अध्यापन करती थी। मैने उनसे गार्गी, अपाला, घोषा, सिकता, रत्नावली, लीलावती, अरूधंती, लोपामुद्रा, अनुसूईया, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं के बारे मे बताया पर उनके पूर्वाग्रह ने इस सीमा तक उन्हे ग्रसित कर रखाथा कि उन्होंने इन सभी का नाम मात्र ऋषिपत्नीयों के रूप मे कह कर निरस्त करना चाहा। 
ईश्वर ऐसे लोग का भ्रम दूर कर सत्य से परिचित करायें। 
            आज हमारे लिये अपने वास्तविक इतिहासबोध से साक्षात करने का समय आ गया है वरना मैकाले व मैक्समूलर द्वारा स्थापित वामपंथियों द्वारा इतिहासविकृतिकरण का षडयंत्र स्वयं मे दावानल बन  और विशाल स्वरूप लेता जायेगा और हमारे अपने ही अपनो के षडयंत्र के मकड़जाल मे स्वयं की भारतीय संस्कृति व संस्कार को विस्मृत कर देगें। 
#इतिहासबोध
#भारतीय_इतिहास_सनातन_संस्कृति
#व्योमवार्ता
काशी,१२कृष्णपक्ष भाद्र सं०२०७८वि० यथा 3 सितंबर 2021,शुक्रवार

सोमवार, 23 अगस्त 2021

व्योमवार्ता/ चाल-ढाल तो मेरी बचपन से ही वकील वाली थी। पर वकालत मे आने के लिये डिग्री लेना भी जरूरी था।🤪

व्योमवार्ता/ चाल-ढाल तो मेरी बचपन से ही वकील वाली थी। पर वकालत मे आने के लिये डिग्री लेना भी जरूरी था।🤪

नौंवीं कक्षा में मैंने किरकिट मैच खेलने के चक्कर मे विज्ञान की कॉपी नही बनाई थी और कॉपी चेक कराने का भयंकर दबाव था......
गूरूजी भी बहुत सख्त थे, पता चलता उनको तो उल्टा ही टांग देते या भरे क्लास मे मुर्गा बना देते। 😢😭

पूरे नौ अध्याय हो चुके थे......
लड़के 40- 40 रुपए वाले रजिस्टर भर चुके थे और मेरे पास रजिस्टर के नाम पर बस एक रफ़ कॉपी में ही थी 😐

दो रात एक मिनट भी नींद नहीं आई,
ऊपर से प्रिंसिपल साहब को पता चलने का डर 😞

इस प्रकार चेकिंग का दिन आ ही गया 😰
गूरूजी ने चेकिंग शुरू की 🤢 18 रोल नंबर वालों तक की कॉपी चेक हुईं और घंटी बज गई,
मैंने राहत की सांस ली..... 😁

तभी गूरूजी ने जल्दी जल्दी में कहा:-
सभी बच्चे अपनी अपनी कॉपी जमा करके दे दो, मैं चेक करके भिजवा दूंगॉ..... 🙄

तभी मेरा शातिर दिमाग घूमा🤔, और मैं भीड़ में कॉपियों तक गया और जैसे अलजेब्रा में मान लेते हैं
ठीक वैसे ही मैंने भी मान लिया कि कॉपी मैंने जमा कर दी ......😁😁

अब कॉपी की जिम्मेदारी गूरूजी की..... 😉

दो दिन बाद सबकी कॉपी आई लेकिन मेरी नहीं आई...आती भी कैसे......?☺️☺️😊😃😂

मैं गूरूजी के पास गया और बोला:-
सरजी, मेरी कॉपी नहीं मिली...🤔
वो बोले:-
मैं चेक कर लूंगा, स्टाफ रूममें होगी.....😏

अगले दिन मैं फिर पहुच गया और बोला :-
सर, मेरी कॉपी ?🤔
गूरूजी बोले-
स्टाफरूम में तो है नहीं, मेरे घर रह गई होगी, कल देता हूं 😏
मैंने कहा:- ठीक है 😊

अगले दिन.......
मैं फिर....सर कॉपी ? ☹️
सर बोले :-
बेटा मेने घर देखी थी,तुम्हारी कॉपी मिल गयी है, आज मैं लाना भूल गया, कल देता हूं 😊

मैं(मन ही मन ☺️😁):- वाह ! कमाल हो गया, कॉपी दिए बिना ही गूरूजी के घर में मिल गई , असंभव हुआ संभव 😆😂

अगले दिन मैं फिर:- सर कॉपी 😐
वो क्या है ना सर जी, याद भी करना भी जरूरी है😞🙄

और यूं मैंने 5 दिन तक जो मुझे मिला वही तनाव गूरूजी को दिया 😁

फिर गूरूजी ने हमको स्टाफरूम में बुलाया बोले:-
देखो बेटा! आपकी कॉपी हमसे गलती से खो गयी है 😐😐

मैंने ऐसा मुरझाया मुंह बना बनाया जैसे पता नहीं अब क्या होगा 😲😞🤕 और कहा:-
सर अब क्या होगा 🤢😢😟?
मैं दोबारा कैसे इतना लिखूंगा,याद कैसे करूंगा? इम्तिहान कैसे दूंगा, इतना सारा काम मैं फिर से कैसे लिखूंगा....? 😢😥😪😵

सर ने ज्यों ही कहा:- बेटा तुम चिंता ना करो🤔🤗 दसवें चैप्टर से कॉपी बनाओ और बाकी दोबारा मत लिखना, वो मैं बंदोबस्त कर दूंगा 🤔

ऐसे लगा जैसे भरी गर्मी में कलेजे पर बर्फ रगड़ दी हो किसी ने 15 अगस्त के दिन लड्डू की जगह छेने बँटे हों 🤗☺️😄😃😁😂🤣

मानो 50 किलो का बोझा सिर से उतर गया हो☺️ गूरूजी के सामने तो खुशी जाहिर नहीं कर सकता था 😆लेकिन
गूरूजी के जाते ही तीन बार घूंसा💪🏻 हवा में मारकर "Yes! Yes! Yes!" बोलकर अपन कालर ऊपर करते हुए आगे बढ़ लिया 😉
अगले दिन गूरूजी उन 9 चैप्टर की 80 पेज की फोटोस्टेट लेकर आये और मुझे देते हुए बोले:-
ये लो बेटा, कुछ समझ ना आए तो कभी भी आकर समझ लेना 🤗

तो साहेब बाद पढ़ाई जब नौकरी सौकरी नही मिली तो सोचा चलो पुराना अनुभव व्यवहार मे लाया जाये और वकील बन जाते है। कमाल देखिये विज्ञान का सिद्धांत विधि मे भी खूब कारगर हैहै🤪

(काशी, श्रावण पूर्णिमा, संवत2077 वि०, रविवार, 22अगस्त 2021) 

# व्योमवार्ता

 http://chitravansh.blogspot.com

गुरुवार, 19 अगस्त 2021

व्योमवार्ता/धर्म बनाम आधुनिकता को समझने की जरूरत: रंगनाथ सिंह की फेसबुक वाल से

व्योमेश चित्रवंश की डायरी , 19अगस्त 2021 गुरूवार

                   दुनिया का असली वैचारिक संघर्ष धर्म बनाम आधुनिकता का है। जिसे हम यूरोपीय नवजागरण कहते हैं उससे इसकी शुरुआत मानी जाती है। यह महज संयोग नहीं है कि जिस वक्त यूरोप में नवजागरण चल रहा था लगभग उसी समय बनारस में बैठे कबीर मुल्ला-पण्डा के पाखण्ड की कलई खोल रहे थे। बुद्ध तो कबीर से भी दो  हजार साल पहले यह कर चुके थे।

नवजागरण की एक पँक्ति की परिभाषा यह है कि उससे पहले दुनिया के केंद्र में ईश्वर था। नवजागरण ने दुनिया के केंद्र में मनुष्य को स्थापित किया। ईश्वर खुद तो कभी दुनिया में आकर कोई गवाही नहीं दे गया लेकिन उसके नाम पर चलायी जा रही दुकानों (जिन्हें हम धर्म कहते हैं) ने दुनिया भर के कुकर्म ईश्वर के नाम पर किये। ईश्वर ने कभी दुनिया में आकर यह नहीं कहा कि ये हमारे मिडिलमैन रहेंगे लेकिन कई सज्जनों ने खुद को ईश्वर का बिचौलिया या कुछ ने तो खुद को ईश्वर ही घोषित कर दिया। 

ऐसा नहीं है कि यह काम आज नहीं होता। दुनिया के किसी भी हिस्से के किसी भी कालखण्ड के किसी भी 100 साल का इतिहास उठा कर देख लीजिए आपको एक ऐसा आदमी मिल जाएगा जो खुद को ईश्वर या ईश्वर का बिचौलिया बताता है। आदिवासियों तक में ऐसे ओझा मिलते हैं। 

ईश्वर है या नहीं यह तो बहस कभी निर्णायक बिन्दु पर नहीं पहुँचेगी लेकिन यह साफ है कि किसी एक धर्म या उसके ध्वजाधारी के पास ईश्वर का ठेका-पट्टा नहीं है। नवजागरण ने इतना तय कर दिया कि दुनिया के ज्यादातर संस्थागत धर्मों में बहुत सा अधकचरापन या पिछड़ापन है। धार्मिकों किताबों में दिये झूठ बेनकाब किये जाते रहे। वोल्टेयर जैसे लोगों की ख्याति इसी बात के लिए थी कि उन्होंने चर्च और पादरी के पाखण्ड को तार-तार किया। हालाँकि वो  कबीर के बाद पैदा हुआ था।  

विडम्बना यह है कि ईश्वर की आस्था मनुष्य के लिए इतनी बुनियादी चीज है कि धार्मिक धूर्तों का शिकार बनने का बीज उसके अन्दर हरदम मौजूद रहता है। इस बुनियादी प्रवृत्ति के चलते ही वह जरा सा असावधान या असंतुलित होते ही आधुनिकता के सारे लाभ और ज्ञान हासिल करने के बाद भी धार्मिक पाखण्डियों के चरणामृत पीने लगता है। 

सोशलमीडिया पर ही देखा है कि ब्रिलिएंट लोग, जो आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थानों से पढ़े हैं किसी संदिग्ध स्थिति में दसवीं-बारहवीं पास उन्मादी के फॉलोवर हैं क्योंकि वो उनकी धार्मिकता का शोषण करना जानता है। यही चीज दूसरे के धर्म में होती है तो हमें तुरन्त समझ में आ जाती है। अच्छे इदारों से पढ़े लिखे नौजवान इस्लामी जिहादी बन रहे हैं यह हमें आसानी से दिख जाता है। मदरसे में कुरान रटने वाला आदमी डॉक्टर-इंजीनियर-प्रोफेसर-पत्रकार को अपनी मर्जी पर चलाने लगता है क्योंकि वह उनकी धार्मिक पहचान का शोषण करना जानता है।   

आप भले ही भौतिकी, रसायन, दर्शन, गणित, इतिहास इत्यादि के ज्ञाता हों कोई मूढ़ संस्कृत के चार श्लोक बोलकर आपको अपने कंट्रोल में ले सकता है। आप कठपुतली की तरह उसके इशारे पर नाचने लगते हैं। गीता या वेद में ऐसा कुछ नहीं लिखा है जिसके बिना मनुष्य सुखी जीवन न जी सके। सच यही है कि करोड़ों भारतवासी इनसे परिचित हुए बिना ही दुनिया से गुजर जाते हैं। अरब मुल्कों के बाहर कुरान की अरबी समझने वाल दो प्रतिशत भी शायद ही हों। कुरान के तर्जुमों पर हजार साल से बहस जारी है तो सोचिए कि जिन लोगों को ढंग से हिन्दी तक नहीं आते वो क्या ही कुरान समझते होंगे और वो कौन सा इस्लाम जानते होंगे। वो वैसे ही अरबी आयतें याद कर लेते हैं जिस तरह हम में से बहुत से लोग संस्कृत जाने बगैर कई श्लोक याद कर लेते हैं। 

संस्कृत में एक गनीमत यह है कि हिन्दी या अन्य कई भाषाएँ उससे सम्बन्धित हैं तो हम कई शब्दों से परिचित होते हैं। अरब मुल्कों के बाहर अरबी किसी की जबान नहीं न उन जबानों का अरबी से कोई सीधा नाता है तो आप सोचें कि उन जबानों के लोगों के लिए कुरान का क्या मतलब हुआ? हमारे आसपास जितने भी इलीट मुसलमान मोटी पगार लेकर सोशलमीडिया पर धर्म की ध्वजा फहरा रहे हैं उनका सारा अधकचरा ज्ञान अंग्रेजी अनुवाद से आता है। कल ही देखा कि फैजान मुस्तफा जैसा कानुनविद तालिबान को सच्चा इस्लाम पढ़ा रहा था। दुर्भाग्य है कि फैजान साहब यह स्टैण्ड नहीं ले सके कि कुरान या हदीस की जो बात आधुनिकता की मेयार पर खरी नहीं उतरती उसे हम नहीं स्वीकार करेंगे। 

विडम्बना देखिए जिन लोगों ने अरबी मदरसे में सालों साल कुरान-हदीस पढ़ी है, शरिया कानून लाने के लिए बन्दूक उठाकर जान की बाजी लगा रहे हैं उन्हें एक अंग्रेजीदाँ सूटेड-बूटेड लॉ प्रोफेसर बताना चाह रहा है कि 'असल' इस्लाम क्या है?  आम इंसान आप वाले असल को असल मानेगा या उनके?

फैजान मुस्तफा को बाबासाहब आम्बेडकर से सीखना चाहिए। भारत में मनुस्मृति की कभी वो जगह नहीं रही जो ईसाइयों के लिए बाइबिल की थी और मुसलमानों के लिए कुरान की। मनुस्मृति को हिन्दुओं के धार्मिक आचार का आधार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के ईसाई जजों-अफसरों ने बनाया क्योंकि उनकी जिद्दी मूढ़ता में कौई कौम बगैर एक किताब के चल ही नहीं सकती। उन्होंने यहूदी, ईसाई, मुसलमान और पारिसयों को ही देखा था। उन्हें नहीं पता था कि भारत एक किताब का नहीं बल्कि अनेक किताबों का देश है। फिर भी मनुस्मृति का बाबासाहब से लेकर हम जैसों तक आज तक सीधी आलोचना करते हैं कि यह किताब निंदनीय और त्याज्य है। मैंने ही मनुस्मृति पर एक पोस्ट लिखी तो कई हिन्दू कट्टरपंथी आहत हो गये। अफसोस था कि उनको अपना ही इतिहास नहीं पता। वो मनुस्मृति को सीने से चिपकाना चाहते हैं लेकिन ऐसे लोगों को आहत किये बिना तो धार्मिक कूपमण्डुकता का सामना नहीं किया जा सकता। कबीर ने जो काम आज से सात सौ साल पहले किया वो हम आज भी न कर सकें तो हम किस बात के बौद्धिक या प्रबुद्ध हुए। 

सरल शब्दों में कहें तो ईश्वर को कुरान, बाइबिल और गीता वगैरह के कैद से आजाद कराने की जरूरत है। इन लोगों ने भगवान पर कब्जा कर लिया है और उसका डर दिखाकर इंसान को कंट्रोल करते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि यह कोई नई बात है। मध्यकाल का सूफी और भक्ति आन्दोलन दरअसल सभी धर्मग्रन्थों के खिलाफ बगावत का आन्दोलन है। सूफियों-भक्तों ने मुल्लाओं और पण्डों से सीधा सवाल किया कि वेद-कुरान में क्या लिखा है यह बताना छोड़ो, तुम हमें ये बताओ कि तुम्हारा खुद का आध्यात्मिक अनुभव क्या है? उसके पहले बुद्ध ने भी बौद्धिक ज्ञान के बरक्स आध्यात्मिक अनुभव को अपने धर्म का आधार बनाया था। 

अगर आपको सचमुच साम्प्रदायिकता या प्रतिगामिता से संघर्ष करना चाहते हैं तो धार्मिक ग्रन्थों की गुलामी बन्द करनी होगी। आध्यात्मिक अनुभवों का समाजशास्त्र-राजनीतिशास्त्र-अर्थशास्त्र-नागरिक शास्त्र-विधि शास्त्र से कोई वास्ता नहीं है। धर्मग्रन्थों में जो आध्यात्मिकता से जुड़ी बातें हैं उनके निकाल कर एक जगह रख लीजिए और अन्य विषयों पर जो हजार या दो हजार साल पुरानी सोच है उसे निकाल बाहर कीजिए। इसी में मानवता का कल्याण है।
(#रंगनाथ_सिंह के फेसबुक वॉल से)
#व्योमवार्ता
#धर्म_बनाम_आधुनिकता

शनिवार, 14 अगस्त 2021

व्योमवार्ता/मानुष भज ले गुरू चरणम् । दुस्तर भव सागर तरणम...

धर्मवाणी पूज्य गूरूजी सद्गूरू राजेन्द्र ऋषि जी दासअनामी पुरूष के व्यवहारिक धर्मवाणियों का संग्रह है जो जीवन के व्यवहार मे आध्यात्मिक पक्ष को कैसे समावेशित किये जाने की राह बताती है ।
मेरे ऊपर गुरूजी की कृपा रही कि उन्होने मुझ अकिंचन को धर्मवाणी की भूमिका लिखने का उत्तरदायित्व दिया।

मानुष भज ले गुरू चरणम्.......
दुस्तर भव सागर तरणम..........

              सद्गुरू श्री राजेन्द्र ऋषि जी (दास अनामी पुरूष) से मेरा प्रथम साक्षात्कार वर्ष 2006 के सितम्बर महीने में हुआ था। बड़े भाई वरिष्ठ पत्रकार कमल नयन मधुकर जी के साथ मैं गुरूजी के विषय में जानकर मिलने उनके तत्कालीन रानीपुर आवास पर गया था। यूँ तो पूर्व में मेरे अग्रज मित्र प्रो० संजय सिंह (समाज कार्य संकाय, महत्मा गाॅधी काशी विद्यापीठ) एवं वरिष्ठ पत्रकार डाॅ० सुमन राव ने भी मुझसे सद्गुरू जी से भेंट की चर्चा किया था पर दैवयोग से वह भेंट सम्भव नहीं हो पाया था। श्री मधुकर जी के साथ मैं रानीपुर स्थित आश्रम पर गया पर वहाॅ मेरे मन में बसे आश्रय जैसी कोई छवि नही दिखी। सामान्य साफ सुथरा सादगी पूर्ण आवास, एक कक्ष में दो तीन लोग बैठे बेहद अपनेपन से कल के क्रिकेट मैच पर चर्चा करते हुए। हम और मधुकर जी भी वहीं पहुॅच कर सबको औपचारिक अभिवादन कर बैठ गये और क्रिकेट चर्चा में सम्मिलित हो गये। क्रिकेट चर्चा कब राजनीति से होते हुए समाज और वर्तमान परिवेश पर आ गयी, पता नही चला। इस चर्चा में वक्त के दो घण्टे भी बीत गये, यह भी नही पता चला, फिर हम और मधुकर जी सबको प्रणाम कर वहाॅ से चले आये। लौटते समय रास्ते में मैंने मधुकर जी से पूछा कि ‘‘गुरू जी नही थे क्या? उनसे भेंट हो गयी होती तो अच्छा रहता?’’ और मधुकर जी ने जो उत्तर दिया वह मेरे लिए आश्चर्यजनक ही नही अविश्वसनीय था। उन्होंने बताया, ‘‘अरे! वह गुरू जी ही तो थे, जो तुम्हें खुद उठकर अपने से चाय का कप पकड़ाये थे।’’ आज के दिखावेपूर्ण माहौल में इतनी सरलता? न कोई आडम्बर, न कोई साधु सन्तों वाला विशेष ताना बाना, न भगवा, पीला काला रंग, न कोई विशेष चयनित बैठने के लिए स्थान? क्या आज के समय में ऐसे भी गुरू हो सकते है? मैं बार-बार स्वयं से यह प्रश्न पूछकर और विस्मित होता जाता। रात में सोते समय भी मैं आश्रम रूपी आवास के उस अनुभव और भावदृश्य को स्वयं से अलग नहीं कर पा रहा था। हम लोग के साथ बैठे सफेद कुर्ते पायजामें में क्रिकेट पर चर्चा करते हुए गुरू जी। मुझे स्वयं उठ कर चाय का कप पकड़ाते हुए गुरू जी और कहीं से भी अपने को विशेष प्रदर्शित करने का आडम्बर न पालते हुए अतिशय सामान्य व्यक्ति जैसे आचरण करते हुए सरल स्वभाव वाले गुरू जी। एक ओर मुझे बार-बार उनकी सरलता अपने ओर आकर्षित करते हुए एक मूक आमन्त्रण दे रही थी तो दूसरी ओर मेरे पूर्वाग्रहों की धारणा उनके सरल स्वभाव व सामान्य आचरण को देखते हुए गुरूत्वता के प्रति संशय उपजा रही थी। पर मन में कहीं से यह बार-बार उठ रहे थे कि यही वह पड़ाव है जहाॅ पहुॅचने के लिए मेरा मन जाने कब से व्याकुल था। इसके पूर्व कभी भी किसी व्यक्ति के गुरूत्वता के प्रति मैं कभी इतना आकर्षित नही हुआ था। हालांकि प्रभावित करने का प्रयास बहुत से गुरू कहलाने वालों ने किया पर मैं प्रारब्धबश हरबार उनके प्रयासों से छूट गया था। आश्रम से लौटने के बाद दो तीन दिन तक एक कसमकस, उहापोह, बेचैनी जैसी मन पर छायी रही। गोस्वामी तुलसीदास के बचन-‘गुरू बिन भव निध तरई न कोई। जौ विरंचि संकर सम होई। संसय सर्प ग्रसेउ मोहि ताता। दुखद लहरि कुतर्क बहु बाता।’ के बीच झूलते हुए मैं स्वयं को अन्ततः रोक नहीं सका और दो दिन बाद मधुकर जी से गुरू जी से भेंट करने की प्रक्रिया पूछी, तो वे फिर हॅस पड़े। ‘‘अरे कोई अपायमेण्ट वगैरह नही। सुबह 9 से 12 बजे दिन के बीच कभी भी चले आओ। तुम्हें गुरूजी का सानिध्य मिल जायेगा।’’ मैं क्या अकेले डायरेक्ट जा सकता हॅू। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘‘बिलकुल और गुरू कृपा तो डायरेक्ट ही होती है उसके लिए किसी माध्यम की आवश्यकता थोड़े ही पड़ती है फिर अपने गुरू जी के यहाॅ कोई दिखावा, रोक टोक नही है। तुम खुद जाकर देखों अच्छा लगेगा।’’
         संयोगबश अगले दिन दूसरे शनिवार को अवकाश था तो हम अपने मित्र सूर्यभान को लेकर चल दिये रानीपुर स्थित ‘प्रकृति पुरूष सिद्धपीठ सूरत शब्द योग मार्ग अनुयायी आश्रम’। मधुकर जी के बताने के बाद भी मन में संशय था और गुरू जी के प्रति आकर्षण और उत्सुकता थी। जब हम लोग आश्रम पहुॅच कर घण्टी बजाये तो स्वयं गुरू जी ही दरवाजा खोलते हुए स्वागत किये। ‘‘आइये, आइये।’’ जैसा कि बहुत पूर्व से परिचय हो। एकदम सहज भाव से बेहद अपनापन। हम बातें करते रहे कहीं से कोई पूर्वधारणा नहीं, सहज, सरल जैसे बहुत-बहुत सालों से परिचय हो, सालों से ही नही जनमों से। घर परिवार की आपसी बातें, मन मिजाज की बातें। अपनी और उनकी बातें। यही वह मुलाकात थी जिसमें हम उनके मुरीद हो गये। यही हाल सूर्यभान का भी था। फिर मुलाकातों के इस सिलसिले ने कब हमलोगों को गुरूजी के बेहद करीबी लोगों में शामिल कर लिया, हमें पता नही चला। तब से आज तक मन में जब कोई भी कोई अकुलाहट होती है तो हम सीधे गुरूजी के पास चले जाते है और उनके सानिध्य में बैठे हमारी सारी समस्याओं का हल मिल जाता है। प्रायः ऐसा होता है कि यदि हम किसी परेशानी में है या समस्याग्रस्त है तभी गुरू जी का फोन आ जाता है कि ‘‘सत्यनाम डाक्टर साहब। कैसे है? सब कुशल से है न?’’ यह एक नहीं कईबार, कई लोगों के साथ हुआ है जिन्होंने गुरू जी के प्रेम व संरक्षण को टेलीपैथी द्वारा महसूस किया है।
             श्रद्धेय सद्गुरू दास अनामी पुरूष पूज्य राजेन्द्र ऋषि का जन्म सन 1964 में लखनऊ में हुआ था। पिता जी सैन्य अधिकारी थे तो उनके नियुक्ति व पदस्थापन के विभिन्न स्थानों पर आपकी शिक्षा दीक्षा हुई। बुन्देल खण्ड विश्वविद्यालय झाॅसी से अर्थशास्त्र में स्नात्कोत्तर उपाधि लेने के पश्चात दिल्ली की एक कम्पनी में मैनेजर हो गये। पर नीयति ने परमसत्ता ईश्वर के माध्यम नियुक्त करने हेतु सम्भवतः आपको पहले ही चयनित कर लिया था तो एक दिन नौकरी छोड़ ईश्वर आराधना व सत्य की खोज में निकल पड़े। लगभग चैदह वर्षो तक सन्त महात्माओं के सानिध्य में आध्यात्म की उच्च साधना करते हुए उन्होंने ईश्वर व सत्य का अन्वेषण जारी रखा। आध्यात्मिक साधना के संग ज्योतिष, कर्मकाण्ड के वैज्ञानिक पक्ष आयुर्वेद, मन्त्र-तन्त्र पर गहन एकाकी शोध करते हुए परमसत्ता के संकेत व अपने गुरूजनों के निर्देशों पर लोकहितार्थ सेवा का निर्णय लेकर 20 जनवरी 1991 को सूरत शब्द योगमार्ग आश्रम प्रकृति पुरूष सिद्धपीठ की स्थापना की। वर्तमान में वाराणसी के परमकल्याण मय पंचक्रोशी यात्रा के प्रथम पड़ाव कर्मदेश्वर महादेव मन्दिर कन्दवा से आधा किमी पश्चिम में घमहापुर में स्थित आश्रम रूपी आवास में साधनारत रहते हुए पूज्यवर भारतीय प्राच्य विद्याओं पर वैज्ञानिक ढंग से अनुसंधानरत है। गुरूजी का जीवन बिना किसी आडम्बर दिखावा और अहंकार, महत्त्वाकांक्षा से मुक्त एकदम सामान्य गृहस्थ का है। उनकी बातें बेहद व्यवहारिक एवं सर्वसहज होती है जो जीवनचर्या, आचरण एवं कर्मो से जुड़ी हुई होने के साथ परिलक्षित भी होती है।
इस संकलन के निर्माण नींव में छुपी हुई एक घटना को उल्लिखित करने से स्वयं को रोक नही पा रहा हॅू। गुलाबी जाड़े के फरवरी महीने के एक शाम हम हमारे साथ मित्र सूर्यभान सिंह एवं गुरूजी तब के तत्कालीन आवास आश्रम रानीपुर महमूरगंज में बैठे हुए जीवनचर्या पर चर्चा कर रहे थे। यॅू तो गुरू जी से मिलने का समय प्रातः 8.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक है परन्तु हम लोगों की धृष्ठता को सदैव क्षमा करने वाले गुरू जी दिन भर आध्यात्मिक परामर्श देकर थके होने के बावजूद हम लोगों के साथ उर्जा व स्नेह से भरे हुए वार्ता में व्यस्त थे। संयोगवश उस समय पूरे मकान में हम तीन जन के अतिरिक्त अन्य कोई भी उपस्थित नही था। गुरू जी अन्धविश्वास एवं कल्पित भ्रम के सम्बन्ध में उठी शंका के निर्मूल होने के वैज्ञानिक व व्यवहारिक पक्ष हमें बता रहे थे और हम दोनों जब अपने अल्प बुद्धि एवं विवेक से उसे समझने का प्रयास कर रहे थे। लगभग पौना-एक घण्टे के पश्चात पूरा कमरा ताजे गुलाब के तीब्र सुगन्ध से महक उठा। हम और सूर्यभान सिंह उस तीक्ष्ण व तीब्र सुगन्ध से आश्चर्यचकित थे पर गुरूजी उसी शान्त भाव से अपनी बात जारी रखे हुए थे। हम लोगों के चेहरे पर आश्चर्य भाव देख कर उन्होंने बहुत ही शान्त भाव से कहा कि ‘‘कुछ और लोग जो इस विषय पर जानने को इच्छुक है वही आये है क्योंकि यह जिज्ञासा व समाधान का उनका विशेष निर्धारित समय है।’’ दो बार और इसी तरह शाम के समय गुरूजी के सानिध्य में बैठे हुए हम लोगों ने कुछेक सूक्ष्म अभौतिक उपस्थिति महसूस किया है। ऐसे में हर मौके पर प्रायः मेरे साथ सूर्यभान जी रहे है और उनका भी अनुभव ऐसा ही रहा। सायं सामान्य परामर्श से इतर विशेष सूक्ष्म शरीरधारी अभौतिकजनों की इस विशेष चर्चा में गुरूजी सम्पूर्ण तथ्य का सार अनगढ़ी सी चार पंक्तियों में कर देते है। हम बहुत दिनों से गुरूजी से इन अनगढ़ी सार अभिव्यक्तियों को संकलित कर प्रकाशित करने के लिए कहते रहे पर गुरू जी व्यस्ततावश हाॅ, हॅू कहकर टालते रहे। इस वर्ष जब कोरौना के महामारी के चलते पूरी तरह लाॅकडाउन में आध्यात्मिक समाधान लोकहित व्यक्तिगत परामर्श एवं सत्संग से गुरूजी को समय मिला तो हम पुनः इस संकलन के लिए बार-बार अनुरोध करने लगे। जिसका परिणाम परम पूज्य गुरूजी के कृपा से यह सार संकलन अपने साकार रूप में प्रस्तुत है। इसमें आध्यात्मिक जीवन, जीवनचर्या, व्यवहार, प्रकृति संस्कार से जुड़े गुढ़े तत्व सामान्य भाषा में कहे गये है जो आज के लिए हम सब के व्यवहारिक जीवन में आवश्यक है।
सूरत शब्द योगमार्ग अनुयायी आश्रम प्रकृति पुरूष सिद्धपीठ सद्गुरू श्री राजेन्द्र ऋषि जी का लगाया हुआ छोटा-सा पौधा है। इसे बड़ा और छायादार वह वृक्ष बनने में अभी समय लगेगा। आश्रम का उद्देश्य अध्यात्म व ज्योतिष विद्या के जरिये गरीब से अमीर तक सभी लोगों को लाभ पहुॅचाना है। हमारी बहुत पवित्र व महान योजना सबके लिए उपयोगी एक आध्यात्मिक ढंग का वृद्धाश्रम, जड़ी बूटी पर आधारित प्राकृतिक चिकित्सालय तथा मानव जाति को सम्मान देने के लिए मानव मन्दिर की स्थापना करने की है। हम इस मकान कार्य में आप सभी का सहयोग चाहते हैं। इस आश्रम का विकास बहुत धीमी गति से परन्तु ठोस रूप में हुआ है। आश्रम के भौतिक विकास पर ध्यान लगाने और उसके लिए गलत साधन अपनाने के बजाय हमने हमेशा ही आध्यात्मिक विकास पर ध्यान दिया जो कि संतमत की परम्परा रही है। जितने भी महान सन्त हुए है-सब आजीवन झोपड़ी में रहे, उन्होंने कोई महल नही बनाया। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया। मानव सेवा करने के लिए किसी मठ या महल की नही सिर्फ शुद्ध हृदय और परमात्मा के आर्शीवाद की जरूरत पड़ती है। हमारे सुरत शब्द योगमार्ग अनुयायी आश्रम प्रकृति पुरूष सिद्धपीठ आश्रम के आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक सन्त राजेन्द्र ऋषि जी ने एक छोटी सी जगह में रहकर भी हजारों लोगों का भला किया है और सैकड़ों लोगों की आध्यात्मिक उन्नति करायी।
स्व की अनुभूति होने के बाद भी अपने ही आनन्द में लीन रहने वाले स्वार्थी मनुष्य वे नहीं बने और दूसरों के दुःख से द्रवित होकर अपनी मानव सेवा जारी रखी। उन्होंने अपने कर्मो और सेवा से यह सिद्ध किया कि ऋषियों का कार्य ही शोध एवं अनुसंधान करना है, जिससे मानव लौकिक सुख व पारलौकिक आनन्द प्राप्त कर सके। बाहर से देखने पर उनकी इन्द्रियां मानव सेवा में लगी दिखती है, चेहरे पर कहीं कोई तनाव नहीं, भीतर इतना गहन मौन जिसे मापने की क्षमता हममें से किसी में भी नही है। उनकी मानव सेवा और दुःखी को भी हंसाने वाले आनन्द को ही हम देख पाते है। मैं गुरूदेव के लिए बस यही कहॅूगा कि-
सुख है न दुःख है, न है शोक कुछ भी
अजब है ये मस्ती पिया कुछ नहीं है।
हरेक में हॅू आनन्द ये आनन्द है मेरा,
मस्ती ही मस्ती और कुछ नहीं है।।
एक बार किसी ने उनसे कहा कि- आपको तो किसी ब्राह्मण के परिवार में जन्म लेना चाहिए था। गुरूजी ने उत्तर दिया कि -‘‘कर्म से ब्राह्मण होना अधिक सौभाग्य की बात है। मुफ्त में मिली चीज की मनुष्य कद्र नहीं करता है जो जन्म से ब्राह्मण हैं उनमें से कितने ब्रह्म से परिचित है? अपने कर्मो से समाज में वे अपना सम्मान खोते चले जा रहे हैं। जन्म की बजाय कर्म से मनुष्य श्रेष्ठ बनता है। ’’ किसी भी सन्त का आर्शीवाद उनके परिवार कुल व जाति के लिए ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिए गर्व की बात होती है। हमारे देश में ऋषि मुनियों की जो महान परम्परा चली आ रही है। उनमें से अधिकांशतः महान सन्त जन्म से ब्राह्मण नही थे। ईश्वर ने भी राम के रूप में क्षत्रिय के यहाॅ और कृष्ण के रूप में यादव के यहाॅ अवतार लिया। रावण जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी कर्म से निन्दनीय था इसीलिए आज भी बुराई के प्रतीक के रूप में हर वर्ष पुतला दहन होता है। सन्त से जाति नहीं पूछना चाहिए और मन की हीन भावना दूर कर लेनी चाहिए।
सत्य को जानने के लिए वह सत्य की अनुभूति के लिए सन्तों की शरण लेनी चाहिए। मानव जीवन दुर्लभ ही नहीं क्षण भंगुर भी है। सन्त कबीर साहब ने इसी ओर संकेत किया है-

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की बात।
देखत ही छिप जायेगा, ज्यो तारा प्रभात।।

          गीता में सद्गुरू भगवान श्रीकृष्ण कहते है- नियतं कुरू कर्म त्वं अर्थात् तू निर्धारित कर्म को कर। निर्धारित कर्म क्या है? यज्ञ करना। कौन सा यज्ञ करना? इन्द्रियों का दमन, मन का शमन और दैवी सम्पदा का अर्जन करना ताकि चित्त का निरोध हो और अन्त में निरोध किये हुए चित्त का भी विलय हो जाये और शाश्वत सनातन ब्रह्म में प्रवेश मिल जाये। सभी महापुरूष आत्मने मोक्षार्थ व जगत हिताय के निमित्त ही संसार में आते हैं। वे तप करके अपनी आत्मा को मोक्ष प्रदान करते हैं। आजीवन अपने विभिन्न लोकल्याणकारी कार्यो द्वारा जगत का हित भी करते हैं। सार रूप में यही हमारे सद् गुरू जी व आश्रम का परिचय है।
(इस कृपा के लिये गूरूजी के चरणों मे सादर प्रणाम करते हुये आह्लादित हूं -व्योमेश)

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

व्योमवार्ता/आज के दौर का नंगा सच

व्योमवार्ता/आज के दौर का नंगा सच : व्योमेश चित्रवंश की डायरी

आज सोशल मीडिया पर एक सच्ची कहानी पढ़ी जो आज के दौर के सच को प्रतिबंबित करती है। हम सोचना पड़ेगा कि इस आपाधापी के जीवन मे भागदौड़ के दौर मे आखिर गड़बड़ी कहां हुई।

आखिर गड़बड़ कहाँ हुई ....???

एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया। वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया।
                             अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा. 5 बेडरूम का घर  उसके पास। शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई।
एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।

लेकिन दुर्भाग्य वश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई।
ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में। उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने ‘What went wrong'? जानने के लिए study किया।

पहले कारण क्या था, suicide नोट से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियां ढूंढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :

This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए।
अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा फर्स्ट ही आया। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से। गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए। फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को, 12th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी। अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets।

कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है। आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे। वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है। और सवाल, सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है। कोई डेट sheet नहीं।
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था। एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है। Mom, there is a jungle out there।

इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये।
बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी देना जरूरी है, हर परिस्थिति को ख़ुशी ख़ुशी धैर्य के साथ झेलने की क्षमता, और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है।
बच्चे हमारे है, जान से प्यारे है।
(काशी, 3अगस्त 2021, मंगलवार)
http://chitravansh.blogspot.com
#व्योमेश_चित्रवंश_की_डायरी
#व्योमवार्ता

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

व्योमवार्ता/चकाचक बनारसी और सावन की बरसात

व्योमवार्ता/चकाचक बनारसी और सावन की बरसात

        आज सावन की पहली बारिस बनारस मे हुई तो तन मन मयूर हो गया।भीषण ऊमस से जूझते तबियत को बरसात की फुहार का सुख देने छत पर चला गया तो बरसात की बूंदों के टपटप मे रम्मन चाचा "चकाचक बनारसी" की याद आ गई। रम्मन चच्चा हमारे रिश्तेदार थे, फक्कड़ बनारसी, कबीर की तरह बेबाक, मिजाज से शानदार।
रम्मन चच्चा की याद आई तो उनकी कविता भी याद आ गई। जिन्हे उनको सुनने का सुख मिला है उनके होठ बरबस ही फड़क पड़ेगें चकाचक जी की इस कविता के बोल के साथ।

बदरी के बदरा पिछयउलेस,
सावन आयल काऽ।
खटिया चौथी टांग उठेउलस,
सावन आयल काऽ।

मेहराये के डर से माई लगल छिपावै अमहर,
भईया के बहका फुसला के भउजी भागल नइहर,
सांझै छनी सोहारी दादा तोड़ लियइलन कटहर,
बाऊ छनलन ललका दारू बनके बड़का खेतिहर,

बुढ़िया दादी कजरी गईलेस,
सावन आयल काऽ।

गुद्दड़ कऽ चौउथी मेहररूआ मेंहदी सुरूक लियाईल,
सास क ओकरे कानी अंगुरी सड़-सड़ के बस्साइल,
झिंगुरी के घर भुअरी बिल्ली तिसरे बार बियाइल,
रामभजन क नई पतोहिया झूलै के ललचाईल,

धनुई फिर गोदना गोदवउलेस
सावन आयल का।

चमरउटी कऽ उलटल पोखरी मचल हौऽ छूआछूत,
खेलत हौऽ धरमू पंडित कऽ बेवा धईलेस भूत,
ननकू के ननका के मुंह पर मकरी देहलस मूत,
छींकत हौऽ जमिदार कऽ बिटिया गईल खुले में सूत,

पटवारी के दमा सतउलेस,
सावन आयल काऽ।

सांझ के अहिराने में गड़गड़ गड़गड़ बजल नगाड़ा,
कलुआ गनगनाय के नचलेस लगल कि जइसे जाड़ा,
ओकरे साथे अन्हऊ पंडित नचलन तिरछा आड़ा,
लोटा लेके दउड़त हंउवन उखड़ल ओनकर नाड़ा,

उन्हें गांव भर दवा बतउलेस,
सावन आयल काऽ।

मुखिया के बखरी पर भर-भर चीलम उड़ल खमीरा,
उनके पिछवारे मेघा के लपक के धईलेस कीरा,
एक कोठरी में मुखियाइन के उठल कमर में पीरा,
लगत हौऽ राजा कजरी होई बाजल ढोल मजीरा,

पुरुवा भक दे गैस बुझउलेस,
सावन आयल काऽ।

बदरी के बदरा पिछयउलेस,
सावन आयल काऽ।
खटिया चौथी टांग उठेउलस,
सावन आयल काऽ।

#चकाचक_बनारसी जी की मशहूर कविता #सावन_आयल_का..

#व्योमवार्ता/ व्योमेश चित्रवंश की डायरी, काशी, 27 जुलाई 2021, मंगलवार
http://chitravansh.blogspot.com

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

व्योमवार्ता/ वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ता इंसान

वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ रहा इंसान, 19 साल में नर्क हो जाएगी जिंदगी

    दुनिया को खत्म करने के लिए इंसान एकदम सही रास्ते पर चल रहा है. अब से मात्र 19 साल बाद यानी 2040 में इंसानों की जिंदगी नर्क हो जाएगी. ये दावा किया जा रहा है 1972 में बनाई गई एक रिपोर्ट का दोबारा विश्लेषण करने के बाद. क्योंकि इंसान लगातार अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों से भाग रहा है. आइए जानते हैं कि इस रिपोर्ट में इंसानों की जिंदगी को क्यों नर्क बनाने की बात कही गई है. ये क्यों कहा गया है कि इंसान वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ रहा है.                    
              1972 में एक किताब छपी थी द लिमिट्स टू ग्रोथ (The Limits to Growth). इसमें मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि औद्योगिक सभ्यता हर कीमत पर लगातार आर्थिक विकास की ओर बढ़ती रही तो एक दिन सरकारें गिर जाएंगी. सहयोग खत्म हो जाएगा. इसकी वजह से भविष्य में 12 संभावित भयावह स्थितियां बन सकती हैं, जो किसी भी इंसान, समुदाय या देश और धरती के लिए फायदेमंद नहीं होंगी.
        इस रिपोर्ट में बताई गई 12 संभावित खतरनाक स्थितियों में से एक सबसे भयावह स्थिति ये थी कि साल 2040 तक दुनिया का आर्थिक विकास तेजी से होगा. यह अपने पीक पर रहेगा. उसके बाद एकदम तेजी से नीचे गिरेगा. इसके साथ ही वैश्विक आबादी कम होगी. खाना की कमी होगी. साथ ही प्राकृतिक संसाधनों की भारी किल्लत होगी. इसे बिजनेस ऐज यूजुअल (Business As Usual - BAU) सीनेरियो कहा गया।
इस वैश्विक गिरावट से इंसानों की नस्ल तो खत्म नहीं होगी, लेकिन बिना पैसे, बिना खाने और बिना प्राकृतिक संसाधनों के इनकी जिदंगी नर्क हो जाएगी. स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग पूरी दुनिया में गिर जाएगा. अब इस बात की पुष्टि और वर्तमान परिस्थितियों में क्या होगा भविष्य में यह जानने के लिए MIT की सस्टेनिबिलिटी और डायनेमिक सिस्टम एनालिसिस रिसर्चर गैरी हैरिंग्टन ने इस रिपोर्ट का आज के अनुसार फिर से विश्लेषण किया. जिसकी रिपोर्ट येल जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है. 
पिछले साल ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हुई हैं. वो आज के रियल वर्ल्ड डेटा के साथ द लिमिट्स टू ग्रोथ (The Limits to Growth) का एनालिसिस कर रही हैं. इस एनालिसिस में गैरी ने 10 फैक्टर्स पर ध्यान दिया. जिनमें आबादी, प्रजनन दर, प्रदूषण स्तर, खाद्य उत्पादन और औद्योगिक आउटपुट प्रमुख हैं. उन्होंने देखा कि इस एनालिसिस के परिणाम बहुत हद तक 1972 में प्रस्तावित BAU सीनेरियो से मिलते-जुलते हैं. हालांकि, एक जगह रियायत मिलने की संभावना है.
गैरी ने बताया कि एक सीनेरियो उस रिपोर्ट  में बताई गई थी, जिसे कॉम्प्रिहेंसिव टेक्नोलॉजी (CT) कहा गया. यानी तकनीकी रूप से इतना ज्यादा विकास हो जाए कि प्रदूषण कम किया जा सके और खाद्य सामग्रियों का उत्पादन बढ़ाया जा सके. ताकि प्राकृतिक संसाधनों की कमी भी हो तो खाने की कमी न हो. लेकिन इससे बढ़ती हुई वैश्विक आबादी और व्यक्तिगत कल्याण की भावना को नुकसान पहुंचता है. 
     इसके पीछे वजह ये है कि जब प्राकृतिक संसाधनों की कमी होगी, तब आर्थिक विकास तेजी से नीचे की ओर गिरेगा. यानी आज के औद्योगिक सभ्यता का तेजी से पतन होगा. गैरी कहती है कि आज से करीब 10 साल बाद ही BAU और CT सीनेरियो के विकास में बाधा आने लगेगी. ये रुक जाएंगे. यानी लगातार विकास की कोई भी अवधारणा पूरी नहीं होगी. इससे इंसानों को नुकसान होने लगेगा. 
गैरी ने कहा फिलहाल अच्छी खबर ये है कि अब भी देर नहीं हुई है. इन दोनों परिस्थितियों से बचने के लिए इंसानी समाज को सही दिशा और दशा में काम करना होगा. इसका विकल्प है - स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो (Stablilized World Scenario) यानी स्थिर दुनिया परिस्थिति. इस स्थिति में आबादी, प्रदूषण, आर्थिक विकास तो बढ़ेंगे लेकिन प्राकृतिक संसाधन धीरे-धीरे कम होंगे. इससे फायदा ये होगा कि जैसे ही प्राकृतिक संसाधनों की कमी दिखे, आप बाकी को रोक दें या सीमित कर दें. 
तकनीकी विकास के साथ स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो को चलाएं तो उससे वैश्विक समाज की प्राथमिकताएं बदलेंगी. गैरी ने कहा कि लोगों को अपने मूल्यों पर काम करना होगा. नीतियां बनानी होंगी. परिवार छोटे रखने होंगे. चाहतें और जरूरतें कम करनी होंगी. जन्म दर को नियंत्रित करना होगा. औद्योगिक आउटपुट को सीमित करना होगा, सेहत और शिक्षा को प्राथमिकता से चलाना होगा. इससे प्राकृतिक संसाधन सीमित तरीके से खर्च होंगे. तब धरती बचेगी, इससे इंसान और उसके देश बचेंगे.
स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो (Stablilized World Scenario) के ग्राफ को देखें तो इससे पता चलता है कि उस समय यानी 20 साल बाद भी वैश्विक आबादी के हिसाब से खाद्य सामग्री रहेगी. प्रदूषण कम होगा. प्राकृतिक संसाधनों की कमी स्थिर हो जाएगी. सामाजिक खात्मे को बचाया जा सकेगा. ये एक काल्पनिक परिस्थिति लगती है क्योंकि उस समय तक कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ चुकी होगी. लेकिन अगर इस सीनेरियो के हिसाब से चले तो वह भी कम होगा. 
गैरी ने बताया कि कैसे इंसान ने वैश्विक स्तर पर एकता दिखाई है. कोविड-19 के समय में जब वैक्सीन विकसित करने और उसे पूरी दुनिया में पहुंचाने की बात आई तो इंसानों ने एकता दिखाई. सामुदायिक और वैश्विक जिम्मेदारी निभाई है. इसी तरह अगर हर देश का इंसान जलवायु समस्या को एकसाथ मिलकर खत्म करने की कोशिश करे तो कुछ भी संभव है. हम अपना भविष्य किसी भी समय सुधार सकते हैं. 
गैरी हैरिंग्टन कहती हैं कि अभी देर नहीं हुई है. अगर इंसान अपनी आबादी, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और औद्योगिक विकास की रफ्तार को सीमित करे तो वह 20 साल बाद भी सुरक्षित रह सकता है. इसके लिए जरूरी है कि इंसानियत अपनी सीमा तय करें. या फिर किसी बिंदु पर पहुंच कर सीमा बना दें. ताकि मानव कल्याण की भावना धरती से खत्म न होने पाए.
(आजतक ब्लाग पर प्रकाशित एक लेख)
#व्योमवार्ता
काशी, 22जुलाई 2021, गुरूवार
http:chitravansh.blogspot.com

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

व्योमवार्ता / धरती के भगवान (भाग-5)

धरती के भगवान (भाग-5)

पिछले दिनों बाबा #रामदेव ने एलोपैथ के कारोबार पर सवाल  क्या उठाया। देश के डाक्टर्स बिलबिला उठे। पर एक कटु सच्चाई सबके सामन आ गई।डाक्टरों के बौखलाहट से ये तो समझ मे आ गया कि बाबा रामदेव ने मधु मख्खी के छत्ते को पत्थर मारा है जो बहुत सोची समझी स्टाइल से भारत की #प्राकृतिक_चिकित्सा को आहिस्ता आहिस्ता खत्म कर रहे थे और उसमे काफी हद तक सफल भी थे।
हमारे बड़े भाई डाॅ०उमा शंकर सिंह जी डा. उमा शंकर सिंह  ने पूरे प्रकरण पर गहराई से विचार कर परिचित डाक्टरों के समक्ष कुछ सवाल उठाये पर किसी भी #डाक्टर ने इसका जबाब नही दिया। बल्क सच तो ये है कि धरती के भगवान कहे जाने वाले किसी डाक्टर के पास इन सवालों का जबाब है भी नही। यदि है तो वे देना नही चाहते। कुल मिला कर स्थिति जलेबी की तरह गोल गोल घूम वैसे हीह बन जाती है जो आपको बेहतरीन स्वाद के आड़ मे अनजानेन ही ढेर सारी चीनी खिला देती है। भाई उमा शंकर सिंह का #स्वैच्छिक_संगठनों मे कार्य करने व #ग्रामीण_स्वास्थ्य_शिक्षा पर कार्य करने का लंबा अनुभव रहा है। उनके उठाये सवाल हमें आधुनिक चिकित्सा पद्धति विशेषकर डाक्टरों के नीयत व कर्तव्य पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करते हैं।
वे सभी सवाल आज ज्यादा प्रासंगिक है जिन्हे अब जनता पूछना चाह रही है डाक्टरों से भी  और सरकार से भी कि...

1.#एलोपैथी की दवाई में #MRP की जगह #प्रोडक्शन_कॉस्ट बता दे तो बड़ी बड़ी #फार्मास्युटिकल कंपनीयाँ कितनी लूंट मचा रही है वो जनता को समझ आएगा ।

2.एक ही दवाई की बीस कंपनी के अलग दाम क्यों है?

3.डॉक्टरों को यूरोप की टूर कंपनी वाले क्यों देते हैं ?
डॉक्टरो के घर के AC, TV, Fridge और बहोत सारी बाते #pharma कंपनीयो की देन क्यों होती है..?

4.#जेनरिक दवाइयों को #सरकार को क्यों लाना पड़ा है?

5.कुछ मेडिकल स्टोर्स 20 से 30 % डिस्काउंट क्यों देते हैं? इतना #डिस्काउंट है तो कमाई कितनी है?

6.हॉस्पिटल्स के कमरे का किराया 3 हजार से 60 हजार एक दिन का क्यों है? भारत की 5 स्टार 7 स्टार होटल से भी इन #हॉस्पिटल्स का भाडा ज्यादा क्यों है?

7.#मेडिक्लेम आने के बाद 1996 से मेडिकल #ट्रीटमेंट इतनी महेंगी क्यों हुई?

8.बड़े दवाई के #डिस्ट्रीब्यूटर दस बीस करोड़ की प्रॉपर्टी गाजर मूली के जैसे क्यों खरीदते हैं?

9.जब भी कोई नया हॉस्पिटल तैयार होता है तो वहा की pharmacy वाला वाला दुकान Shops करोडों में कैसे बिकती है

10.केंद्र सरकार भी दवाई की ऊपर भाव क्यों नही बांध सकती है?

11.#लूट_का_लाइसेंस किसने दिया इन फार्मा कंपनियों को?

12.सभी बातों को साइंस से प्रमाणित किया जाना अच्छी बात है लेकिन विज्ञान में आज जो सही है वो कल गलत हो जाता है ऐसा क्यों है?

13.दूसरी #पारम्परिक_दवाईओ को जो आज तक हमारी दादीमाँ और वैध देते आये थे उसको नजरअंदाज करने के लिए #ब्रेनवॉश किस ने किया?

14.दूसरी सब चिकित्सा पद्धतियों को क्यों नजरअंदाज किया गया?

15.एलोपैथी की उम्र कितनी ? प्राचीन #आयुर्वेद कितना पुराना?,
महर्षि #चरक को किसने भुला दिया?

16.भारत मे मौसम अलग अलग है..उस हिसाब से हमारे खान पान है, सेंकडो मिठाई खाने के बाद हमारे बाप दादा 100 साल निकाल लेते थे।

17.#डायबिटीज में सुगर की मात्रा हर चार-पाच साल में नीचे लाने का पाप किसका है?याने जो चार साल पहले #sugar_patient नही था, वो अचानक से अब #Diabetes का रोगी हो गया।
🤔🤔
आप को क्या करना है वो आप को तय करना है। 🤔

*देश की जनता तक #सत्य पहुँचना जरूरी हैं। क्योंकि धरती के भगवान के मुखौटे मे छिपे इन मानवगिद्धों का असली रूप अब ऊजागर होना ही चाहिये।
#धरती_के_भगवान
#मानवगिद्ध