व्योमवार्ता/धरती के भगवान (भाग-8) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13सितंबर2021
आज चर्चा उन चिकित्सकों की जो आज भी चिकित्सा धर्म के प्रति अपने समर्पण से वास्तव मे धरती के भगवान कहे जा सकते हैं। ये नव दधिचि बिना प्रचार प्रसार के अपने मरीजों की सेवा करते हुये हिप्पोक्रित्ज के शपथ को आज भी अपने जीवनर्या मे शामिल किये हैं। ऐसे ही एक युवा और समर्पित चिकित्सक है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान मे मेडिसिन के प्रोफेसर डा० दीपक गौतम। डा० दीपक मेडिसिन विभाग के लगभग सभी ओपीडी मे अपनी सेवा दे चुके है चाहे वह किशोर चिकित्सा हो या जरायु चिकित्सा या माडर्न जनरल मेडिसिन, पर हर विभाग से दूसरे विभाग मे जाने के बाद भी उनके पुराने मरीजों की फेहरिस्त उनसे जुड़ी ही रहती है। डा० गौतम के बार बार विभाग बदलने के पीछे संस्थान की अंदरूनी राजनीति भी हो सकती है पर इससे उनके चिकित्सा धर्म पर कोई साईड इफेक्ट नही पड़ता। अपने चैम्बर मे भीड़ भरे पर तनाव मुक्त माहौल मे सबसे मुस्करा कर सबकी समस्यायें सुनते सबको सामान्य भाव से सबको समझाते रहते है। कोई तनाव नही कोई उलझन नही चेहरे पर एक आत्मसंतोष व मन मे सेवा भाव ही सामने बैठे मरीज के मन मे आत्मविश्वास भर देता है।
डॉ०दीपक गौतम के सेवा भाव का कायल मै पांच साल पहले हुआ। मेरी माँ के पाटस्पाईन के सर्जरी के बाद उन्हे मेडिसिन वार्ड मे भरती करना पड़ा था। डा० दीपक गौतम जी के देखरेख मे उन्हे प्राईवेट वार्ड मे भरती कराया गया। जो लोग बीएचयू हास्पीटल से परिचित होगें उन्हे मालूम होगा कि सर सुन्दर लाल अस्पताल का प्राईवेट वार्ड अस्पताल के बिलकुल किनारे है ठीक आईएमएस के सामने। मेडिसिन वार्ड से प्राईवेट वार्ड की अच्छी खासी दूरी। मिलने वाले और परिचितजन पूछते थे कि यहां प्राईवेट वार्ड मे क्यों भरती करा दिये यहां तो डाक्टर आते ही नही है।वार्ड से ही चले जाते है। यह सुन कर हम भी पहले दिन काफी परेशान हुये पर यह परेशानी मेरे लिये मात्र इसलिये नही खड़ी हुई क्योंकि मेरी माँ की चिकित्सा डॉ०दीपक गौतम कर रहे थे। दिन भर मे कम से कम चार बार स्वयं आने और हर दो घंटे पर अपने रेजिडेंट डाक्टरों को भेजने मे उनसे किसी दिन कोताही या लापरवाही हुई हो याद नही। ऐसा नही ये सिर्फ मेरी माँ के साथ हुआ हो बल्कि अपने हर मरीज के बारे मे उनकी जिम्मेदारी और फीडबैक लेना डा० दीपक गौतम का स्वभाव है।
मॉ के डिस्चार्ज होने के दो महीने के बाद एक बार उनकी रिपोर्ट लेकर डा० दीपक गौतम जी को दिखाना था। मै कचहरी से होकर अपने मित्र सूर्यभान जी के साथ समय से निकलने के बावजूद शहर के जाम मे उलझ कर जब तक उनके ओपीडी पहुंचा। ओपीडी बंद हो चुके काफी देर चुकी थी और वे निकल चुके थे। मैने उनके मोबाइल नंबर पर एक बार संपर्क करने का प्रयास यह सोच कर किया कि संभवतः संस्थान मे मिल जायें तो मुझे फिर से पूरे शहर का चक्कर काट कर आना नही पड़ेगा। मोबाइल मिलते ही उन्होने बताया कि वे तो आवास पर पहुँच चुके है। मैने कोई बात नही कहते हुये फोन काट दिया। तभी पुन: उनका कालबैक आया "आप कहां पर है और कहां जाना है? " मेरे बताने पर कि अब हास्पीटल से निकल रहा हूँ, उन्होने पूछा कि "किधर से आप जायेगें।आप बृजइंक्लेव मेरे आवास पर आ सकते है तो आपको दूबारा नही आना होगा।" आश्चर्य यह कि तब तक मै उनके लिये एक अननोन नंबर ही था, जिसे वे शायद पहचानते भी नही थे। जब मै उनके बताये लेन मे बृजइंक्लेव पहुंचा तो वे लेन मे खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे।उन्होने न सिर्फ रिपोर्ट देख कर दवाओं मे परिवर्तन किया बल्कि घर मे अकेले रहने होने के बावजूद स्वयं चाय बना कर भी हम लोगों को पिलाये।मेरे धन्यवाद देने पर वे और विनम्र हो गये, "अरे ये तो मेरा काम ही है। आपको केवल इसके लिये दूबारा इतनी दूर से आना पड़ता। "
रास्ते मे लौटते समय हम और सूर्यभान जी यही बात कर रहे थे कि आज के चिकित्सा स्वार्थ के धंधे मे यह चिकित्सा धर्म बिरले ही देखने को मिलता है।ऐसा अनुभव मात्र हमारे साथ ही नही औरों के साथ भी हुआ है। जो भी डा० दीपक गौतम के यहां गया उनका कायल बन कर ही लौटा। यहीं कारण है कि उनके मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और अपने मरीजों की सेवा मे ही अपना सुख पाने वाले डॉ०दीपक गौतम के प्रशंसको का सूकून भी।
आज भी ऐसे ही डाक्टरों से चिकित्सा धर्म की प्रतिष्ठा बनी हुई है जो आधुनिक दधिचि, चरक और सुश्रुत के रूप मे सेवा भाव मे लगे हुये है। धन्यवाद #डॉ०दीपक_गौतम।
#धरती_के_भगवान
#व्योमवार्ता
#मानवगिद्ध
काशी, 13सितंबर 2021,सोमवार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें