धरती के भगवान (भाग-7)
धरती के भगवान की श्रेणी मे शामिल अधिकांश #चिकित्सक मानवगिद्ध ही हो ऐसी बात नही है जैसा मैने इस श्रृंखला के पहले ही भाग मे लिखा था कि आज भी हमारे समाज मे ऐसे चिकित्सक है जिनके कर्तव्य परायणता एवं #चिकित्सा_धर्म के प्रति निष्ठा को देख कर हम सब का सिर #श्रद्धावनत हो जाता है। आज भी हमारे ही बनारस मे आधुनिक दधिचि परम श्रद्धेय पद्मश्री #डा०टी०के०लहड़ी सर, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ की पूर्व कुलपति पद्मश्री #डा०_सरोज_चूड़ामणि_गोपाल, राजस्थानआयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति #डा०रामहर्ष_सिंह, #डा०रवि_टण्डन,#डा०यू०पी०शाही, कोरोना महामारी में अपने अंतिम समय तक चिकित्सा सेवा करते हुये उत्साह भरने वाले स्व० पद्मश्री# डा०के०के०अग्रवाल, भारत रत्न #डा०बी०सी०राय जैसो ढेरों नाम हमारे लिये उदाहरण है। पर दुखद यह है कि आज स्थितियां बिलकुल बदल गई है अब चिकित्सा धर्म के बजाय पेशा बनता जा रहा है जिसमे चिकित्सा ज्ञान और अभ्यास को मात्र पैसे कमाने वाली मसीन समझा जा रहा है। शोचनीय स्थिति यह है कि चिकित्सक समाज में यह प्रवृत्ति धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही है। हमे तो नही लगता है कि आज कल के किसी चिकित्सक को #हिप्पोक्रित्ज की #शपथ याद होगी जो उन्हे अपने चिकित्सा धर्म के गौरव पवित्रता और सत्यनिष्ठा की सदैव याद दिलाती थी।
यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रित्ज (460-320ईसा पूर्व) ने चिकित्सा छात्रों के लिये एक शपथ बनाया था जो #चिकित्सक बनने से पूर्व उन्हे लेना होता था। तब से लेकर आज तक उस शपथ मे भाषा, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार कुछ परिवर्तन भी किये गये पर शपथ के अंतर्वस्तु और उसमे समाहित पवित्रता पर कोई अंतर नही आया। हिप्पोक्रित्ज कीशपथ निम्न प्रकार थी -
"मैं अपोलो वैद्य, अस्क्लीपिअस, ईयईआ, पानाकीआ और सारे देवी-देवताओं की कसम खाता हूँ और उन्हें हाज़िर-नाज़िर मानकर कहता हूँ कि मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के अनुसार इस शपथ को पूरा करूँगा।
जिस इंसान ने मुझे यह पेशा सिखाया है, मैं उसका उतना ही गहरा सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूँ। मैं जीवन-भर उसके साथ मिलकर काम करूँगा और उसे अगर कभी पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो उसकी मदद करूँगा। उसके बेटों को अपना भाई समझूँगा और अगर वे चाहें, तो बगैर किसी फीस या शर्त के उन्हें सिखाऊँगा। मैं सिर्फ अपने बेटों, अपने गुरू के बेटों और उन सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दूँगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के मुताबिक शपथ खायी और समझौते पर दस्तखत किए हैं। मैं उन्हें चिकित्सा के सिद्धान्त सिखाऊँगा, ज़बानी तौर पर हिदायतें दूँगा और जितनी बाकी बातें मैंने सीखी हैं, वे सब सिखाऊँगा।
रोगी की सेहत के लिये यदि मुझे खान-पान में परहेज़ करना पड़े, तो मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के मुताबिक ऐसा अवश्य करूँगा; किसी भी नुकसान या अन्याय से उनकी रक्षा करूँगा।
मैं किसी के माँगने पर भी उसे विषैली दवा नहीं दूँगा और ना ही ऐसी दवा लेने की सलाह दूँगा। उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भ गिराने की दवा नहीं दूँगा। मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपनी ज़िंदगी और अपनी कला की रक्षा करूँगा।
मैं किसी की सर्जरी नहीं करूँगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह काम उनके लिए छोड़ दूँगा जिनका यह पेशा है।
मैं जिस किसी रोगी के घर जाऊँगा, उसके लाभ के लिए ही काम करूँगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूँगा, हर तरह के बुरे काम से, खासकर स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूँगा, फिर चाहे वे गुलाम हों या नहीं।
चिकित्सा के समय या दूसरे समय, अगर मैंने रोगी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई ऐसी बात देखी या सुनी जिसे दूसरों को बताना बिलकुल गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही रखूँगा, ताकि रोगी की बदनामी न हो।
अगर मैं इस शपथ को पूरा करूँ और कभी इसके विरुद्ध न जाऊँ, तो मेरी दुआ है कि मैं अपने जीवन और कला का आनंद उठाता रहूँ और लोगों में सदा के लिए मेरा नाम ऊँचा रहे; लेकिन अगर मैंने कभी यह शपथ तोड़ी और झूठा साबित हुआ, तो इस दुआ का बिलकुल उल्टा असर मुझ पर हो।"
पर आज यह शपथ केवल कागजी और पारंपरिक औपचारिकता बन कर रह गई है। हमे तो आज तक #काशी_हिन्दूविश्वविद्याल_विश्वविद्यालय के एक दो वरिष्ठ चिकित्सकों के चैम्बर मे ही हिप्पोक्रित्ज के चित्र और शपथ के दर्शन हुये हैं और किसी अस्पताल या क्लिनिक मे नही। कोई आश्चर्य नही कि आजकल के डाक्टरों से हिप्पोक्रित्ज शपथ के बारे मे पूछने पर वे हिप्पोक्रित्ज या शपथ के अस्तित्व से ही इंकार कर दें। और आजकल चार कमरों के अंदर बैठे ढेरो ताम झाम बनाये 500 से लेकर 5000/- तक की फीस वसूलने के साथ #मेडिकलस्टोर के छद्म मालिक, #पैथालाजी_लैब से लेकर #दवा_दुकादारों से #कमीशन खाने वाले, दवा #कंपनियों के #गिफ्टटूर पर #विदेश_यात्रा करने वाले आधुनिक मानवगिद्धों से यह आशा करना भी बेमानी होगा। प्रश्न यह है कि हम से विशेष श्रेणी का सम्मानित दर्जा चाहने वाले कथित धरती के भगवान के चोले मे छिपे मानवगिद्ध स्वयं को हिप्पोक्रित्ज के शपथ पर स्वयं का #मूल्यांकन कब करेगें?
आज वह #समय आ गया है कि इस पर विचार हो ताकि धरती के भगवान श्रेणी मे छिपे मानवगिद्धों की #पहचान #सार्वजनिक हो, भले ही अब मानवगिद्धों के जमात मे धरती के भगवान की संख्या गिनी चुनी ही हो।
(अगले अंक मे आज के वर्तमान मे चिकित्सा धर्म का निर्वहन करने वाले वे डाक्टर जिनके लिये आज भी मन मे सम्मान व श्रद्धा है जिनके वजह से चिकित्सा अभी धर्म है।)
काशी, 12सितंबर, 2021,रविवार
#व्योमवार्ता
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