शनिवार, 18 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता / भूख का ईमान (लघुकथा) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17अप्रैल 2020

लघुकथा/

                        भूख का ईमान

                                               -व्योमेश चित्रवंश

"आज तुम्हारे तरफ तो सामान बॉटने वाली गाड़ी गई थी ?" बर्तन मॉजने वाली के आते ही मेरी पत्नी ने उत्सुकता जताई।

"जी भाभी, सबको राशन का पैकेट दिया था।"

"तुम्हे मिला?" पत्नी ने पूछा।

"नही, हमें नही मिला भाभी, जिन लोगो के पास राशन नही था , पूछ कर उनको दे रहे थे।"

         कल सुबह जब मेरी पत्नी ने बताया था कि अपनी बर्तन करने वाली के पास खाना बनाने के लिये कुछ भी नही है तो मैने अपने मित्र मुसीर भाई से कहवा कर उसके लिये एक किट राशन सामग्री की व्यवस्था करवाया था।

" तुम्हे भी बता देना था कि तुम्हारे पास नही है, ले कर रखी रहती। काम आता। " पत्नी ने उसे ज्ञान देते हुये कहा।

" कैसे कह देते भाभी, ये तो झूठ होता न, फिर और लोगों को भी तो जरूरत है, वे इस बंदी में कैसे राशन पायेगें जब हम लोग झूठ बोल कर दो दो तीन पाकेट रख लेगें।" वो बहुत सरलता से बोली।

       हम और पत्नी उसकी इमानदारी सुन एक दूसरे का मुँह देख रहे थे और वह हमारे भावों से बेखबर चुपचाप बर्तन धोने में व्यस्त थी।

(बनारस, 17अप्रैल 2020, शुक्रवार)

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