व्योमवार्ता / वास्तव में आज गरीब कौन है?
कोरोना के चलते लाकडाऊन ने आज एक बार यह सवाल सिद्दत से खड़ा कर दिया है कि हमारे आज के समाज मे जरूरत के लिहाज से गरीब कौन है? समय से पचीस दिन पीछे चलते है, देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी २३ मार्च की रात आठ बजे देश को संबोधित करते हुये रात के १२ बजे से पूरे देश मे लाकडाऊन घोषित कर देते हैं। देश की जनता पूरे मन से अपने प्रधानमंत्री का साथ देती है। महीने के अंतिम सप्ताह होने के कारण घरों मे राशन का बजट सीमित मात्रा मे है। दो दिन बाद नवरात्रि का त्योहार भी प्रारंभ हो गया है, मान्यतानुसार भारत की बहुसंख्यक जनता नवरात्रि के नौ दिनो तक व्रत उपवास के साथ विभिन्न मंदिरो मे शक्तिस्वरूपा नौ दुर्गा के नौ स्वरूप का दर्शन करती है। मंदिर के आसपास के दुकानदारों सहित पौराहित्व एवं धार्मिक कर्मकाण्ड करने वालो को इसका इंतजार रहता है।
रोजाना कुऑ खोदने और पानी पीने वाले छोटे दुकानदार, चाय पान, फास्टफूड, रेहड़ी, गुमटियॉ, मजदूर, ठेके या रोज के मजदूरी पर कार्य करने वाले प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, पेन्टर, कारपेन्टर, राजगीर जैसे सेवाओं मे लगे श्रमिक शक्ति जहॉ रात के आठ बजे तक अपने कल के लिये अपने ईमानदारी एवं मेहनत पर आश्रित थी वह एकझटके से २४ मार्च के सुबह से बेरोजगार ही नही जीवन संघर्ष मे हवा मे त्रिशंकू की तरह हो गई।
पर जिस वर्ग पर किसी ने ध्यान नही दिया न ही आज तक दे रहा है वह था यशपाल के कहानी 'पर्दा' का परिवार। जी हॉ, निम्न मध्यवर्ग एवं मध्य आय वाला मध्यवर्ग। जो अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखता हुआ अपने ग्रामीण अतीत या पुराने कस्बे मोहल्ले से रिश्ता भूला कर अपने भविष्य को बनाने के लिये वर्तमान की निरंतर आहुति देता रहता है। यह भविष्य के सपनो मे जीने वाला वह परिवार है जो अपने बच्चों के भविष्य बनाने के लिये अपने अतीत के परिवार अपने माता पिता को छोड़ एकाकी फैमिली मे रह रहे है। इन अधिकांश एकाकी परिवारों मे मुखिया किसी प्राईवेट फर्म , स्कूल, कोचिंग ,दुकान,कंपनियों मे नौकरी करता है, कहीं रेहड़ी लगाता है,ट्यूशन करता है, आटो , बस चलाता है या ऐसे ही कामों को कर के अपने और परिवार का खर्च चलाता है। बहुतेरे इसमे ऐसे भी है जो महानगरों से लेकर आसपास के शहरों तक मे किराये के मकान या हजार पॉच सौ गज के जमीन का टुकड़ा खरीद अपना छोटा सा मकान बनवा कर गुजर बसर कर रहा है। अगर गॉव पर इस मकान बनवाने और जमीन खरीदने के बाद पुरखों के बचाये हुये थोड़े से खेत बचा पाया है तो वह अपने मोटे अनाजों जैसे गेहूं चावल के लिये अपने गॉव मे मौजूद उन्ही खेतों पर निर्भर है। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि यह वही वर्ग है जिसमे दूसरों से तुलना कर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति व्याकुलता के हद तक व्याप्त है। इसलिये उसके शहर वाले घरों मे खुद को खुश दिखाने वाले और अब जरूरत भी बन गये ज्यादातर उपकरण जैसे एसी, वासिंग मसीन, ऱूम थियेटर , प्लाज्मा एलईडी स्मार्ट टीवी, कार, बाईक जैसी चीजें ईएमआई पर चल रही हैं। यह वर्ग अपने को निम्नवर्ग से ऊपर और ऊच्चवर्ग के नजदीक दिखाने की कसमकस मे जूझते हुये पर्दा कहानी का वर्तमान विशिष्ट और परिष्कृत रूप है।
वर्तमान मे यही वर्ग सबसे अधिक समस्याग्रस्त है। वह सरकारी व्यवस्था हेल्पलाईन और स्वयंसेवी संस्थाओं तो अपनी वास्तविक कल मस्थिति बता कर दूसरों ते नजरों मे गरीब व बेचारा भी नही दिखना चाहता और रोजमर्रा के वास्तविक अभावों से मुंह भी नही मोड़ पा रहा। इसमे प्राईवेट स्कूल मे काम करने वाले शिक्षक, कर्मचारी, कोचिंग चलाने वाले, छोटे दुकानदार, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक सहित अप्रशिद्ध व अस्थापित डाक्टर्स, वकील, नये वास्तुकार, प्राईवेट इंजीनियर, कंम्प्यूटर आपरेटर,कांट्रैक्ट सेवारत कर्मी, कर्मकाण्डी पंडित, ज्योतिष, बीमा एजेंट जैसे लोग शामिल है। कल मुझसे एक परिचित ने फोन कर के अपना मोबाइल रिचार्ज कराने और उनके घऱ चार पैकेट ब्रेड और दूध पहुंचाने का अनुरोध करते हुये बताया कि उनके पास रखे नकद पैसे खर्च हो गये है और फिलहाल कहीं से कोई पैसा आने की उम्मीद नही है, उनकी समस्या यह है कि फिलहाल वे अपने गॉव भी नही जा सकते जहॉ उनकी गेहूं और सरसो की फसल तैयार है। यह एक मात्र उदाहरण नही है बल्कि ऐसे उदाहरण इसलिये नही आ पा रहे है क्योंकि उन्होने स्वयं को अपना ईज्जत बचाने के लिये कमरों मे बंद कर रखा है। उनकी मानसिक स्थिति कितनी तनावपूर्ण है इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि उन्हे लाकडाऊन खत्म होने के बाद स्कूलो मे प्रवेश शुल्क, घर का किराया, बिजली का बिल, ईएमआई देने की चिंता है।
जरूरत है कि इन मूक पीड़ा झेल रहे वास्तविक गरीबों के लिये कोई बेहतर व्यवस्था किया जाये अन्यथा आने वाले दिनों मे हमारे देश को इस बीमारी के दुष्प्रभाव के रूप मे एक नये मानसिक तनाव पीड़ितों का सामना करना पड़ेगा।
(बनारस, 15अप्रैल 2020, बुधवार)
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#Vyomvarta
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