व्योमवार्ता /आज कुरुक्षेत्र को पुन: समझते हुये
पर सको सुन तो सुनो, मंगल जगत के लोग!
तुम्हे छूने को रहा जो जीव कर उद्योग,
वह अभी पशु है; निरा पशु, हिंस्र, रक्त-पिपासु,
बुद्धि उसकी दानवी है स्थूल की जिज्ञासु।
कड़कता उसमें किसी का जब कभी अभिमान,
फूँकने लगते सभी हो मत्त मृत्यु-विषाण।
कोरोना को प्रसारित करने वाले उत्पातियों पर कुरुक्षेत्र की यह पंक्तियॉ अक्षरस: सत्य प्रतीत होती है। वास्तव मे चिकित्सकों, सुरक्षाकर्मियों पर आक्रमण करना, रोग को बढ़ाने के उद्देश्य से स्थान स्थान पर थूकना, मलमूत्र त्यागना इनके मानव रूपी हिंस्र पशु होने को ही सिद्ध करता है।
(बनारस,१६अप्रैल २०२०, गुरूवार)
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