सोमवार, 17 अगस्त 2020

यह सड़क मेरे गॉव को नही जाती...(२) पूर्वपीठिका

पूर्वपीठिका/

मेरे गॉव को जाने वाली सड़क
                                                                              यह कोई पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम नही था पर परिवार खानदान के लोगों मे यह इच्छा कई वर्ष से चल रही
थी।  समस्या यह थी कि सबको एक संग कैसे लाया जाय। अब हमारा खानदान गॉव से निकल कर महानगरों के रास्ते मुंबई, दिल्ली, पूने, लखनऊ होते हुये सात संमुदर पार सिंगापुर तक जा बसा था।पिछले दो ढाई दशक दशकों से खानदानी तनातनी नें परिवारों के मध्यएक अबूझ सा मौन अंतराल बना दिया था ऐसे मे किसी सामूहिक कार्यक्रम के लिये सबको एकराय कर एकमंच पर ले आना तराजू के एक पलड़े पर मेढक तौलने के समान था। पर इसे संयोग ही कहें कि बात चल निकली तो परिवार के ही रेलवे से अगले छमाही मे अवकाशप्राप्त करने वाले चाचा ने जजमान बनने के लिये हामी भरते हुये गया महायज्ञ कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने को कहा। अब सवाल यह था कि कार्यक्रम का अगुआ कौन बने?क्योंकि इसमे अगुआ की भूमिका ही संयोजक की थी जो गॉव से लेकर शहर तक ही नही बल्कि देश विदेश मे रहने वाले सबके साथ सामंजस्य बैठा सके।उसे सर्वमान्य होने के साथ साथ गॉव से संपर्क मे रहना भी आवश्यक था। इस तरह यह जिम्मेदारी मुझे दे दी गई। सारी व्यवस्थाओं को करने मे मै पिछले दो तीन महीने तक लगभग हर रविवार को गॉव जा कर गया महायज्ञ की व्यवस्थाओं को करता रहा चौकी से लेकर यज्ञ पूजा तक, मजदूर से लेकर हलवाई तक। गॉव पर रहने वाले हमारे खानदानी पटिदार रविकान्त मास्टर स्थानीय स्तर पर हमेसा मेरे लिये खड़े पैर सहयोगी बने रहे। टेन्ट,बुफे , चाय ,नास्ता, बिस्तर ,पूजा,  निमंत्रण ,आवागमन ,बिजली पानी के इंतजामात मे ही हमे यह महसूस होने लगा था कि अब गॉव पहले जैसा नही रहा। पर रविवार को जाकर दो घंटे मे वापस आ जाने पर इसके पीछे के कारण को समझना आसान नही था ।फिर दो महीने बाद 23 सितंबर आया जब गया जाने के पहले सप्ताह भर चलने वाले भागवत् कथा के लिये पूरा खानदान तीस चालीस बरस बाद एक साथ जमा होना था गॉव पर, सबके मन मे उत्साह था। मै खुद लगभग पचीस सालों बाद अपने गॉव रात रूकने और दस दिन वहॉ रूकने जा रहा था।पचीस  या शायद उससे भी ज्यादे, याद नही । हम अपने गॉव जा रहे
थे। अपना गाॅव जो अब भी मेरे मन में हमेशा जीता है, अकसर अकेले रहने पर चुभता है, पुचकारता है, गुदगुदी करता है। कभी आँखें नम हो जाती है और कभी अकेले में अनायास ही मुस्करा देता हॅू। मेरे द्वारा बार-बार बताये गये किस्से कहानियों का मेरा पुत्र कभी अचरज भी निगाहों से सुनता है, कभी न विश्वास करने वाले मन से गुनता है। इधर काफी दिनों से उसकी जिद थी कि हम भी देखें गाॅव कैसा होता है? वह क्या वैसा ही होता है जैसा रामायण, दूरदर्शन और बाकी सीरियलों में दिखाते है या जैसा आप बताते है। पत्नी और पुत्र भी साथ थे । मै उसे अपने गॉव के बारे मे बताता चल रहा था।
शहर पार करते ही मोदी जी की कृपा से बने शानदार फोरलेन हाइवे पर बाईस किमी कब बीत गये पता ही नही चला।मेरा मन कार की गति से भी तेज अतीत की टेढ़े-मेढ़े चलचित्र वाले रास्ते पर भाग रहा था। जब पिण्डरा बाजार से पहले बाबतपुर एयरपोर्ट से आगे बढ़ते ही अब दायी ओर निकलती सड़क पिण्डरा बाजार फूलपुर को चली जाती है। पहले यही मूल सड़क हुआ करती थी जो लखनऊ से आते हुए जौनपुर को त्रिलोचन महादेव से पार करती हुई डिग्घी पर अब करखियाॅव एग्रो पार्क में बनारस की सीमा में प्रवेश करती थी और फूलपुर मीरासाहब पिण्डरा, कैथोली होते हुए
बाबतपुर एयरपोर्ट के बगल राष्ट्रीय राजमार्ग 56 बनाती थी। पर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन एनडीए वाले मोदीसरकार में जब सड़कों का चौड़ीकरण होना प्रारम्भ हुआ तो बनारस लखनऊ राजमार्ग को भीड़भाड़ वाले बाजारों से बाहर सुगमयातायात योजनान्तर्गत इसे पिण्डरा, फूलपुर और त्रिलोचन बाजार के बाहर-बाहर पश्चिम की ओर से निकाल दिया गया तो पुरानी वाली मुख्य सड़क से जाते है हमारे गाॅव। मुख्य हाईवे छोड़ते ही उबड़-खाबड़ उखड़ी हुई सड़क ने पुनः गाॅवों के प्रति प्रशासनिक व्यवस्था के उदासीनता से मन खिन्न कर दिया। पिण्डरा बाजार की भीड़भाड़
अभी भी वैसी ही है जैसे पहले हुआ करती थी। हाॅ भीड़ में थोड़ा शहरीपन का प्रभाव दिखने लगा है। पिण्डरा बाजार के बाद नेशनल इण्टर कालेज से आगे पेट्रोल पम्प के पास से बायी ओंर अन्दर जनपद की नई तहसील पिण्डरा बन गयी है। पहले वहाॅ जमापुर नर्सरी हुआ करती थी जहाॅ से कई बार पौधे खरीद कर हमने गाॅव पर लगाया था और उनमें से ज्यादातर आज पेड़ बन गये है। कठिराॅव वाला मोड़ पार करते ही मीराशाह का बगीचा और पोखरा अभी भी वैसे ही है। शान्त निर्जन भूतहा जैसे। मेरा मन पुरानी यादों की तरफ फिर भागने लगता है। नाद नदी पार कर फूलपुर थाने से शुरू होता है फूलपुर बाजार। इसी फूलपुर से पूरब दिशा में एक सड़क निकलती है जो जाकर सिन्धोरा में बनारस केराकत रोड़ में मिल जाती है। दूसरी सड़क पर रेलवे लाईन को डाॅकने के बाद आगे एक और सड़क निकलती है जो सीधे मेरे गाॅव को जाती है।
मैं, फूलपुर बाजार की देर सारी बातें याद करता हुआ कार पूरब वाली सड़क पर मोड़ देता हॅू। अब यह मोड़ काफी भीड़ भरा हो गया। मुख्य सड़क के पश्चिम पटरी पर खुले नये बैंक के ठीक सामने से निकल रही सड़क पर ढेर सारे टैम्पो खड़े है जो अब सुबह के सात बजे से रात के सात आठ बजे तक फूलपुर सिन्धोरा के बीच चलते रहते हैं। टैम्पों को रिजर्व कर भाड़े पर उसे अन्दर के गाॅवों में भी ले जाया जा सकता है। मोड़ पर ही कई बड़े-बड़े मार्गदर्शक बोर्ड भी लगे हुए हे। नवोदय विद्यालय खालिसपुर रेलवे स्टेशन से लेकर पावर हाउस तक के। मोड़ पर दो-तीन मिठाई की दुकाने भी खुल गयी है और उन्हीं दुकानों की आड़ में उत्तर पटरी पर भारत सरकार की विशिष्ठ परियोजना का सामुदायिक स्वास्थ्य मातृ शिशु कल्याण केन्द्र जो अब स्वास्थ्य सेवाओं के देने के बदले में सार्वजनिक मूत्रालय के रूप में ज्यादा प्रयुक्त होता है। बाजार से सड़क पर आगे बढ़ते ही कंजड़ों की बस्ती है जहाॅ उनके परिवार की महिलाएं आज भी अपने
परम्परागत व्यवसाय कच्ची शराब उतारती है। सड़क से निकलते समय सड़ते हुए महुआ की महक और बीच-बीच में छोटी-छोटी मड़ईयों में सूअर के गोस्त की दुकानों से सिमटी सड़क। अच्छाई यही है कि यहाॅ सड़क पर बस सही लोग
रूकते है जो उन दुकानों के अथवा दुकानों के पीछे चलने वाले ठर्रा के ग्राहक है। अब फूलपुर से सिन्धोरा वाली रोड भी भर गयी है। सन् 1985 में राजीव गाॅधी के सत्ता से पहले यह रोड नही हुआ करती थी बल्कि कच्ची सड़क थी जो बरसात में कीचड़ और गर्मियों में कंकड़ पत्थर सिटकी रहित सफेद रेहटा से चमकती रहती थी। उजाड़ बीरान में किसी विधवा के खाली माॅग की तरफ। बाजार से निकलने के बाद एक किमी वाले पत्थर के पास ही बायीं तरफ अम्बेडकर जी की एक चबूतरे पर विद्यमान है और उनके चारों तरफ बने छोटे-छोटे कमरों के बीच से बने रास्ते पर एक नीला बोर्ड
लगा है भारतीय संविधान के निर्माता बोधिसत्व भारतरत्न बाबासाहब डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर आदिप्राथमिक बेसिक पाठशाला फूलपुर। जहाॅ तक मुझे जानकारी है यह सरकारी बेसिक प्राइमरी स्कूल है पर कब इसका नाम भारतीय संविधान के निर्माता बोधिसत्व भारतरत्न बाबा भीमराव अम्बेडकर के नाम पर हो गया। यह शायद शिक्षा विभाग केअधिकारी भी नही बता पायें। कभी-कभी मैं सोचता हॅू कि यह विडम्बना ही है कि मूर्तिपूजा के विरोध में प्रवर्तित किये गये बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध की मूर्ति विश्व में सर्वाधिक है। ठीक उसी तरह उनके अनुयायी भीमराव अम्बेडकर के साथ भी यही बिडम्बना दुहराई गयी। शायद ही भारत का कोई गाॅव बचा हो जहाॅ बाबा साहब अम्बेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता कह कर उनकी मूर्ति स्थापित न की गयी हो। इस जातिगत राजनीति में हम इतने स्वार्थवादी हो गयी है कि अपने संविधान को भी बाबा साहब अम्बेडकर का संविधान कहकर छद्म तथ्यों वाले
इतिहास को प्रश्रय देते जा रहे हैं।
मेरा ध्यान रेलगाड़ी के लम्बे हार्न की आवाज से पुनः सड़क पर चला जाता है। सामने रेलवे फाटक बन्द है और धड़धड़ाते हुए एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी बिना खालिसपुर स्टेशन पर रूके निकल जाती है। अब इस रेल लाईन का भी विद्युतीकरण हो गया है। हाबड़ा से पंजाब मेन लाईन की शुरूआत सन् 1872 ई0 में हुई थी।बनारस से लखनऊ मेन लाइन जफराबाद तक शुरू से ही डबल ट्रैक में विछाई गयी थी और समुद्रतल से लगभग 82
मीटर उचाई पर इस रेलवे ट्रैक पर शुरूआत से ही खालिसपुर (केएस एफ) स्टेशन बनाया गया था। भौगोलिक लिहाज से बनारस जनपद के उत्तरी छोर का आखिरी रेलवे मुकान और सामाजिक व वास्तविक दृष्टि से लगभग 50 वर्ग किमी के क्षेत्र में अकेले यातायात व परिवहन का सहारा था यह खालिसपुर रेलवे स्टेशन। स्टेशन भवन अंग्रेजी व पाश्चात्य शैली में बना है जो शायद 1872 का ही बना हो। पहले कोयले वाले इंजन फिर डीजल इंजन और अब बिजली से चालित रेलगाड़ियों का इतिहास समेट रखा है। खालिसपुर स्टेशन के इस पुराने भवन ने अंग्रेजों के जमाने की लाल पगड़ी
वाली पुलिस से लेकर भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग भी इस गुंबदवाले चन्द्राकार छत के जेहन में ताजा है। रेलवेफाटक पार करते ही बायी ओर कंक्रीट स्लीपर प्लान्ट है। सन् 1980 में जब पंडित कमलापति त्रिपाठी जब बनारस से सांसद बने थे तो रेलमन्त्री के रूप में उन्होंने यह तोहफा दिया था। इस विकास से भूले विसरे धूल धूसरित इलाके को। पर रेलवे के अफसरान की लापरवाही कहे या इस इलाके का दुर्भाग्य यह प्लान्ट अब बन्द हो चुका है। यहाॅ काम कर रहे मजदूरों, कर्मचारियों को अब कहीं और स्थानान्तरित कर दिया गया है। यहाॅ बचे है फैक्ट्री के चलने के समय के बने रेलवे के वीरान क्वाटर्स बन्द पड़ी फैक्टरी पर लगा बड़ा सा ताला और यहाॅ के बेरोजगारी भरी दुर्भाग्य। फैक्टरी के बनने और चलने का पश्चातवर्ती प्रभाव यह पड़ा कि कभी उजाड़ खण्ड में बियादान में डेढ़ दो किलोमीटर से दिखाई देने वाले खालिसपुर रेलवे स्टेशन और रेलवे सिग्नल ट्रैक पर चलने वाली रेलवे गाड़ियां अब यहाॅ बाजार रूपी दुकानों के मध्य स्थित होने से नजर नही आती। फाटक के दोनों तरफ कुल मिलाकर सौ दुकाने चलती फिरती घूमती टहलती भीड़ का माहौल को कस्बानुमा बनाती है। अब तो भारतीय स्टेट बैंक की नई शाखा भी खुल गयी है जो बताने के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण है कि देष का विकास चल कर इस पिछड़े तिरस्कृत इलाके तक पहुॅच गया है। जहाॅ लोगों की जेब और
बैंक के काउन्टरों में आपसी तालमेल का एक रिश्ता बनकर आम जन को बचत एवं पॅूजी के महत्व को बताता है।बचत न रहने पर ऋण भी दिये जाते है जिसकी ईन्द्रजालिक व्यवस्था बैंक अधिकारी ऋणी एवं बीच का माध्यम दलाल वर्ग वखूबी से सम्पादित करता है। इसी सड़क पर फूलपुर से लगभग साढे चार किलोमीटर आगे चलने पर पंचवटी की पर्णकुटी जैसा वातावरण सूखे वीरान सड़क पर रेगिस्तान के बीच हरियाली के मिलने जैसा ही है। गाॅव देवजी का यह छोटा सा हरा भरा छायादार क्षेत्र पनवरिया के नाम से जाना जाता है। बताते है कि पहले यहाॅ देशी पान की खेती होती थी। पोखरे के किनारे लगे बसवांर के आड़ में सरपत की छोटी छोटी टाटियां बनाकर पान की खेती करते थे यहाॅ के बरई लोग। बस पनवरिया से बाये हाथ उतर जाती है हमारे गाॅव की सड़क। मैं मुड़ते हुए अगल-बगल के खेतों को पहचानने लगता हॅू। पचास मीटर थोड़ा सा आगे सिन्धोरा रोड पर नया-नया पेट्रोल पम्प खुल गया है। हमें याद आता है कि कैसे पन्द्रह साल पहले तक पेट्रोल डीजल के लिए हमारा गाॅव पिण्डरा बाजार या सिन्धोरा मरूई बाजार के पेट्रोल पम्पों पर आश्रित था। पन्द्रह वर्ष पूर्व जब गाजीपुर के पूर्व सांसद मनोज सिन्हा का पेट्रोल पम्प थाना
फूलपुर के बगल में खुला तो हमारे गाॅव के लोग बहुत खुश हुए थे और अब तो यह पेट्रोल पम्प लगभग गॅाव में खुल गया। मोड़ पर ही मुर्गा की कुछ दुकाने भी खुल गयी है। हाल में ही कोई बता रहा था कि अब बगल वाले गाॅव के बाजार में देशी दारू का ठीका भी खुल गया है। यह भी एक शोध का विषय है कि जैसे-जैसे इस देश में महगाई बढ़ती गयी उससे भी तेज गति से यहा शराब और मुर्गे मांस मछली की दुकाने खुली ही नही बथ्लक खुली फली भी और बार-बार मद्य निषेध विभाग द्वारा शराब मुक्ति और नशामुक्ति के लाख प्रयासों के बावजूद आबकारी विभाग किस तरह अपने लक्ष्य को हर वर्ष बढ़ाकर प्राप्त करने में सफल रहता है।
अपनी इस सोच पर खुद ही मुस्कराता हुआ मैं चारे वाली फैक्टरी के बगल से होता हुआ सड़क पर खुली रमजान मियां की नई दुकान से होते हुए गाॅव में घुस गया। वहाॅ भी गाॅव में घुसते ही बाये तरफ अम्बेडकर बाबा का नया मन्दिर बन गया है। संविधान बाये हाथ में थामे दूसरे हाथ को उठाये गौतम बुद्ध के मूर्ति पूजा विरोधी बौद्ध धर्म के अनुयायी डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर। मेरे गाॅव के अंबेडकर अनुयायियों ने मूर्ति व अपूर्ण मन्दिर के आस-पास गाॅव सभा की इस बंजर भूमि पर सात
आठ पेड़ लगा दिये हैं। चलो कम से कम इसी बहाने थोड़ी हरियाली तो हैं। मैने सड़क पर लगे पत्थर को देखा नदोय 1 किलोमीटर। सड़क सीधे गाॅव में चली गयी। हाॅ मेरे गाॅव में जाने वाली सड़क है ।यही सड़क मेरे गाॅव को चली जाती है।
http://chitravansh.blogspot.com

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