शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

व्योमवार्ता /यादें यू पी कालेज की ......(४)

#व्योमवार्ता/ यादें यू पी कालेज की...(४):व्योमेश चित्रवंश की डायरी

        अक्टूबर नवंबर में दशहरा दीवाली दोनो को मिला कर एक लंबी छुट्टी कालेज मे होती थी। नवप्रवेशी छात्रों विशेषकर दूर से आये छात्रों के लिये यह पहला मौका होता था घर वापस जा के कालेज के दिनचर्या को मिस करते हुये घर परिवार मे जीवन बिताने का। पर हमें लगता है कि ज्यादातर छात्रों के लिये यू पी कालेज का माहौल भूला पाना ज्यादा भारी होता था। दीवाली की छुट्टी खत्म होते ही कालेज पूरी तरह से भर जाता। तब तक सभी अपने अपने ढंग से समय बिताने का जरिया भी खोज लेते। खेल से जुड़े हुये बनारस के हाकी का मक्का कहे जाने वाले शानदार मैदान मे गौरीशंकर मास्टसाब और रामललित सर Ram Lalit Singh के छत्रछाया में, तो क्रिकेट खेलने वाले रणंजय सर के साथ। बास्केटबाल नाथन सर के देखरेख मे तो बालीबाल गुलाब सर के साथ। तब बास्केटबॉल कोर्ट स्विमिंगपुल के सामने पुराने लाईब्रेरी के पीछे हुआ करता था और लड़कियों के लिये रानी मुरार कैम्पस में। एनसीसी के लड़के खुद को रंगरूट के नये ड्रेसअप मे फिट कर के गिरधर सिंह सर, रामसुधार सर Ramsudhar Singh, रामयाद सर और नीलकमल मैडम Neelkamal Singhके कमान मे ड्रिल करते नजर आते थे। तब यू पी कालेज ग्राउण्ड भारतीय हाकी का एक अभिन्न अंग हुआ करता था जहॉ पद्मश्री स्व० मो०शाहिद, नईम, नागेन्द्र सिंह मिण्टू, आर पी सिंह, सुनील सेठ ,शैलेन्द्र सिंह, स्व० विवेक सिंह, प्रशान्त वगैरह डेली प्रैक्टिस को आते थे। तो क्रिकेट मे आज के उत्तर प्रदेश के अम्पायर आर पी गुप्ता, मशहूर अथलीट गुलाब सिंह, अर्जुन सिंह भी शाम को यू पी कालेज मैदान आ ही जाते थे।
                  हम जैसे सख्त अनुशासन को न मानने वालों के लिये सबसे मुफीद जगह एनएसएस थी। बनारसी मिश्रा सर, गणेश सिंह सर , महेन्द्र प्रताप सर के सानिध्य मे हम लोग सप्ताह मे दो दिन सेवा कार्य कम करते कामचोरी ज्यादा। प्राय: हमें और राकेश को सेवा कार्य के बाद प्रोत्साहन प्रसाद के रूप मे समोसा और लालपेड़ा बॉटने की जिम्मेदारी मिलती और हम बड़े ईमानदारी से अपने खास दोस्तों को दो के बदले तीन समोसा और एक की जगह दो लालपेड़ा बॉटने मे कभी भी बेईमानी नही करते थे। बाद मे बॉटने के मेहनताने के रूप मे भी हमारा दो  अतिरिक्त समोसे और दो लालपेड़े पर हक बनता ही था। हम लोग कभी कभी खेल के मैदान मे भी हाथ आजमा लेते थे। हाकी उठाये और चल पड़े मैदान में, पर उसमे कभी नियमितता नही रहने से नियमित खिलाड़ी नही बन सके।कभी  किट पहन के मैदान मे गये तो क्रिकेट खेल लिये, कभी खाली टीशर्ट और लोवर मे गये तो बालीबाल। पर इसका परिणाम यह हुआ कि मैदान के खिलाड़ियों से हमारी अच्छी खासी दोस्ती हो गई। अखिलेश द्वय Akhilesh Singh,Akhilesh Singh, सूर्यभानSuryabhan Singh, राजनRajan Singh, चंद्रबलीChandrabali Singh, स्व०जफर, मार्कण्डेयMarkanday Singh, संजय गुप्ता, मनोज, संजय पाण्डेयSanjay Pandey, रविशंकर सिंह, महेश भैयाMahesh Singh, स्व० रामकुमार, प्रदीप गुप्ता,  संजीवSanjeev Singh, बद्रीविशाल , विजय, महेन्द्र, अजीत और भी कईयों खिलाड़ी हम लोगों के मित्र मण्डली मे बनें तो उनमे से ज्यादातर आज भी संपर्क मे हैं। जो छात्र इन तीनों यानि खेल, एनसीसी और एनएसएस से छूटे उनके लिये शाम बिताने के लिये गेट , महावीरमंदिर और अर्दलीबाजार हुआ करता था। कुछ पढ़ाकू लड़के राजकीय जिला पुस्तकालय मे भी बैठा करते।
       हम हरफनमौला मिजाज के लोग सभी ग्रुपों मे शामिल थे, एनसीसी ,एनएसएस से लेकर खेल के मैदानी दोस्तों तक में। पर आखिर मे हम भी इन तीनों से परे महावीर मंदिर, अर्दलीबाजार पर शाम बिताने वालों मे शामिल हो गये। पर इन दोनों जगहों से भी अलग हमने एक और अन्य जगह तलाशा अपनी अड़ी के लिये वह थी कालेज गेट पर स्व० शरद जायसवाल की ज्ञानप्रसार केन्द्र। तब ज्ञानप्रसार दो दुकानों को मिला कर एक बड़ी दुकान हुआ करती थी उन दोनो दुकानों के जोड़ने वाली गली मे रखे स्टूल से लेकर काउंटर तक हम  ग्रुप मेम्बरान जम जाते और साहित्य से लेकर राजनीति, प्रतियोगिता, खेल, सिनेमा , समाज की बातें होने लगती। जय प्रकाश भाई, समीर कुमार सिंह, प्रेम नारायणPrem Narain Singh, संजय कटिहार, राजीव विश्वास, संतोष सिंह बब्बूSantosh Singh , स्व० संजय श्रीवास्तव, निर्भय सिन्हा गठरी उस बैठकी के नियमित सदस्य थे। प्राय: वहीं अपना क्रिकेट का अभ्यास कर सूर्यभान, संजय पाण्डेय, मनोज और हाकी खेल कर मार्कण्डेय, संजय गुप्ता अखिलेश आ जाते तो हम लोग अर्दली बाजार निकल लेते।
अर्दली बाजार मे जितेन्द्र दीपू, मुशीरMushir Uddin, गप्पूSanjay Kumar Srivastava, चंदूManoj Srivastava, अरविन्दArvindps Srivastava, शफी, राकेश, राजेशRajesh Srivastava, पिंकू, विनय पहले से कुंये के पास जमे रहते वहीं सड़क पर दुनिया जहॉ की बाते कर आठ बजे तक हमारी वापसी होती थी। फिर रात खाना खा कर एक घण्टे दूरदर्शन पर राष्ट्रीय समाचार ओर आधेघण्टे का सीरियल देख सो जाना क्योंकि अब हम लोगों ने अपने को सेक्शन ए मे बदलवा दिया था तो हमारी कक्षाएँ सुबह सात से शुरू हो ११.३० तक खतम हो जाती थी। सुबह उठना पड़ता था तो हम जल्दी सो जाते थे। पढ़ाई का काम कालेज से आने के बाद दोपहर मे होता था। हमारी पढ़ाई और पढ़ाई के तौर तरीके से कभी घर वालों को ऐतराज नहीं था तो वे लोग हस्तक्षेप भी नही करते थे।
          दिवाली की छुट्टी से वापस आते ही १० नवंबर सोमवार से कक्षायें पूरे रौ मे गंभीरतापूर्वक चलने लगी उसी दिन यह सूचना लगाई गई कि कालेज का संस्थापन वार्षिक समारोह २३,२४और २५ नवंबर को है। इसमे जो छात्र सहभागिता करने को इच्छुक हों वे संबधित शिक्षकों को अपना नाम नोट करवा दें। हम नें भी कला संकाय डेलीगेसी इंचार्ज डॉ० राम सुधार सिंह सर Ram Sudhar Singhके पास जा कर वाद विवाद प्रतियोगिता के लिये अपना नाम लिखवा दिया। वाद विवाद का विषय था "औद्योगीकरण पर्यावरण के मूल्य पर नही किया जा सकता।" मैने अपना नाम विषय के विपक्ष मे लिखवाया था और विपक्ष मे बोलने वाला मै एकमात्र प्रस्तावित सहभागी था। जहॉ अन्य छात्र इसके लिये जबर्दस्त तैयारी कर रहे थे वहीं मै बिना कुछ किये लगभग निश्चिंत था। मेरी निश्चिंतता रामसुधार सर के लिये चिंता का सबब बनती जा रही थी। उन्होने कई बार मुझसे कहा कि "तुम अपना भाषण लिख कर मुझे दे दो", पर मेरी समस्या यह थी कि मैने तब तक कुछ लिखा ही नही था तो रोज टालमटोल करता जा रहा था। बात जब डीन और हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ० विश्वनाथ सर के पास पहुंची तो मेरे लचर रवैये को देख  उन्होने भी मेरे ऊपर भरोसा न करने और मुझे हटा कर मेरे बदले किसी और छात्र को मौका देने का सलाह दिया। बहरहाल मुझे हटा  कर किसी अन्य को यह मौका दे दिया गया। संयोगवश उसी वर्ष पं० नारायण गुरू पंचगंगा घाट पर देव दीपावली मनाने की तैयारी कर रहे थे। कुछ संपर्कों द्वारा मेरा जुड़ाव उनसे हुआ तो हम कुल १७ लोग पूरे मनोयोग से उस अनूठे कार्यक्रम की तैयारी मे प्राणपण से जुट गये। चार दिन बाद कार्तिक पूर्णिमॉ,१६ नवंबर रविवार को देवदीपावली कार्यक्रम होना था। हम लोगों ने सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान महाराज बनारस डॉ० विभूति नारायण सिंह को उस कार्यक्रम मे आमंत्रित किया था। तब दीये से लेकर तेल बाती, घाट माला फूल , स्वागत सारी व्यवस्थायें हमी लोगो को करना था। भैरोनाथ से दीये खरीदकर १०१ दीपों को प्रज्वलित कर हम लोगों ने कार्यक्रम का सफल शुभारंभ किया। देवदीपावली #devdeepavali के आयोजन की व्यस्तता मे मै कालेज के कार्यक्रम को लगभग भूल ही चला था। पिछले चार दिनों से कालेज मे पढ़ने के बाद भाग कर  पंचगंगा घाट जाना और कम से कम पॉच से छ: बार घाट की खड़ी सीढ़ीयों पर ऊपर नीचे की कवायद ने ईधर से मुंह मोड़ रखा था। रामसुधार सर को अपना वक्तव्य लिख कर न देने के पीछे यह भी कारण था। वहॉ से  फुरसत पाते ही हम  अपने नियमित दिनचर्या पर आ गये थे। वार्षिक संस्थापन कार्यक्रमो की शुरूआत २० नवंबर से होना था और उसी क्रम मे २१ की शाम को डिग्री कालेज वाद विवाद प्रतियोगिता इण्टर कालेज के हाल मे आयोजित थी। तब आज वाला मल्टीपर्पज आडोटोरियम हाल नही बना था। इण्टर कालेज के पुराने भवन वाला सेण्ट्रल हाल ही साल भर बैडमिंटन कोर्ट और वार्षिक आयोजनों मे इनडोर कंपटीशन के लिये काम मे आता था। जब २१ नवंबर की शाम हम कार्यक्रम देखने पहुंचे तो इण्टर कालेज की वाद विवाद प्रतियोगिता चल रही थी एवं डिग्री कालेज के लिये सहभागियों के नाम पंजीकृत कराने की घोषणा हो चुकी थी। तभी हाल मे मुझे देखते ही राम सुधार सर ने बुलवाया और पूछा कि "तुम्हारा विपक्ष मे बोलने वाला भाषण तैयार है न? " मेरे लिये ये आश्चर्यजनक था क्योंकि मेरी जानकारी मे मेरा नाम  सहभागी सूची से हटा दिया गया था। फिर भी मेरे लिये यह खुद को कालेज पटल पर साबित करने का पहला मौका था तो चुनैतियों से जूझने का आदी मैने तत्काल सहमति दे दी। बस मेरा नाम कला संकाय द्वारा विषय के विपक्ष मे बोले जाने वाले सहभागी रूप मे शामिल हो गया। कला संकाय का क्रम सबसे बाद मे पड़ा था। हमसे पहले न्यू हास्टल के चारों ब्लाक सहित शेष दोनो डिग्री कालेज के छात्रावास, विज्ञान और कृषि संकाय वाले बोल चुके थे। अपनी बारी आने पर मैने अपने सभी विपक्षी खेमे वाले वक्ताओं का जीस्ट लेकर निर्धारित समय मे बोलना शुरू किया। लगभग आधे वक्तव्य सामाप्ति पर छात्रावास वालों को मेरे मे कुछ संभावना दिखी तो उन्होने शोर शराबा मचाते हुये हूट करना शुरू कर दिया। पर मै बिना घबराये अपनी बात पूरी की। मै पहला सहभागी था जो निर्धारित समय मे अपनी पूरी बात रख पाया था क्योंकि इसके पूर्व के सभी प्रतिभागी समय बीतने के बाद भी बोलते रहे थे और अपनी समय सीमा पार कर चुके थे। मुझे कालेज के प्रतियोगिता मे पहली बार द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ ।बाद मे यह जानकारी मिली की बीए द्वितीय वर्ष वाले सज्जन जिन्हे कला संकाय के तरफ से बोलना था वे एक सप्ताह से अपना भाषण रटने के बावजूद मौके पर गायब हो गये। इस प्रतियोगिता ने मुझे मेरे विषय से हट कर हिन्दी वाले अध्यापकों विशेषकर रामसुधार सर का प्रिय बना दिया।
http://chitravansh.blogspot.com
क्रमश:........
अगले अंक मे संस्थापन समारोह का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन......

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