बनारस, काशी, वाराणसी सब एक ही हैं, लेकिन जब बात इस शहर की हो, तो मानो सबकुछ बहुत पीछे छूट जाता है। हम खुद को इतने बौने और अज्ञानी नजर आते हैं, जैसे आकाशगंगा में चींटी या उससे भी छोटे। खैर, विषयांतर होने से पहले लौटते हैं काशी पर, जिसके रक्षण की जिम्मेदारी युग-युगांतर से यहां के कोतवाल “काल भैरव” पर है। जी हां, समूचे जगत को धर्म-अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाली सबसे न्यारी हमारी प्यारी काशी नगरी की आन-बान-शान हैं काल भैरव। तो चलिए, अपने अल्प ज्ञान से काशी के कोतवाल को समझने की कोशिश करते हैं। बहुत पहले हमने बनारस के कोतवाली पुलिस थाने के कोतवाल के बारे मे एक पोस्ट (बनारस, अजब मिजाज का गजब शहर ,बाबा कालभैरो : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 07 अगस्त 2017, सोमवार http://chitravansh.blogspot.com ) लिखा था कि इस थाने मे थाना प्रभारी की कुर्सी पर कोई नही बैठता बल्कि बाबाकालभैरव की फोटो थाना प्रभारी की कुर्सी पर स्थापित रहती है, यहॉ पर कार्यरत थाना प्रभारी बगल की कुर्सी पर बैठ कर अपना कामकाजकानून व्यवस्था आदि देखते है। आज फेसबुक पर प्रियंका राय की एक पोस्ट मिली कि मणिकर्णिका के महाश्मसान मे अखण्ड जल रह चिताओं का संबंध भी बाबा काल भैरव से ही है तो इस जानकारी को साझा करने का मन करने लगा।
शिव की क्रोधाग्नि से उत्पन्न हुए काल भैरव को काशी का ‘कोतवाल’ कहा जाता है। काल भैरव के दर्शन व आराधना के बिना काशी विश्वनाथ की पूजा-अर्चना व काशी-वास पूर्ण सफल नहीँ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार काशी के व्यवस्था संचालन की जिम्मेदारी शिव के गण संभाले हुए हैं। उनके गण भैरव हैं, जिनकी संख्या 64 है एवं इनके मुखिया काल भैरव हैं। शिव के सातवें घेरे में बाबा काल भैरव का स्थान है। इनका वाहन कुत्ता है, इसलिए कहा जाता है, यहां विचरण करने वाले तमाम कुत्ते काशी के पहरेदार हैं।
प्राचीन काल में बाबा काल भैरव का मंदिर कब और किसने बनाया स्पष्ट नहीं होता, पर अकबर के शासन काल में संपूर्ण काशी क्षेत्र में राजा मानसिंह ने सवा लाख देवालयों का या तो निर्माण कराया या नव शृंगार। उसी में इस देवालय की भी गणना की जाती है। वर्तमान मंदिर को साल 1715 में दोबारा बाजीराव पेशवा ने बनवाया था। मंदिर की बनावट तंत्र शैली के आधार पर है और प्रथम दर्शन से ही इसकी प्राचीनता का स्पष्ट अनुभव होता है। यहां गर्भगृह में ऊंचे पाठ पीठ पर कालभैरव की आकर्षक व प्रभावोत्पादक विग्रह देखी जा सकती है, जो चांदी से मढ़ी है और भक्त वात्सल भाव से ओत-प्रोत है। ईशान कोण पर तंत्र साधना करने की महत्वपूर्ण स्थली है।
मार्गशीष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यहां रात में बाबा काल भैरव की सवा लाख बत्ती से महाआरती की जाती है।
बाबा विश्वनाथ के बाद बाबा काल भैरव का सबसे बड़ा स्थान है। इस शहर के राजा हैं और बाबा काल भैरव इस शहर के सेनापति हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाबा भैरव ने जब काल भैरव का रूप धारण किया, तो नेत्रों से क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो रही थी। इस अग्नि से लोगों को बचाने के लिए शिव जी ने काल भैरव से बोला कि अपना मुख महाश्मशान मणिकर्णिका की ओर करिए, तब से लेकर आज तक श्मशान की अग्नि बुझी नहीं है।
(प्रयागराज, 9जून 2019, रविवार])
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अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
रविवार, 9 जून 2019
व्योमवार्ता/ बनारस मे मणिकर्णिका महाशमसान की अखण्ड चिता धूनी और बाबा “काल भैरव” : व्योमेश चित्रवंश की डायरी
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