शनिवार, 15 जून 2019

व्योमवार्ता/गोस्वामी तुलसी दास का अखाड़ा संकट मोचन मंदिर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 15जून 2019

व्योमवार्ता/तुलसी दास का अखाड़ा संकटमोचन मंदिर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 15जून 2019, शनिवार
                बनारस का संकट मोचन मंदिर अपने श्रद्धालुओं के लिये एक आस्था व विश्वास का जीवन्त केन्द्र है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि किसी भी प्रकार का संकट  हो महाबली हनुमानजी उसको दूर कर देते है। मन मे  बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो की गुहारी लगाते भक्तजन संकटमोचन बाबा को एक भगवान के रूप मे कम अपना संरक्षक अपने बल के रूप मे ज्यादा मानते हैं। मान्यता है कि गोस्वामी तुलसी दास ने संकट मोचन मंदिर को अॉखाड़े के रूप मे स्थापित किया था और अखाड़े के महन्त की यह परंपरा लगातार चलती ई रही है। यहॉ के अखाड़े के पीठ प्रमुख अर्थात महन्त अपने जीवन निर्वाह के लिये मंदिर पर निर्भर नही रहते बल्कि वे अपने गुण, विद्वता व कौशल से अपना व अपने परिवार का खर्च चलाते है। इसी कारण यहॉ के महन्त संगीत, विज्ञान, तकनीकी जैसे विषयों से जुड़े रहे हैं। वर्तमान महन्त प्रो० विश्वम्भर नाथ मिश्र भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर है।
                संकटमोचन मंदिर का इतिहास विलक्षण घटनाओं से भरा पड़ा है उन्ही मे एक घटना यहॉ के महंत स्वामीनाथ द्वारा विश्व प्रशिद्ध पहलवान राममूर्ति को कुश्ती मे पटकनी देने से है जो गोस्वामी तुलसी दास के अखाड़े संकटमोचन मंदिर की महत्ता बताती है। घटना का जिक्र आप बनारसी हैं सोशल मीडिया मंच से लिया गया है।
                           90 वर्षीय शिव पहलवान बताते हैं “भइया दस जिला में महन्त स्वामीनाथ जइसन लड़वैया कोई नाहीं रहल।का जाँघ रहल, सीना और बाँह को कटाव…….ओह! पूछ मत………….”। तब बनारस में एक बहुत जबर्दस्त दंगल हुआ था। महन्त स्वामीनाथ बनाम राममृर्ति पहलवान का। राममूर्ति पहलवान तब देश के प्रमुख पहलवान थे। उनके लड़ने की हिम्मत जुटाना बहुत कठिन था।
              राममूर्ति बनारस में आये और उन्होंने चुनौती दी। सारे बनारसी पहलवानों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी थी। लेकिन बनारस की आन-बान-शान की खातिर महन्त स्वामीनाथ जी ने चुनौती को स्वीकारा। पूरे बनारस में तहलका मच गया। स्वामीनाथ जी के पिता तुलसीराम जी ने पुत्र की नादानी पर सिर पकड़ लिया। कुश्ती के चौबीस घंटे पूर्व वे संकट मोचन जी में हनुमान जी के सामने फाँसी का फन्दा गले में डालकर खड़े हो गये और हनुमान जी से बोले- “अगर हार भइल तो फाँसी लगालेब। तुलसी दास जी के अखाड़े के अपने जीअत न हारे देब”।
              स्वामीनाथ जी ने बड़ी जीवंतता से रिआज किया। तुलसी मन्दिर स्थित ‘गुफा के हनुमान जी’ की एक पैर पर खड़े होकर 48 घंटे आराधना की। मुकाबले के दिन पूरा बनारस उमड़ पड़ा था। प्रश्न यह था कि “बनारस को इज्ज्त बची की नाहीं।” राममूर्ति पहलवान शेर की तरह अखाड़े में घूम रहे थे। महन्त स्वामीनाथ जी जैसे ही अखाड़े में उतरे दर्शकों की साँसे टंग गईं। उस्ताद ने मुकाबला शुरू होने की आज्ञा दी एक सेकेण्ड के लिए दोनों ने ताकत आजमाइश की। अभी राममूर्ति अपने को स्थापित करते कि महन्त जी ने ‘धोबिया पाट’ मारा और देश का सिरमौर चारो खाने चित्त हो गया। काशी के लोगों ने महन्त जी को फूलों से लाद दिया। राममूर्ति दुबारा लड़ने की मिन्नत करते रहे, लेकिन जुलूस बनारस की सड़कों पर घूम रहा था। तुलसीराम जी फाँसी का फन्दा हटाकर हनुमान जी के चरणों में गिर पड़े, खुशी से घंटो रोते रहे। आखिर रोते क्यों न! हनुमान जी ने पूरे बनारस की लाज रख ली थी। कहते हैं कि वह कुश्ती स्वामीनाथ जी ने नहीं, हनुमान जी ने स्वयं लड़ी थी। 95 वर्षीय छोटी गैबी के मल्लू गुरू बताते हैं कि “वइसन दंगल बनारस में कब्बौ नाहीं भइल”। स्वामीनाथ जी ने बनारस की नाम रख ली थी। शिव पहलवान बताते हैं कि तब स्वामीनाथ जी की कुश्ती में तूती बोलती थी। उन्होंने भीमभवानी को भी पटका था, जो राममूर्ति का प्रधान शिष्य था। तभी से अखाड़ा स्वामीनाथ बड़ा सिद्ध अखाड़ों में गिना जाता है।
(बनारस, 15 जून 2019, शनिवार)
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