आज वर्ष 2017 का पूर्वार्द्ध समाप्त हो रहा है, दिन कितनी जल्दी जल्दी बीतते हैं, हमें लगता है कि आज के युग मे वक्त की रफ्तार मन की गति से भी तेज है, वक्त के साथ बढ़ती हमारी लिप्सा और तृष्णा ने हमे एक जीती जागती मसीन बना दिया है, आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा , एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़और बेहद भौतिकवादी जीवनदृष्टि के चलते हम सुख सुविधाभोगी जीवित मसीन तो बन रहे है पर हमारी मानवीय संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है. पूज़्य दलाई लामा की एक कविता याद आ रही है
In our times,
Height of skyscrapers increased, but did that of humanity decreased?
Rodes widened, but did the viewpoints narrowed?
Expenses increased, but did the savings dwindled?
In our times,
Height of skyscrapers increased, but did that of humanity decreased?
Rodes widened, but did the viewpoints narrowed?
Expenses increased, but did the savings dwindled?
Expanded homes, but small families.
Pleasures increased, but the fun reduced.
Free time increased, but the fun reduced.
Degrees and diplomas increased, but wisdom went down.
Mountains of information, but noone to point the correctness.
Lot of medicines, but less health.
Ownership increased, values went down?
We talk a lot, love less and hate easily
Standard of life increased, but life became poorer.
We added years in life, but not life to those years.
We visited the moon, but we are not visiting the neighbor.
we are winning outside, but losing within.
We are trying to purify air, but our soul suffocates.
Income increased, but honesty decreased.
This is time of more tall people, but less towering characters.
Tons of profits, but less of relations.
Talks about world peace, but fights in home.
Pleasures increased, but the fun reduced.
Free time increased, but the fun reduced.
Degrees and diplomas increased, but wisdom went down.
Mountains of information, but noone to point the correctness.
Lot of medicines, but less health.
Ownership increased, values went down?
We talk a lot, love less and hate easily
Standard of life increased, but life became poorer.
We added years in life, but not life to those years.
We visited the moon, but we are not visiting the neighbor.
we are winning outside, but losing within.
We are trying to purify air, but our soul suffocates.
Income increased, but honesty decreased.
This is time of more tall people, but less towering characters.
Tons of profits, but less of relations.
Talks about world peace, but fights in home.
Time at hand, but fun already lost.
Lots of foods, but no taste.
More people earning, but divorces increased.
Houses decorated, but homes devastated.
Lots of showpieces in windows, but rooms empty.
There is technology today,
to make this letter reach to you.
And you still have freedom,
To take a serious look,
If you want to change something, change,
Or just forget it and hit delete.
लेकिन पड़ोसी की साड़ी मेरे साड़ी से सफेद कैसे, या बगल वाले शुक्ला बाबू की हर साल बदलती कार के प्रति हमारी ईर्ष्या हमे कहॉ ले जायेगी हम खुद नही जानते, आज न्यायालय मे मे अरबों रूपये के घोटालेबाज आरोपी आर एस उर्फ राधेश्याम यादव दिखे, आगे पीछे वकील साहबान की फौज, वहीं दूसरी तरफ कल्पना मिश्रा लूट व हत्याकांड के आरोपी वारिस की गरीब मॉ, जो एक नकल के लिये भटक रही थी. आर एस हो चाहे राधे श्याम दोनो की लालच व भौतिक सुविधाओं की भूख ने आज उन्हे जीवन के इस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जहॉ भीड़ मे रह कर भी वे तनहा हो कर रह गये है.
बीते छ: माह का अवलोकन करता हूँ कि वर्षारंभ मे हमने अपनी आवश्यकता न्यूनतम करने का संकल्प लिया था, भौतिकवादी सोच ये परे जा कर अपने अंतर को देखने का प्रयास करने का संकल्प, प्रयास गतिशील है, टीवी, कम्प्यूटर, फिल्मो से दूर रहने का प्रयास, व्यक्तिगत उपयोग के अतिरिक्त वस्तुयें न खरीदने का प्रयास, पर्यावरण के लिये स्वयं के स्तर से प्लास्टिक रीफिल वाली कलमो के बजाय फॉउटनपेन से लिखने का प्रयास, पानी व्यर्थ व अधिक न उपयोग करने का प्रयास, छोटे बड़े कम से कम 50 छोटे बड़े पौधे लगाने का प्रयास, कम बोलने का प्रयास इन सबसे ऊपर पूरे वर्ष दवाओं से दूर रह स्वस्थ बने रहने का प्रयास.
वर्ष पूर्वार्द्ध मे किये गये अपने प्रयासों मे सफल तो नही पर संतुष्ट हूँ, आशा है कि आने वाले उतरार्द्ध मे सफल भी हो जाऊगॉ. सोशल मीडिया पर बीतने वाले समय को थोड़ा कम करना है,साथ ही खेल व योग के साथ मानसिक स्थिरता के लिये प्राणायाम को अपने दैनिक जीवन मे समाहित करना है. व्यक्तिगत आवश्यकता को और कम करते हुये आध्यात्मिक चेतना की ओर बढ़ना है,
तभी संभवत: स्वयं से स्व की भेंट हो सकेगी.
ईश्वर साथ दें सक्षम बनायेे ,अपनो का साथ रहे, शुभकामनायें बनी रहे,
(बनारस, 30 जून 2017, शुक्रवार)
http://chitravansh.blogspot.in
Lots of foods, but no taste.
More people earning, but divorces increased.
Houses decorated, but homes devastated.
Lots of showpieces in windows, but rooms empty.
There is technology today,
to make this letter reach to you.
And you still have freedom,
To take a serious look,
If you want to change something, change,
Or just forget it and hit delete.
लेकिन पड़ोसी की साड़ी मेरे साड़ी से सफेद कैसे, या बगल वाले शुक्ला बाबू की हर साल बदलती कार के प्रति हमारी ईर्ष्या हमे कहॉ ले जायेगी हम खुद नही जानते, आज न्यायालय मे मे अरबों रूपये के घोटालेबाज आरोपी आर एस उर्फ राधेश्याम यादव दिखे, आगे पीछे वकील साहबान की फौज, वहीं दूसरी तरफ कल्पना मिश्रा लूट व हत्याकांड के आरोपी वारिस की गरीब मॉ, जो एक नकल के लिये भटक रही थी. आर एस हो चाहे राधे श्याम दोनो की लालच व भौतिक सुविधाओं की भूख ने आज उन्हे जीवन के इस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जहॉ भीड़ मे रह कर भी वे तनहा हो कर रह गये है.
बीते छ: माह का अवलोकन करता हूँ कि वर्षारंभ मे हमने अपनी आवश्यकता न्यूनतम करने का संकल्प लिया था, भौतिकवादी सोच ये परे जा कर अपने अंतर को देखने का प्रयास करने का संकल्प, प्रयास गतिशील है, टीवी, कम्प्यूटर, फिल्मो से दूर रहने का प्रयास, व्यक्तिगत उपयोग के अतिरिक्त वस्तुयें न खरीदने का प्रयास, पर्यावरण के लिये स्वयं के स्तर से प्लास्टिक रीफिल वाली कलमो के बजाय फॉउटनपेन से लिखने का प्रयास, पानी व्यर्थ व अधिक न उपयोग करने का प्रयास, छोटे बड़े कम से कम 50 छोटे बड़े पौधे लगाने का प्रयास, कम बोलने का प्रयास इन सबसे ऊपर पूरे वर्ष दवाओं से दूर रह स्वस्थ बने रहने का प्रयास.
वर्ष पूर्वार्द्ध मे किये गये अपने प्रयासों मे सफल तो नही पर संतुष्ट हूँ, आशा है कि आने वाले उतरार्द्ध मे सफल भी हो जाऊगॉ. सोशल मीडिया पर बीतने वाले समय को थोड़ा कम करना है,साथ ही खेल व योग के साथ मानसिक स्थिरता के लिये प्राणायाम को अपने दैनिक जीवन मे समाहित करना है. व्यक्तिगत आवश्यकता को और कम करते हुये आध्यात्मिक चेतना की ओर बढ़ना है,
तभी संभवत: स्वयं से स्व की भेंट हो सकेगी.
ईश्वर साथ दें सक्षम बनायेे ,अपनो का साथ रहे, शुभकामनायें बनी रहे,
(बनारस, 30 जून 2017, शुक्रवार)
http://chitravansh.blogspot.in
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