स्कूलों में लूट ..........
आज बैठे बैठे स्कूलों के शुल्क संरचना के विषय मे सोच रहा था। समाज मे शिक्षा के प्रसार व दान के नाम पर चलने वाला यह व्यापार किस तरह काम करता है इसका आकलन करते हुये यह महसूस किया कि यदि इस व्यापार पर जल्दी ही कोई नियंत्रणातम्क व्यवस्था नही लागू की गयी तो वह दिन दूर नही जब शिक्षा के नाम पर चलने वाले यह संगठन आर्थिक भ्रष्टाचार के सबसे बड़े तंत्र बन जायेगें।
एक उदाहरण के लिये हमने सी क्लास के एक शहर के मध्यम वर्गीय विद्यालय को लिया। मान लें कि अगर स्कूल में 7000 बच्चे हैं Annual fee building fund ke sath 5000/- rs hai ,
7000*5000=35000000 , यानी कि तीन करोड़ पचास लाख रुपये यह रकम आप से बिना वजह लेते है बिलिंडग और ऐनुयल फडं के रूप मे , यह फडं स्कूल लगाता कहा है ?? कही नही...............
अब टयुश्न फीस 1400/- महीना यानी 7000 बच्चे , 7000*1400 =9800000 रुपये प्रति महीना और स्कूल का खर्च 160 मैडम कर्मचारी लगभग 160*20000=3200 000 बत्तीस लाख साथ में मैनटेंनस 1800000 अठारह लाख रुपये यह भी मैंने ज्यादा गिन दिए टोटल हुए 50000000 पचास लाख रुपये ................
आया प्रति महीना 98000000 और खर्च हुआ 50000000 बाकी बचे 48000000 अरतालिस लाख रुपये महीना ,अब कम्प्यूटर के लिए 100 रुपये प्रति महीना 5000*100=500000 पांच लाख रुपये प्रति महीना लगता लगभग लाख रुपये महीना बाकी बचे 400000 रुपये टोटल हुए बावन लाख रुपये महीना ,फिर यह ऐनुयल फीस और बिलिंडग फंड क्यो ??
यहां ना तो सरकार देखती है ना ही कोई विभाग .....................
टैक्स के लिए सभी लोगों को ऊपर गिद्ध दृष्टि लगा कर मडंराते रहने वाले आयकर विभाग की भी स्कूलों पर निगाह नहीं है ।
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