मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

व्योमेश चित्रवंश की कवितायें: मॉ, (03अक्टूबर1999)

                         मॉ,

ओ मेरी जन्मदात्री, मेरी अनकही मॉ
तूने ये क्यों नही सोचा
कि तू भी तो एक लड़की थी
बिलकुल मेरी तरह
आज से बीस पचीस बरस पहले
क्यों भूल गयी तू कि मॉ होना ही
स्त्री के लिये सबसे अनमोल तोहफा है
पर नही, तू तो निर्दय थी।
ओ मेरी जन्मदात्री, मेरी निष्ठुर मॉ
तूने ये भी नही सोचा
कि कूड़े की ढेर पर फिंके मेरे नन्हे से तन को
खा जायेगे कुत्ते स्वाद ले ले कर
सच बता?
क्या तूझे बिलकुल दया नही आयी थी
अपने ही शरीर के अंश रहे
मेरे रक्त मज्जा से लिपटे कोमल तन पर,
क्या तू बिलकुल ही हृदयहीना थी,
ओ मेरी जन्मदात्री मेरी अनकही मॉ
तूने क्या ये भी नही सोचा कि मै भी
इंदिरा, ऊषा या टेरेसा या क्यूरी बन सकती हूँ
पर तूने तो मुझे मार डाला था मुझे फेंक कर
उस कूड़े की ढेर पर
क्या तूझे बिलकुल भी दया नही आयी थी
मेरी टुकुर टुकुर करती टिमटिम ऑखो पर,
हॉथ की मुट्ठियों मे बंधे
मेरे भविष्य के पन्नो पर
अंगूठे को चूसती अपनी मॉ को खोजती
उस दूधमुँही बच्ची पर
जो बिलकुल नयी थी
तुम्हारे इस क्रूर दुनिया मे,
ओ मेरी जन्मदात्री मेरी पाषाणहृदया मॉ
क्या कहूँ तुझे, तुम खुद ही बतलाओ
मेरी जन्मदात्री या मेरी हत्यारिन?
क्या तूझे आज भी अपराधबोध नही ग्रसता
मेरी हत्या के प्रयासो पर?
क्या लज्जित नही हुई थी तू
मुझ अबोली को फेकते हुये
कूड़े के ढेर पर?
मै जानती हूँ तुम्हारे पास कोई उत्तर नही है
मेरे सवालो का,
क्योकि हर बार खुद से भी यही पूछ कर
रह गयी हो तुम उत्तरहीन।
है ना मेरी जन्मदात्री मेरी अनकही मॉ ।

(अक्टूबर १९९९ मे कूड़े पर मिली एक नवजात बच्ची की खबर से प्रेरित लिखी भावनायें)

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