धरती के भगवान? (भाग-2)
एक मित्र ने #बीएचयू के #मेडिसिन विभाग के एक पूर्व प्रोफेसर साहब के यहां का अनुभव साझा किया। #बनारस के #सुसुवाहीं मे क्लिनिक वाले प्रोफेसर साहब के यहां अलसुबह से मरीजों के नंबर लगने लगते हैं। नंबर लगने के साथ ही #परामर्श शुल्क जमा हो जाता है। यदि आप परामर्श शुल्क के साथ ही उतनी राशि की सुविधा शुल्क काउंटर पर पकड़ा दें तो आप का नंबर 1से 10, 15 के बीच आ जायेगा। मित्र डाक्टर साहब से पूर्व परिचित रहे हैं लिहाजा उन्होने इस बात को #डाक्टर साहेब से कहा तो उन्होने हंसते हुये कहा कि "अरे सब लड़के है इसी तरह दो चार रूपये एक्स्ट्रा पा जाते है।" अगली बार काउंटर वाले लड़के से मित्र ने यह बात पूछा तो उसने बताया कि "कुल पैसवा हमी थोड़े रख लेते हैं उसका भी तो सर को हिसाब देना पड़ जाता है। देखिये यह सीसी कैमरा वगैरह इसी लिये तो लगा है।"
यह भी डाक्टरी का एक #नया_चलन है। परामर्श का अलग और नंबर लगाने का अलग ।
मरीज की तो अपनी मजबूरी है उसे दिखाना ही है। नही तो उस दिन का पूरा समय गाड़ी घोड़ा का खर्चा नुकसान जायेगा इससे अच्छा है यहीं पैसा दे कर खाली हो जाओ।
मरीज की परेशानी का रास्ता तो तलाश रखा है इन मानवगिद्धों ने।
चलती दुकान का नाम है हूजूर।
#धरती_के_भगवान?
#मानवगिद्ध
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