रविवार, 19 जुलाई 2020

व्योमवार्ता / यादें यू पी कालेज की (६) :जब बिना कुछ किये एक साल पीछे हो गये हम सब

व्योमवार्ता/ यादें यू पी कालेज की ..(६): व्योमेश चित्रवंश की डायरी, १९ जुलाई २०२०

जब बिना कुछ किये एक साल पीछे हो गये हम सब

       वार्षिक समारोह बीतने के बाद पूरे कालेज मे पढ़ाई की गंभीरता छा गई। हम नवप्रवेशी छात्रों मे तो पहली बार कालेज मे परीक्षा देने का एक खौफ भी था। अभी तक शिक्षकों के दिये हुये नोट्स और टीपों पर पढ़ते आ रहे हम लोगों को अधिकांश विषयों मे अपने से नोट्स बना कर पढ़ना था। विश्वविद्यालय की परीक्षाएँ अप्रैल के दूसरे सप्ताह से प्रस्तावित थी। खेलवार , शौकवार, विषयवार दोस्तों की कटेगरी अलग अलग बन चुकी थी। इस बीच कालेज सेण्ट्ल लाईब्रेरी मे विषय से परे आचार्य रजनीश की एक पुस्तक 'सपना यह संसार' निर्गत कराने के लिये मेरी लाईब्रेरी काउण्टर पर शुरू हुई झिकझिक इतनी बढ़ी कि बात वहॉ से चल कर कला संकायाध्यक्ष डॉ० विश्वनाथ प्रसाद जी तक पहुंच गई, तब तक वे मुझे अच्छे से पहचानने लगे थे। उन्होने मुझे  पुस्तकालय से छात्रों के लिये पाठ्य संबंधी पुस्तक निर्गत किये जाने के  नियम को समझाने का प्रयास किया पर मै अपने जिद पर अड़ा था कि अगर वे पुस्तकें विशेष हैं तो वे विशेष श्रेणी मे रखते हुये कारण सहित नाट फार स्टूडेंट्स के निर्देश सहित रखी जायें। मेरे न मानने पर उन्होने नियमों का हवाला देते हुये स्पष्टत: मना कर दिया और दबे शब्दों मे धमकी भी दी कि पढ़ने आये हो नेतागिरी मत करो। पर मै इस शिकायत को लेकर प्राचार्य डॉ०ओम प्रताप सिंह सेंगर के पास चला गया। सेंगर साहब कृषि वैज्ञानिक थे वे अपने विषय में प्रखर होने के साथ बेहद सुलझे, नियम कानून के सख्त पाबंद व्यक्ति थे। पहनावे मे बेहद साधारण स्लेटी हाफ शर्ट, डार्क ब्लू पैंट और पैरों मे सैण्डिल पहने , हाथ मे एक बड़ी डायरी लिये आकर्षक  प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी ऋषितुल्य सेंगर साहब प्राचार्य आवास से कालेज तक सदैव पैदल ही चल कर आते थे। कालेज परिसर के अंदर वे या तो पैदल चलते या साइकिल से , पर उनके गरिमामयी व्यक्तित्व के समक्ष देखने वालों का सिर श्रद्धा से झुक जाता था। सेंगर साहब ने मेरी पूरी बात सुनी और मेरे दिये गये प्रार्थनापत्र पर स्पष्ट शब्दों मे स्वयं लिखा "Library is the centre of knowledge for any Institution and Books for All is the basic principle of Library Science. Issue the Books to students as per rules. Only rares and restricted books shall not be issued. "  मै वह आदेश लेकर अपने विजयपत्र के रूप मे ले जा कर जानबूझकर डॉ० विश्वनाथ प्रसाद जी को दिखाया। पर उन्होने बिना कोई  प्रतिक्रिया व्यक्त किये मुस्कराते हुये मेरे बारे मे ,पढ़ाई , शौक , भविष्य की योजना के बारे मे पूछते हुये कालेज के बाद दो बजे अपने ढिठोरी महाल स्थित घर आने को कहा। अपने घर कैलाश के भौगोलिक स्थिति को बताते हुये जब उन्हे पता चला कि उनके पड़ोसी और आदरणीय शोभनाथ लाल जी मेरे नाना है तो वे बहुत खुश हुये । जब दोपहर दो बजे मै उनके घर गया तो चाय पानी कराने के पश्चात वे मुझे ले कर एलटी कालेज अर्दलीबाजार स्थित राजकीय जिला पुस्तकालय गये और वहॉ मेरा परिचय तत्कालीन पुस्तकालयाध्यक्ष प्रद्युम्न कुमार गौड़ से करवा कर स्वयं मेरा सदस्यता आवेदनपत्र भर सदस्यता शुल्क रू० ६०/- अपने पास से जमा किया और कहा कि अब तुम्हे जितनी किताबे कोर्स से ईतर पढ़नी हो यहॉ से पढ़ो पर उससे तुम्हारे पढ़ाई पर असर नही आना चाहिये। आज भी विश्वनाथ सर द्वारा  बनवायी गई राजकीय जिला पुस्तकालय की सदस्यता मेरे पास बरकरार है और राजकीय जिला पुस्तकालय का मेरे जीवन निर्माण मे बहुत बड़ा योगदान है। उसी लाईब्रेरी मे मेरा परिचय कालेज के मित्रों पवन और समीर श्रीवास्तव से हुआ।
दिसंबर मे जाड़ा पड़ना शुरू हो गया था। सुबह सुबह अपने हाथों को रगड़ते हुये हम लोग संकठा सर के ७ बजे वाली क्लास के लिये पहुंच जाते।  मफलर और टोपी लगाने का फैशन नही था। तब  विंडचीटर, लेदर और थर्मोवुल वाले जैकेट का चलन नही हुआ था। स्वेटर कोट मे ठण्ड से लाल और गीली हो रही नाक को पोछते, गरमाते जब तक हम लोग पहुंचते तब तक बारह किमी दूर से अपनी लाल जावा से संकठा सर उपस्थित रहते। याद नही कि वे कभी जाड़ा गर्मी बरसात मे भी ७ बजे वाली क्लास मे पॉच मिनट लेट हुये हो। छात्रसंघ के चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। तब छात्रसंघ चुनाव मे अध्यक्ष, प्रधानमंत्री और कक्षा प्रतिनिधियों के लिये बैलट पेपर आधारित चुनाव होते थे। चुनाव से पूर्व प्रत्याशियों का परिचय समारोह कला संकाय के ऊपर वाले बालकनी मे आयोजित हुआ। हम छात्र मतदातागण विज्ञान भवन की छत से लेकर नीचे मैदान तक खड़े बैठे प्रत्याशियों का परिचय भाषण सुनते थे। प्रथम वर्ष के छात्र अध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री पद के लिये चुनाव नही लड़ सकते थे।अपने अपने पद हेतु प्रत्याशीगण  जोर आजमाईश कर रहे थे पर कालेज का अनुशासन न परंपरा सर्वोपरि थी। कोई शोर गुल नारेबाजी नही। किसी भी दीवार पर प्रचार नही। कक्षाओं के दौरान प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ आते और पढ़ाते हुये शिक्षक से अनुमति ले कर अपनी बात रख चुपचाप निकल जाते। तब वर्तमान प्रशासनिक भवन नही हुआ करता था बल्कि उसके स्थान पर बहुत खूबसूरत कई प्रजातियों वाले कई रंग वाले गुलाब के फूलो की बड़ी क्यारी हुआ करती थी।(उसके बारे मे फिर कभी) प्रिंसपल का कमरा विज्ञान भवन के पोर्च के ठीक ऊपर वाला था। और उसके बाहर बॉयी ओर एकाउण्ट सेक्शन और दॉयी ओर प्रशासनिक  खण्ड ।दोनो के बाहर साईड  निकले पतले खुले गलियारे मे एक तरफ पीरियेड वाला घण्टा वाला छोटा सा कमरा इसी तरह  दूसरी ओर छोटा सा कमरा। जिनके ऊपर पानी की टण्किया थी जिनसे ओवर फ्लो होकर हमेशा पानी गिरता रहता था।हम लोग पहले साल के होने के कारण इस चुनाव मे मात्र दर्शक और मतदाता की ही भूमिका मे थे। चुनाव व मतगणना एक ही दिन होजाती थी। मतगणना के दूसरे दिन कालेज मे छुट्टी होती और अगले दिन खुलने पर पूरे कालेज मे जीते हुये प्रत्याशी के तरफ से समोसा लालपेड़ा बँटता था।उस वर्ष के चुनाव मे इंद्र देव शाही अध्यक्ष पद पर विजयी हुये थे। महामंत्री का याद नही।
      चुनाव के बाद  कालेज फिर से पठन पाठन मे गंभीरता से लग गये। एक दिन सुबह कालेज जाने पर पता चला कि हम लोगों का दो साल वाला स्नातक अब तीन साल का हो गया। रातों रात हम लोग पढ़ाई मे बिना किसी गलती के एक साल डिमोट कर दिये गये थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग  के सुझाव पर उत्तर प्रदेश सरकार के  त्रिवर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम को लागू करने के  फैसले को  इसी साल लागू कर दिया था जबकि काशी विद्यापीठ और संस्कृत विश्वविद्यालय मे अभी भी दो वर्षीय पाठ्यक्रम ही चला रहे थे। हम लोग पूरी तरह से उहापोह मे थे , न तो सिलेबस निर्धारित हुआ था न कोई स्पष्ट दिशा निर्देश। अध्यापक स्वयं अनिश्चित थे। ऐसे मे कालेज प्रशासन ने निश्चय किया कि छात्रों मे बिना कोई भय व संशय का मनोभाव पैदा किये पढ़ाये जा रहे कोर्स को जारी रखा जाये।
पर संशय का मनोभाव तो हम सब मे आ चुका था और हम एक ही सुबह में बीए प्रिवियस के बजाय बीए पार्ट-1 के छात्र बन गये थे।😱😱
http://chitravansh.blogspot.com
क्रमश:.......
अगले अंक में : पहले साल की कुछ छूटी छोटी बातें और परीक्षा

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