सोमवार, 24 जुलाई 2017

व्योमवार्ता / सोशल मीडिया पर हिन्दुस्तानियत को बदनाम करने की साजिश : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24 जुलाई 2017,सोमवार

सोशल मीडिया पर हिन्दुस्तानियत को बदनाम करने की साजिश और जीआर वशिष्ठ व मोहम्मद जावेद जैसे पहुऱये : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24 जुलाई 2017,सोमवार

कल फेसबुक  पर मित्र जी आर वशिष्ठ  की कहानी पढ़ कर उन्हे बधाई  देते हुये कहानी को अपनी डायरी  मे शेयर करने के लिये अनुमति  लिया था. दिन भर वो कहानी मन मे घुमड़ती रही, सावन के महीने मे जब बनारस और बाकी तीर्थों मे कॉवर यात्रा चल रही हो, गाहे बगाहे कॉवरियों के उडण्ड होने की खबरें आ रही हों,. वही दूसरी तरफ गोरक्षा  के नाम पर कथित गौभक्त एक ईमानदारी भरे प्रयास  को बदनाम करने के लिये  अपनी मनमानी  कर रहे है, काश्मीर मे पत्थरबाजी की घटनाओं मे स्थानीय जनता की  विशेषकर युवा वर्ग की बढ़ती भागीदारी, सोशल मीडिया पर एक दूसरे के प्रति जहर उगलते पोस्ट समाज के तानेबाने को  बिगाड़ने पर लगे हुये  है. ऐसे मे समाज मे एकदूसरे के प्रति बढ़ रहा अविश्वास  व उससे उभरती बेचैनी निश्चित  ही अच्छे  लक्षण नही है.  ऐसा जानबूझ  कर किया जा रहा है या सोची समझी साजिस के तहत, यह तो जॉच का विषय  है . क्योंकि योशल मीडिया के पोस्टो पर नजर डाले तो भाषाई तमीज व तहजीब तो दूर की बात इस बात की होड़ लगने लगी है कि किस निचले व छिछले स्तर तक जा कर एक दूसरे को हम कोस सकते है, पर हमारे सामने जीआर वशिष्ठ  जैसे उदाहरण  भी है जो कबीर के सामाजिक तानेबाने को शिद्दत  से कायम रखने के लिये मजबूती से खड़े है.
ऐसे मे आज हिन्दुस्तान  अखबार  मे साईबर संसार  स्तंभ मे मोहम्मद  जावेद की असली हिन्दुस्तानियत पोस्ट भी मिली जिसमे उन्होने बुधवार का वाकया बताते हुये कॉवरयात्रियो के विवेक व धार्मिक सद्भावना  की तारीफ करते हुये असली हिन्दुस्तानियत का जिक्र किया है.
हम इस बारे मे बेहद मुतमईन है कि हमारे हिन्दुस्तान  का धार्मिक तानाबाना बेहद मजबूत है जिसे हर भारतीय ने  अपने भावनाओं से सींचा है और हमारी यही भावना हमारी मूल भारतीयता है. बस इस भावना को तुष्टिकरण  की राजनीति  व क्षणिक स्वार्थी  कुत्साओं से दूूर रखने की जरूरत है,  हमे निश्चित  तौरसे सोशल मीडिया  पर वशिष्ठ और मोहम्मद जावेद जैसो ईमानदार  पहरूओं की पोस्ट बढ़ानी चाहिये क्योंकि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है.
जयहिन्द जी आर वशिष्ठ जी और मोहम्मद  जावेद भाई आप के शानदार  पोस्ट के लिये.
#जय_हिन्द

रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था। बाज़ार में रौनक थी। एक सात साल की बच्ची आरती अपने पिता की उंगली पकड़े चल रही थी। अचानक पास ही एक मिठाई की दुकान में गैस सिलेंडर में आग लग गयी और वो फट गया। लोगोँ को लगा कोई बम ब्लास्ट हुआ है। पूरे बाज़ार में भगदड़ मच गयी। आरती के हाथ से पिता की उंगली छूट गयी और कुछ ही पल में वो भीड़ में खो गयी।
शाम होते होते भीड़ कम हुई। पता चला कि दुकान की छत गिर गई लेकिन हादसे में किसी को चोट नही आई।
आरती सड़क के किनारे खड़ी रो रही थी। हिना ने बच्ची को रोते देखा तो समझ गई कि वो किसी के साथ आई होगी और भीड़ में बिछड़ गयी। हिना उसके पास आई और उसे चुप कराने लगी। उससे उसका पता पूछा, उससे जानना चाहा कि वो किसके साथ थी?, लेकिन आरती बस रोते ही जा रही थी। हिना ये सोचकर उसे घर ले चली कि पुलिस को बता देंगे शायद इसके घरवालों ने पुलिस में रिपोर्ट की हो।
घर पहुँचकर हिना ने दरवाज़ा खटखटाया। हिना के पति ज़फर ने दरवाज़ा खोला। हिना ने ज़फर को हादसे और आरती के बारे में बताया।
"कितनी प्यारी बच्ची है ना!" ज़फर ने हिना की तरफ देखते हुए कहा।
"बच्चियाँ प्यारी ही होती है स्वीटहार्ट।" हिना ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम कुछ खाने के लिए बनाओ। बच्ची को भूख लगी होगी।" ज़फर ने हिना से कहा और हिना रसोई में चली गयी।
ज़फर ने अपने बेटे हैदर को आवाज़ लगाई।  हैदर बैठक में आ गया।
"हैदर तुम आरती के साथ खेलो, मैं नमाज़ पढ़के आता हूँ।" ज़फर ने हैदर को आरती के बारे में बताकर कहा और अपने कमरे में चला गया।
आरती अब चुप हो गयी थी और इस परिवार के व्यवहार से उसे अच्छा महसूस भी हो रहा था।
"तुम लोग मुस्लिम हो?" आरती ने उनके नाम और नमाज़ पढ़ने की बात सुनकर हैदर से पूछा।
"हाँ।" हैदर ने कहा।
"नही! तुम लोग मुस्लिम नही हो। तुम तो बहुत अच्छे हो। मेरे पापा कहते हैं कि मुस्लिम लोग बुरे होते हैं। वो आतंकवादी होते हैं।" आरती ने मासूमियत से कहा।
"नही। आतंकवादी लोग मुस्लिम नही होते। वो तो बस आतंकवादी होते हैं। मेरे अब्बू कहते हैं कि जिसके अंदर इंसानियत मर जाए वो मुस्लिम हो ही नही सकता।" हैदर ने शान्ति से जवाब दिया।
हिना और ज़फर को बच्चों की बातें सुनाई दे रही थीं। खाना बन चुका था। हिना ने बच्चों को खाना परोसा और मासूमों की ओर देखकर मुस्कुरा दी। ज़फर भी बैठक में आ गया। उसने आरती से उसके परिवार के बारे में पूछा। आरती ने बताया कि उसके पिता का नाम प्रेम है और वो सरकारी स्कूल में टीचर हैं। आरती ने प्रेम का फोन नम्बर ज़फर को बताया। ज़फर ने प्रेम को फोन करके आरती के बारे में बताया। अपने घर का पता बताकर प्रेम को बुलाया। थोड़ी देर बाद प्रेम ज़फर के घर आ गया। ज़फर ने हिना को प्रेम के लिए चाय बनाने को कहा।
प्रेम ने चाय के लिए मना किया तो ज़फर ने ने कहा "हम मुस्लिम होने से पहले हिन्दुस्तानी भी हैं साहब। चाय तो आपको पीनी ही पड़ेगी।"
इस बार प्रेम मना नही कर पाया।
कुछ देर बातें हुई।
अचानक ज़फर की नज़र हैदर की गुल्लक पर पड़ी। ज़फर ने गुल्लक उठाकर फोड़ दी और सिक्कों को उठाते हुए बोला "इनमें सोने की अशर्फियाँ नही दिख रही!"
प्रेम ने चौंककर पूछा "आपने इसमें सोने की अशर्फियाँ रखी थीं?"
"नही। इसमें तो सिक्के ही डाले गए थे।" ज़फर ने कहा।
"तो फिर सोने की अशर्फियाँ क्यों निकलेंगी?" प्रेम ने कहा।
ये सुनकर ज़फर ने कहना शुरू किया।
"प्रेम जी। ये बच्चे भी गुल्लक की ही तरह होते हैं। इनको जो सिखाया जाएगा वही तो सीखेंगे। हम सिक्के डालेंगे तो अशर्फियाँ क्योँ निकलने लगीं! कोई धर्म बुरा नही होता  लेकिन अगर उस धर्म के नाम पर जब कुछ लोग बुरा करते हैं तो बदनामी पूरे धर्म की ही होती है और फिर उस धर्म के लोगों का कर्तव्य बनता है कि उन बुरे लोगों के खिलाफ कदम उठाएं। हम चाहते हैं कि ज़ुर्म करने वालों को सजा मिले।
आतंकवादियों की बन्दूक से निकली गोली पूछकर नही लगती कि आप हिन्दू हैं या मुस्लिम। हमारा मज़हब और मैं तो कहता हूँ कोई भी मज़हब दूसरों को तकलीफ़ देना नही सिखाता तो फिर बेगुनाहों की हत्या करने वाले लोग किसी धर्म के कैसे हो सकते हैं?
भाई मेरे आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होते हैं। और उनके हमलों में मरने वाला हमेशा हिंदुस्तानी होता है। फिर हम क्यों हिन्दू मुस्लिम के नाम पर सियासत करते फिरे? हम सब हिंदुस्तानी हैं ना।
आप और हम मिलकर कोशिश करेंगे ना।
इन लोगों का सफाया होगा। जल्द ही सब ठीक हो जायेगा भाई।"
प्रेम कुछ कह नही पाया। आरती को साथ लेकर चलने लगा। ज़फर उनको छोड़ने दरवाज़े तक आया। प्रेम जाने लगा तो पीछे से ज़फर ने उन्हें आवाज़ दी। प्रेम ने पीछे मुड़कर देखा।
"आपका नाम बहुत ख़ूबसूरत है भाई 'प्रेम'। और हाँ गुल्लक में अशर्फियाँ डालियेगा।" ज़फर ने मुस्कुराते हुए कहा।
प्रेम मुस्कुरा दिया और चलने लगा तो ज़फर ने फिर से आवाज़ देकर रोका और कहा "हिन्दू बहुत अच्छे होते हैं भाई और मुस्लिम भी बुरे नही होते।"
इस बार प्रेम की मुस्कुराहट पिछली बार से कुछ अधिक थी।
प्रेम आरती को अपने घर ले आया। घर पहुँचकर उसे अफ़सोस हुआ कि उसे ज़फर से अच्छे से बात करनी चाहिए थी, कितने अच्छे लोग हैं वो। लेकिन ज़फर और उसके परिवार से मिलने के बाद प्रेम का मुस्लिमों के प्रति नज़रिया धीरे धीरे बदलने लगा। उसे सच में लगने लगा कि सब लोग एक जैसे नही होते और वो अब बच्चों को सभी धर्मों का आदर करने की बातें सिखाने लगा।
एक दिन प्रेम टीवी देख रहा था कि अचानक उसका रिमोट न्यूज़ चैनल से आगे न बढ़ा। ब्रेकिंग न्यूज़: श्रीनगर में बस पर हमला करने आये तीन आतंकवादी सेना से मुठभेड़ में ढेर। बताया जा रहा है कि बस में  राजस्थान से तीन हिन्दू परिवारों के लोग कश्मीर घूमने आये थे। इस मुठभेड़ में लेफ्टिनेंट मोहम्मद ज़फर शहीद हो गए हैं। नाम सुनने से पहले प्रेम ने टीवी स्क्रीन पर दिखती ज़फर की तस्वीर से उसका चेहरा पहचान लिया था। ज़फर के सीने में तीन गोलियाँ लगी थी।
प्रेम का शरीर जैसे सुन्न हो गया हो। पलकें झपकने के अलावा बदन कोई हरकत नही कर रहा था। आँखों से आँसू बह रहे थे। एक हिंदुस्तानी के शहीद होने का दर्द महसूस हो रहा था। आरती ने पीछे से आकर पापा के कंधे पर हाथ रखा। प्रेम ने ख़ुद को सम्भाला। आरती ज़फर का चेहरा पहचान नही पायी थी।
उसने प्रेम की ओर देखकर कहा, "पापा मुस्लिम अच्छे होते हैं ना?"
"हाँ बेटा। एक सच्चा हिन्दुस्तानी कभी बुरा नही हो सकता।" प्रेम कहते हुए टीवी की तरफ बढ़ा और ज़फर की और देखकर सैल्यूट करते हुए कहा "जय हिन्द, जय हिन्द मेरे भाई।"
"जय हिन्द" पीछे से आरती की मासूम सी आवाज़ आई। प्रेम ने पीछे मुड़कर देखा। आरती अपना हाथ माथे से लगाए सैल्यूट कर रही थी। गुल्लक में सोने की अशर्फियों की खनखनाहट थी।
- जी आर वशिष्ठ
(बनारस, 24 जुलाई 2017, सोमवार)
http://chitravansh.blogspot.in

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