मंगलवार, 1 नवंबर 2016

केवल शपथ लेने से शहर स्मार्ट नही बनेगा : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 01नवंबर 2015 रविवार

केवल शपथ लेने से शहर स्मार्ट नही बनेगा क्योंकि शपथ लेना इस देश मे सबसे आसान है।
   हमारी बात बुरी लग सकती है पर बात वैसे ही है जैसे हम गंगा की सफाई की बात बिसलेरी पी के करते हैं। एसी होटलो व हाल मे बैठ कर स्मार्ट सिटी के प्रारूप को नही समझा जा सकता। हमे बनारस की अतिक्रमण, गंदगी, चरमराती यातायात व्यवस्था और एक दूसरे पर लदे, चीखते चिल्लाते, दोषी बताते परेशीन हाल लोगो की समस्याओं को लेकर व्यापक नजरिये से स्मार्ट बनारस के संभावनाओं को देखना होगा।
     स्मार्ट सिटी बनने पर भोजूबीर, चंदुआ, चेतगंज , विसेसरगंज, दशासमेध, पक्कीबाजार, सरैया की सट्टीयॉ कहॉ जायेगी? ऐसा नही है कि उन्हे पूर्व मे स्थानान्तरित करने के प्रयास नही हुये। हुये पर उनमे ईमानदारी नही थी। लिहाजा सट्टी के जगह अ धिकारी स्थानान्तरित तो हो गये पर सट्टीयॉ ज्यो की त्यों बरकरार है।
     वही हाल अतिक्रमण का हुआ । कुछेक दृढ़ ईच्छा शक्ति वाले आये उनका प्रयास सार्थक भी हुआ पर उनके जाते ही वही ढाक के तीन पात।
          बनारस नगरनिगम से ये सवाल पूछा जाना चाहिये कि पिछले दो सालो मे कितनी बार उनकी हल्लागाड़ी कहॉ कहॉ कब कब चली और कितने अतिक्रमणकारियो के विरूद्ध का्यवाही की गयी?
     हर नये पुलिस कप्तान चार्ज लेते ही घोषणा करते है कि अतिक्रमण पाये जाने पर थानाप्रभारी जिम्मेदार होगें उन्हे पैदल कर के पुलिसलाईन भेज दिया जायेगा। हमे तो याद नही कि पिछले दस सालों मे अतिक्रमण कराने व अतिक्रमण न हटाने के आरोप मे किसी पुलिसवाले को बुला के पूछा भी गया हो।
        एसपी ट्रैफिक साब आज तक परेशान है कि जब परमिट सात हजार आटो की है तो शहर मे बीस हजार आटो कैसे चल रहे हैं। सर जी ये तो आपको शहर के इन्ट्री लाईन पर खड़ा होमगार्ड व उसका चेलवा भी बता देगा। आप ईमानदारी से  पूछ के तो देखिये।
   रोडवेज तो आज तक यह ही नही समझ पाया कि जेएनएनयूआर एम की बसें उसे शहर मे चलानी है कि शहर के बाहर?
       बिजली विभाग के अधिकारी कहते है कि यहॉ हर ट्रॉसफार्मर पर ओवरलोड है क्योकि बिजलीचोरी होती है। अब आपके आला अफसरान चोरी पकड़ने को  छापा नही डालेगें तो साहब हम तो आपके यहॉ आकर ये कहने से रहे कि हूजूर हम बिजलीचोरी करते हैहमे सम्मानित कर दो।
      आजकल बड़े बड़े अखबारों मे विग्यापनो सेजो जगह बच रही है उस पर स्मार्ट सिटी के शपथ कार्यक्रम की खूब चर्चा हो रही है पर इस बात पर कभी चर्चा नही हुई कि
शहर के कितने नर्सिगहोमो के पास पार्किग है? उनका मेडिकल वेस्टेज कहॉ निस्तारित होता है? उनके द्वारा कुछ विशेष पैथालाजी लैबो को ही क्यों तवज्जो दी जाती है? लगभग हर नर्सिग होम मे खुले हुये कितने दवा के दुकानो के पास लाईसेंस है और उन पर कितने फार्मेसिस्ट कब कब बैठते है?
        क्या कभी इस बात पर चर्चा हुई कि शहर मे प्रेस लिखी गाड़ी धारकों मे से कितने के पास प्रेस कार्ड है? प्रेस कार्ड पाने के लिये क्या अर्हता जरूरी है? प्रेस के नाम का दुरूपयोग करने वाले कितने लोगों के विरूद्ध पिछले पॉच सालो मे क्या कार्यवाही की गयी? और उस कार्यवाही मे प्रेस की क्या भूमिका रही?
        क्या कभी इस बात पर चर्चा की गयी कि सुबहसुबह देश व शहर के मिजाज को लेकर उत्सुक शहरी पाठक को अखबारों मे समातारो से ज्यादा विग्यापनो को परोसने के पीछे क्या वजह है? क्या ये आम पाठक के साथ छल नही है?
        क्या कभी इस बात पर चर्चा हुई कि कचहरी मे अधिवक्ताओ के लिये पार्किग बनाये जाने के बावजूद उसे खाली छोड़ कर पूरे कचहरी परिसर व आसपास के जगह को गाड़ियों से जाम क्यो करदिया जाता है और प्रशासन के नाक के नीचेचल रहे अवैध पार्किग चलाने वालो के खिलाफ किसके शह पर कार्यवाही नही की जाती?
        कचहरी पर दाना भूजा पंचर की दुकानो को जमीदोज करने के बाद भी न्यायालय परिसर की जमीन पर बड़ा रेस्टोरेंट आज भी चल रहा है?
     क्या इस बात पर चर्चा नही होनी चाहिये कि यातायात नियमो के उलंघन पर  गाड़ियो के चालान मे अब तक कुल कितने पुलिस लिखी गाड़ियो का, बिना कागज के गाड़ियॉ चला रहे , बिना हेलमेट पहने  व ट्रिपलिंग कर रहे पुलिस वालो का इस शहर मे कितनी बार चालान हुआ?
     क्या इस बात पर चर्चा नही होनी चाहिये कि न्यायालयो के आदेश के बावजूद वाराणसी विकास प्राधिकरण ने शहर के घनी बस्तियों, स्कूलों व अस्पतालो पर से विकरण फैला रहे कुल कितने  मोबाईल कंपनी के टावरों को आज तक हटवाया?
       क्या इस बात पर चर्चा नही होनी चाहिये कि कुण्ड पोखरो मे मुर्तियो को विसर्जित करने के बाद वहॉ मर रही मछलियो को देखने बचाने नगरनिगम व जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी वहॉ जाकर समस्या के समाधान का प्रयास किये?
      गंगा, रेलवे, हवाईजहाज कूड़ा निस्तारण, फोरलेन, सीवर ट्रीटमेण्ट पर बड़ो को ही चर्चा करने दिया जाय तो भी इस शहर की मौलिक समस्यायें है जिन पर चर्चा होना  जरूरी है बिना इन को ध्यान दिये शहर स्मार्ट नही बन सकता।
       इस शहर की जो सबसे बड़ी खासियत है वह हर नयेपन को खुले मन से स्वीकार करने की है। बस जरूरत है ईमानदारी के प्रयास की। हम बनारसियो ने भूरेलाल का भय खाया तो हरदेव सिंह को बाबा कहा। अजय मिश्र को सलाम किया तो प्रॉजल को दिल से सराहा।
हूजूर हम आपके साथ है बस आप ईमानदारी व साहस भरा दो कदम हमारी ओर चल के तो देखें। हम आपके साथ साथ चलेगें और स्मार्ट बनारस बना के दम लेगें।
         जहॉ तक शपथ व चर्चा की बात है वह अखबारों मे ही अच्छी लगती है। असली व ईमानदारी का काम कागजों पर नही जमीन पर होता है।

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