रविवार, 27 मार्च 2016

व्योमेश की कवितायें : मुट्ठी की रेत (२४-१२-२०१२)

आज पॉच दिनो बाद निकला है सूरज
गुनगुनी धूप लेकिन सिहराती हवाओंके साथ
मन को दूर दूर ले जाती है
लान मे खिले गुलाबों और गेदें की क्यारियो के उस पार
जहॉ मन उ़ने को आतुर है ढेर सारी यादों के पीछे
जो सिर्फ गुगुदा जाती है दिल को हौले से
और उन्हे समेटने की कोशिस करता हूँ मै
पर वक्त फिसल जाता है हर बार
मुट्ठी मे बंधे रेत की तरह।

(24 दिसम्बर 2012)

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