29 मार्च 2016, मंगलवार
आज घर लौटते ही कृष्ना जी ने बताया कि डैडी एक बछड़ा अपनी मम्मी से छूट गया है बेचारा चिल्ला रहा है. मैने उनकी सारी बाते गौर से सुनी. तभी वह बछड़ा दिख गया, उसे देखते ही सारी बाते मेरे समझ मे आ गयी, कोई गोपालक सज्जन अपने गाय के बछड़े कोअनुपयोगी होने के कारण जानबूझ कर उसे भटका कर हमारे एरिया मे छोड़ गये थे, अब बेचारा वो बेकसूर बछड़ा जिसका कसूर मात्र इतना है कि वहबछड़ा है, मेरे दोनो बच्चे हाथ मे रोटी लेकर उसे खिलाने को परेशान है पर वह बेचारा अनचिन्हा अनजाना होने के वजह से दूर से ही भाग जा रहा है, काफी रात बीत गयी है पर वह बेचारा बेकसूर बेजुबान बछड़ा अभी भी चिल्लाते हुये अपनी मॉ व अपने पालनहारो को खोज रहा है. हमे डर है कि कही रात मे उस भूखे प्यासे बेकसूर जीव पर कुत्ते हमला न कर दे, मेरे दोनो बच्चे उसकी चिन्ता मे अभी रात के १२.२० तक चिंतातुर हो कर जाग रहे है पर जिस सज्जन का वह बछड़ा है वह तो उसे दूसरे मोहल्ले मे भटका कर अपने को कर्तव्यमुक्त मान चैन की नींदसो रहे होगें?
क्या उन्हे गोभक्त कहना उचित होगा?
साथ ही साथ मै उस बछड़े की पीड़ा वाली आवाज पर यह सोच रहा हूँ कि क्या वो समय आ गया है जब राष्ट्रीय गो नीति पर पुनर्विचार करते हुये उसमे इस तरह के अनुपयोगी माने जाने वाले मूक निरीह पशुओ पर भी विचार किया जाये.
आज घर लौटते ही कृष्ना जी ने बताया कि डैडी एक बछड़ा अपनी मम्मी से छूट गया है बेचारा चिल्ला रहा है. मैने उनकी सारी बाते गौर से सुनी. तभी वह बछड़ा दिख गया, उसे देखते ही सारी बाते मेरे समझ मे आ गयी, कोई गोपालक सज्जन अपने गाय के बछड़े कोअनुपयोगी होने के कारण जानबूझ कर उसे भटका कर हमारे एरिया मे छोड़ गये थे, अब बेचारा वो बेकसूर बछड़ा जिसका कसूर मात्र इतना है कि वहबछड़ा है, मेरे दोनो बच्चे हाथ मे रोटी लेकर उसे खिलाने को परेशान है पर वह बेचारा अनचिन्हा अनजाना होने के वजह से दूर से ही भाग जा रहा है, काफी रात बीत गयी है पर वह बेचारा बेकसूर बेजुबान बछड़ा अभी भी चिल्लाते हुये अपनी मॉ व अपने पालनहारो को खोज रहा है. हमे डर है कि कही रात मे उस भूखे प्यासे बेकसूर जीव पर कुत्ते हमला न कर दे, मेरे दोनो बच्चे उसकी चिन्ता मे अभी रात के १२.२० तक चिंतातुर हो कर जाग रहे है पर जिस सज्जन का वह बछड़ा है वह तो उसे दूसरे मोहल्ले मे भटका कर अपने को कर्तव्यमुक्त मान चैन की नींदसो रहे होगें?
क्या उन्हे गोभक्त कहना उचित होगा?
साथ ही साथ मै उस बछड़े की पीड़ा वाली आवाज पर यह सोच रहा हूँ कि क्या वो समय आ गया है जब राष्ट्रीय गो नीति पर पुनर्विचार करते हुये उसमे इस तरह के अनुपयोगी माने जाने वाले मूक निरीह पशुओ पर भी विचार किया जाये.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें