रविवार, 27 मार्च 2016

व्योमेश की कवितायें: दिल्ली की दामिनी (27दिसम्बर 2012)

दिल्ली की दामिनी
केवल आज दमित नही की गयी
वह तो दमित होती रही
हर देश मे हर काल मे
बस संबोधन बदलते रहे
समय के साथ साथ
वह कभी सीता बन के छली गयी
आदर्श और कर्म के नाम पर
कभी पॉचाली बन अपमानित हुई
राजधर्म के नाम पर
कभी संयोगिता बन प्रेम के नाम पर
कभी पद्मिनी बन चरित्र के नाम पर
वह मीरा भी है, वह जोधा भी है
वह रजिया भी है
वह मंदोदरी व उर्मिला भी है
बस नाम बदलते गये
और भूमिकाये बदल गई
समय के साथ
परिस्थितियॉ आज भी वही है
बस उनके रूप व संदर्भ बदले हैं
नाम बदले है
आधुनकता, बराबरी, समानता,
और अवसर के संग्याओं मे
क्रियायों मे
व्याकरण की भाषाओं मे
पर सोच आज भी वही है
काश!
हम संबोधनो को बदलने के बजाय
सोच बदल पाते

(दिल्ली मे हुये दामिनी बलात्कार व हत्या  पर मन की भावनायें, २७ दिसम्बर २०१२)

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