खोट हमारी योजनाओं मे नही हमारी नीयत मे है. जब लगभग दो दसक पहले चौकाघाट पुल का पुननिर्माण व कचहरी वाले नये वरूणापुल का नव निर्माण हुआ था तो सड़क के साथ साथ फुटपाथ भी बनाया गया था . समय के साथ इन फुटपाथों पर टेलीफोन व केबुल लाईने दौड़ने लगी और धीरे धीरे इन पर सब्जी वालो, मछली बेचने वालो, गमछा व हेलमेट बेचने वालो ने अपना कब्जा बना लिया. आज हालात यह है कि कभी पुल पर चलते हुये भीड़ भाड़ के कारण नियमतः आप फुटपाथ पर सीधे जा रहे है तो ये कब्जाधारी आपकी गलती को दो चार बाते सुनाते हुये सुधारने का माद्दा रखते है. फिर भी बात समझ मे नही आने पर दो चार ऊपर से पड़ जाये तो शुक्र मनाइये कि सस्ते मे छूट गये.
ऐसा नही है कि प्रशासन व पुलिस को इस लापता फुटपाथ की खबर नही है क्योकि सिपाही लगायत आई जी जोन व बाबू लगायत कमिश्नर दिन भर इन्ही रस्तो से शहर जिला मुख्यालय बनारस क्लब व कचहरी कई बार आते जाते रहते है और पुलों पर लगी इन जबरन दुकानदारी को देख कर भी महटिया जाते है.
क्योंकि गाड़ियो से चलने वाले साहबान पैदल आम जनता के दुश्वारियों के बारे मे सोच कर नाहक क्यूँ परेसान हो?
ऐसा नही है कि प्रशासन व पुलिस को इस लापता फुटपाथ की खबर नही है क्योकि सिपाही लगायत आई जी जोन व बाबू लगायत कमिश्नर दिन भर इन्ही रस्तो से शहर जिला मुख्यालय बनारस क्लब व कचहरी कई बार आते जाते रहते है और पुलों पर लगी इन जबरन दुकानदारी को देख कर भी महटिया जाते है.
क्योंकि गाड़ियो से चलने वाले साहबान पैदल आम जनता के दुश्वारियों के बारे मे सोच कर नाहक क्यूँ परेसान हो?
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