व्योमवार्ता/ जीत जायेगें हम...........:व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24अप्रैल 2020
कोरोना से जंग जारी है, यह जंग अनोखी है, शायद इतिहास मे पहली बार। जिसे जीतने के लिये घर से बाहर निकल कर रणभूमि मे लड़ने के बजाय घरों मे रह कर जीतना है। ऐसी जंग जहॉ जीत के लिये सेना की जरूरत नही बल्कि खुद मे सेना बनना है। ऐसी जंग जिसमे जीतने के लिये "जीत जायेगे हम, तू अगर संग है" के बजाय तेरे बगैर अकेले ही जूझना है। इस जंग मे मोर्चे पर लड़ रहे कोरोना वारियर्स को सहयोग देने हमे बस खुद पर नियंत्रण रख अपने को सोशल डिस्टेंसिग मे बनाये रखना है, यहॉ तक कि हम कोरोना वारियर्स से हाथ मिला कर उन्हे बधाई देने मे उनके मोर्चे को कमजोर कर सकते है। बस जरूरत इस बात की है कि हम खुद पर भरोसा रख अपने नीति नियंताओं के निर्देशों का पालन करते रहे। एक अनुमान के अनुसार यदि देश मे समय से लाकडाऊन नही हुआ होता तो शायद स्थिति की भयावहता की कल्पना भी हम नही कर सकते। इटली, स्पेन, इंग्लैंड की स्थिति हम सब देख रहे हैं । अमेरिका जैसी महाशक्ति भी कोरोना से हिल गई है ऐसे मे विश्व के दूसरे सबसे बड़ी जनसंख्या वाले हमारे देश से कोरोना हार रहा है तो उसके लिये सिर्फ़ हमारी संकल्प शक्ति, एकता व अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका है। अपवाद स्वरूप अवमानना की छिटपुट घटनाएँ हुई है पर इस समय उन्हे चर्चा का मुद्दा न बना कर आगे बढ़ने की जरूरत है।
आज का जो सबसे मुश्किल सवाल है वह कोरोना के बाद हमारे भविष्य का है। कोरोना के चलते उद्योग धंधे बंद होने से सेवा क्षेत्र ठप्प होने से बेरोजगारी की संख्या पहले की तुलना मे दो से ढाई गुनी बढ़ सकती है। व्यवसाय आधारित सेवायें भी नकद प्रवाह कम होने से प्रतिगामी होगीं। मध्यवर्गीय जनसंख्या स्वयं के जीवनस्तर को बरकरार रखने के लिये परेशान होगी ऐसी स्थिति मे एकमात्र विकल्प मात्र हमारे देश भारत के ही पास है। भारतीय संस्कृति मे बताये गये सादा जीवन उच्च विचार वाली परंपरा को हमें अपने व्यवहारिक जीवन मे उतारना होगा। ऐसे मे प्रोफेसर जे०के०मेहता के ईच्छा विहीनता के सिद्धान्त को स्वीकार कर स्वयं को संतुष्टि के उच्चतम स्तर तक प्राप्त कर सकेगें। निश्चित ही आज के भौतिकवादी एवं स्वसंतुष्टि को सर्वोपरि मानने वाले जीवनशैली व परिवेश मे यह दुष्कर है पर यदि हमे स्वयं को मानसिक हताशा, आर्थिक समस्या और अनिश्चित भविष्य के मकड़जाल से स्वयं को निकालना है तो इसके अतिरिक्त कोई अन्य उपाय भी नही। प्रो० मेहता ने मनुष्य की आवश्यकता को अनन्त माना है जिसमें एक आवश्यकता की पूर्ति होने पर दूसरी आवश्यकता तुरंत जन्म ले लेती है और यह अवचेतन आवश्यकताओं की होने की स्थिति बन जाती है। यदि हम अपनी आवश्यकता को सीमित मानते हुये मानसिक सुख को भौतिक सुख के ऊपर मान लें और स्वयं को अपने ,अपने परिवार अपने समाज के आत्मिक व आध्यात्मिक कल्याण के लिये एक तंतु के रूप मे स्वीकार करते हुये कल्याण के उद्देश्य को प्रथम मान लें तो निश्चित ही इस हताशा के दौर से हम सफलतापूर्वक विजयी हो कर निकलेगें।
कोरोना ने हमे एक चुनौती दिया है और लाकडाऊन ने एक अवसर। पिछले एक महीने से हम अपने घरों मे परिवार के साथ रह कर अभूतपूर्व स्थिति मे कार्य करते या न करते हुये रह रहे हैं इससे दुनिया पर कोई फर्क नही पड़ा है। यह लाकडाऊन हमे बताता है कि आने वाले दिनो मे भी दुनिया पर कोई फर्क नही पड़ने वाला। अगर कहीं फर्क पड़ना है तो वह सिर्फ़ व सिर्फ हम पर, हमारे सोच पर, हमारे मानसिक अवस्था पर और हमारे द्वारा बनाये गये परिस्थितियों पर। आज जरूरत इसी बात की है कि हम स्वयं के अंदर झॉक कर स्वयं को ढूढ़े। स्वयं के हिसाब से परिस्थितियों का निर्माण करें तो निश्चित ही भविष्य हमारा है। हम अपने जीवनचर्या का आत्मनिरीक्षण करते हुये आत्मसंयम व आत्मनियंत्रण के द्वारा उसे आत्मकल्यार्थ परिवर्तित कर अपना सके तो कोरोना का दौर भी मुश्किल नही।
(बनारस,24अप्रैल 2020,शुक्रवार)
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