प्रिय साथियों,
मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि मुझे आने वाले अंग्रेजी कैलन्डर के अनुसार नववर्ष (न्यू ईयर) की शुभकामनाएं एवं बधाई देने का कष्ट ना करें
क्यूँकि मेरा धर्म सनातन हिन्दू है
हमारे धर्मग्रंथो के अनुसार चैत्र गुड़ी पड़वा से नया वर्ष शुभारम्भ होता है और उसे ही में मानाता आया हूँ उसी अनुसार में आपसे भी आग्रह कर रहा हुँ की आप 1 जनवरी को नये वर्ष की शुभकामनाएं मुझे न भेजे और न ही आप उस दिन नया वर्ष मनाये। कृपया ये सन्देश अपने मित्रों और ग्रुप में शेयर करें।
अगर आपको शुभकामनाएं और बधाई देनी है तो मुझे हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल एकम विक्रमी संवत् 2075 (18 मार्च 2018 )को दीजिएगा ।
कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है ।
ईस परिप्रेक्ष्य मे मैं आप सब के समक्ष राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह " दिनकर " जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
~~~~~~राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर
साथियो, अपनी संस्कृति और पूर्वजों की परंपरा का संरक्षण और सम्मान करने के लिए यह अति आवश्यक है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें