बनारस, अजब मिजाज का गजब शहर ,बाबा कालभैरो : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 07 अगस्त 2017, सोमवार
हमारा बनारस भी गजब का शहर है, मार्क ट्वेन ने कहा था कि बनारस इतिहास से प्राचीन, परम्पर से परे और काल के सीमा परिधि से बाहर है, "Benaras is older than history, older than tradition, older even than legend and looks twice as old as all of them put together."अभी तक बनारस की स्थापना के बारे मे इतिहासकार कोई समय नही निश्चित बता पाये हैं. बनारस अड़बंगी महादेव भोले नाथ की नगरी है, तो यहॉ के मिथक व इतिहास भी अजब गजब है, इन मिथक कहानियों के पीछे छिपे ऐतहासिक रहस्य व प्रमाणिकता क्या है किसी को नही मालूम पर हम बनारस वाले अपने पूर्वजों द्वारा सहेजी गई परम्पराओं का पालन पूरे आस्था व विश्वास के साथ करते हैं. कमाल तो यह है कि हमारे साथ हमारे देवी देवता भी इसी मे प्रसन्नता अनुभव करते हैं. ये परम्पराये औरों के लिये कहानियों होगी परहमारे लिये हमारी आस्था हैं हमारा विश्वास है हमारी श्रद्धा है. हम इन परम्पराओं मे कोई छेड़छाड़ नही रकरते न ही करना ही चाहते हैं न करने देते है क्योंकि यही हमारे बनारसीपन के रग रग मे समाया है और यही हमारा मिजाज भी है. इसी मे हमारी मस्ती है, दुनिया जहॉ चूल्हे भाड़ मे जाये हमारे ठेगे (बनारसी पाठक अपने लिहाज से सही शब्द का प्रयोग करने के लिये स्वतंत्र है) से. हमारी तो अपनी वाली चलेगी, इसी को बनारसी मे अड़ना कहते हैं, और अपनी बातें पर अड़ने से ही बनारसी अड़ी शब्द प्रचलन मे आया. तो साहब आपको इन अड़ीयों पर बनारसी अड़ीबाज मिल जायेगें, मुँह मे पान घुलाये आसमान की ओर मुँह उठा कर बिना एक बूँद पान चुआये मोहल्ले की राजनीति से लेकर ट्रम्प, पुतिन, शिंजो व गिलपिंग के इण्टरनेशनल राजनीति की मॉ बहन एक कर अपने सांसद प्रधानमन्त्री के पालिसी का पोलिटिकल पोस्टमार्टम करते हुये. दम तोड़ती ट्रैफिक व्यवस्था, चिद्दी चिद्दी ऊधरा रह सड़के, साल छ महीना पहले बनी हुई पर आज धरती मे समाती हुई सड़के, सीवर के पुनरूद्धार के नाम पर दसकों से शहर को तालतलैया बनायी गई जल निगम की अराजक व्यवस्था और नगर को नरक बनाता नरक निगम को गरियाते कोसते हुये, पर इन सब के बावजूद बनारसी होने पर गौरवान्वित. इनकी लाईफस्टाईल बस एक " चना चबैना गंगाजल जो पुरवै करतार, काशी कबहुँ न छोड़िये विश्वनाथ दरबार "
इसी बनारस में एक पुलिस स्टेशन ऐसा है, जहां ऑफिसर की कुर्सी पर बाबा काल भैरव विराजते हैं। अफसर बगल में कुर्सी लगाकर बैठते हैं। सालों से इस स्टेशन के निरीक्षण के लिए कोई IAS, IPS नहीं आया. क्योंकि मान्यता यह है कि इस थाने के कोतवाल साक्षात बाबा कालभैरव है. वे स्वयं थाना क्षेत्र की कानून व्यवस्था देखते है तो इसलिए अपनी कुर्सी पर नहीं बैठते थानेदार.
वाराणसी के विश्वेश्वरगंज स्थित कोतवाली पुलिस स्टेशन के प्रभारी राजेश सिंह ने बताया, ''ये परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां कोई भी थानेदार जब पोस्टिंग होकर आया, तो वो अपनी कुर्सी पर नहीं बैठा। कोतवाल की कुर्सी पर हमेशा काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव विराजते हैं।''
- ''क्राइम कंट्रोल के साथ-साथ सामाजिक मेल-मिलाप, आने-जाने वालों पर बाबा खुद नजर बनाए रखते हैं। वो शहर के रक्षक हैं। इसीलिए इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। बाबा की पूजा के बाद ही यहां तैनात पुलिसकर्मी काम शुरू करता है।''
- ''ऐसा माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ ने पूरी काशी नगरी का लेखा-जोखा का जिम्मा काल भैरव बाबा को सौंप रखा है। शहर में बिना काल भैरव की इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। शहर की सुरक्षा के लिए थानेदार की कुर्सी पर बाबा काल भैरव को विराजा गया है।''
- कांस्टेबल सूर्यनाथ चंदेल ने बताया, ''मैं 18 साल से खुद इस थाने में तैनात हूं। मैंने अभी तक किसी भी थानेदार को अपनी कुर्सी पर बैठते नहीं देखा। बगल में चेयर लगाकर ही प्रभारी निरीक्षक बैठता है। हालांकि, इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की, ये कोई नहीं जानता। लेकिन माना जाता है कि अंग्रेजों के समय से ही ये परंपरा चली आ रही है।''
ऐसा है बाबा काल भैरव का महत्व
- साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। वास्तुशास्त्र के अनुसार बना यह मंदिर आज तक वैसा ही है। बाबा काल भैरव मंदिर के महंत-पंडित नवीन गिरी ने बताया, हमेशा से एक खास परंपरा रही है। यहां आने वाला हर बड़ा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबसे पहले बाबा के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेता है।
काल भैरव मंदिर में रोजाना 4 बार आरती होती है। रात की शयन आरती सबसे प्रमुख है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। मगर उस दौरान पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। एक अखंड दीप हमेशा जलता रहता है।
मान्यत है कि ''ब्रह्मा ने पंचमुखी के एक मुख से शिव निंदा की थी। इससे नाराज कालभैरव ने ब्रह्मा का मुख ही अपने नाखून से काट दिया था। कालभैरव के नाखून में ब्रह्मा का मुख अंश चिपका रह गया, जो हट नहीं रही था।''
- ''भैरव ने परेशान होकर सारे लोको की यात्रा कर ली, लेकिन ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिल सकी। तब भगवान विष्णु ने कालभैरव को काशी भेजा। काशी पहुंच कर उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली और उसके बाद वे यहीं स्थापित हो गए।''
(बनारस,07 अगस्त 2017, सोमवार)
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अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
सोमवार, 7 अगस्त 2017
व्योमवार्ता / बनारस, अजब मिजाज का गजब शहर, बाबा कालभैरो : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 07 अगस्त 2017, सोमवार
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