और एक सॉझ : व्योमेश चित्रवंश की डायरी के कुछ पुराने पन्ने, 15जुलाई 2017, शनिवार
और
एक और सॉझ ढल गयी
आहिस्ता आहिस्ता
आँखों मे उदास सपने लिये
कभी खुली आँखों में तो
कभी बंद पलकों में
पर सभी सपनों का रंग
फीका फीका एक जैसा
दर्द और पीड़ा से भरा
पर उस विवसता के पीछे
एक अकुलाहटऔर बेचैनी
कुछ करने की कुछ कर गुजरने की
पर मन ही सब कुछ नही होता
क्योंकि मन को तन का
वास्तविक बोध नही होता
कसमसाहट में बंद पलको के
कोरों मे सिमट आई नमी
बावजूद मानस केअन्तर से
उठती है आवाज
यह अंधेरा छँट रहा है
कल आने वाली सुबह के लिये.......
-व्योमेश १४.०७.१३ रविवार
http://chitravansh.blogspot.in
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें