गुरुवार, 13 जुलाई 2017

व्योमवार्ता / जाधव पीयेंग, ब्रह्मपुत्र घाटी का महानायक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13जुलाई 2017, गुरूवार

जाधव पीयेंग, ब्रह्मपुत्र घाटी का महानायक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13जुलाई 2017, गुरूवार

कभी कभी सुनी और पढ़ी जीवन की वास्तविक कहानियाँ मन को रोमांचित कर जाती है, जीवन के महासंग्राम मे संघर्षरत वास्तविक नायकों के प्रति सम्मान से सिर नत हो जाता है. ऐसी ही अविश्वसनीय, बेजोड़ , अदभुत कहानी है आसाम में रहने वाले एक आदिवासी की जिसके कामो की गूंज ब्रह्मपुत्र की लहरों में बहते , सोंधी जंगली हवाओं में महकते , घने पेड़ो की सरसराहट से होते , हज़ारो किलोमीटर दूर दिल्ली में "राष्ट्रपति भवन"  तक पहुंची  | इस सीधे साधे आदिवासी का नाम है “जाधव पीयेंग"   चलिए कहानी शुरू होने के पहले छोटी सी जानकारी दे दूँ | “ब्रह्मपुत्र” नदी को पूर्वोत्तर का अभिशाप भी कहा जाता है | इसका कारण है कि जब यह आसाम तक पहुँचती है तो अपने साथ लम्बी दूरी से बहा कर लायी हुई मिटटी , रेत और पहाड़ी पथरीले अवशेष विशाल “द्रव मलबे” के रूप में लाती है , जिससे  नदी की गहराई अपेक्षाकृत कम हो चौड़ाई में फैल किनारे के गांवो को प्रभावित करती है | मानसून में इसके चौड़े पाट हर साल पेड़ पौधो , हरियाली और गांवो को अपने संग बहा ले जाते है |  ब्रह्मपुत्र नदी का विशालता से फैला हरियाली रहित , बंजर रेतीला तट लगभग रेगिस्तान लगता था | चलिए अब आते है हमारे कहानी के नायक “जाधव पियेंग” पर  | वर्ष 1979 में जाधव 10 वी परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे | तब ही उनकी नजर लगभग 100 मृत सापो के विशाल गुच्छे पर पड़ी | आगे बढ़ते गए तो पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव जन्तुओं से अटा पड़ा एक मरघट सा था । मृत जानवरों के शव के कारण पैर रखने की जगह नही थी | इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने जाधव के किशोर मन को झकझोर दिया | हज़ारो की संख्या में निर्जीव जीव जन्तुओ की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात  सोने न दिया | गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़ पौधे ही नही उग रहे है तो नदी के रेतीले तटो पर जानवरों को बाढ़ से बचने आश्रय कहाँ मिले ? जंगलो के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले ? बात जाधव के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने होंगे |                    
    50 बीज और 25 बॉस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने | ये आज से 35 साल पुरानी बात है | उस दिन का दिन था और आज का दिन क्या आप कल्पना कर सकते है की इन 35 सालो में  जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला |  क्या आप भरोसा करेंगे के एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर ,100 से ज्यादा हिरन ,जंगली सुवर 150 जंगली हाथियों का झुण्ड , गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे है, अरे हाँ सांप भी जिससे इस अद्भुत नायक को जन्म दिया | जंगलो का क्षेत्रफल बढाने सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साइकल से जाने के बाद ,नदी पार करते और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साइकल 5 किलोमीटर तय कर घर पहुँचते |  इनके लगाये पेड़ो में कटहल ,गुलमोहर ,अन्नानाश ,बांस , साल , सागौन , सीताफल, आम ,बरगद , शहतूत ,जामुन, आडू और कई औषधीय पौधे है |लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर दिखाने वाले साधक से महज़ पांच साल पहले तक देश अनजान था |  ये लौहपुरुष अपने धुन में अकेला आसाम के जंगलो में साइकल में पौधो से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में गुमनाम सफर कर रहा था | सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्ड फोटोग्राफर “जीतू कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “the molai forest” | यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी | दूसरी फिल्म आरती श्रीवास्तव की “foresting life” जिसमे जाधव की जिन्दगी के अनछुवे पहलुओं और परेशानियों को दिखाया | तीसरी फिल्म “forest man” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गयी  | एक अकेला व्यक्ति वन विभाग की मदद के बिना , किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर  इतने पिछड़े इलाके से कि जिसके पास पहचान पत्र के रूप “राश कार्ड” तक नही है ने हज़ारो एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया | जानने वाले सकते में आ गए उनके नाम पर आसाम के इन जंगलो को “मिशिंग जंगल” कहते है { जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से है} | जीवन यापन करने के लिए इन्होने गाये पाल रखी है | शेरो द्वारा आजीविका के साधन उनके पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई | शेरो ने मेरा नुकसान किया क्योकि वो अपनी भूख मिटाने खेती करना नही जानते | आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे | एक साल पहले महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत होने वाले जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी में दिनचर्या लीन है | तमाम सरकारी प्रयासों , वक्षारोपण  के नाम पर लाखो रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण , वनविभाग वो मुकाम हासिल न कर पाये जो एक अकेले की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया  । साइकल पर जंगली पगडंडीयों में पौधो से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी | ढेर शुभकामनाये आपको जाधव जी आपने अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता कहावत गलत साबित कर दी अब तो हम कहेंगे “अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है “ और हम भी इसी तरह अपने आस पास के बंजर पड़े इलाके को अधिक से अधिक पेड़ लगाकर हरा भरा बना सकते है और अपनी धरा को बचा सकते हैं।
(बनारस,13 जुलाई 2017, गुरूवार)
http://chitravansh.blogspot.in

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