बुधवार, 23 नवंबर 2016

भारत पाक संबंध पर जे एन दीक्षित की शोधपरक सर्वकालिक पुस्तक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, बनारस, 23 नवंबर 2016, बुधवार

भारत-पाक संबंध का शोधपूर्ण विश्लेषण

   इधर पाकिस्तान की तरफ से दहशतगर्दो व सैनिकों की कार्यवाहियॉ काफी बढ़ती जा रही है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश मे राष्ट्रवाद व आत्मविश्वास की लहर के चलते पाकिस्तान अब सीधी कार्यवाही की हिम्मत न कर ऩापाक काम करने मे लगा हुआ है जो इस्लामिक उसूलों के साथ मानवता के भी खिलाफ है। एक आम इंसान के तौर पर हम सोचते है कि पाकिस्तान की यह कायराना काम काश्मीर मे लगातार मिल रहीअसफलता पर खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने वाला कदमताल है। पढ़े, लिखे अमनपसंद शहरी भारत- पाकिस्तान संबंधों के बारे मे अकसर कयास लगाते हैं- पहला, भारत व पाकिस्तान मे आम लोग एक दूसरे के संपर्कों मे आना चाहते है लेकिन सरकारें ही इसे रोकती है; दूसरा भारतीयों और पाकिस्तानियों की नई पीढ़ी पुराने पूर्वाग्रहों को तोड़ सकती है; तीसरा, सॉस्कृतिक व बौद्धिक संपर्क के समर्थन से सामान्य आर्थिक व तकनीकी सहयोग संबंधों मे सुधार ला सकता है। परंतु पिछले दिनो फिर पाक की नापाक हरकतों की पुनरावृत्ति, आतंकी घटनाओं, व पाक की बेशर्मी ने इन सारे कयासो पर लगभग पूर्णविराम लगाते हुये एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया। इनमे पाकिस्तानी कलाकारों की भूमिका भी बेहद पक्षपातपूर्ण व सांस्कृतिक स्वभाव के विपरीत रही।
प्राय: मै भी सोचता हूँ कि जातीयता, संस्कृति, धर्म और भाषा की दृष्टि से इतनी समानता होने के बावजूद भारत और पाकिस्तान का रवैया एक -दूसरे के प्रति सहयोगपूर्ण क्यों नही हैं? या फिर ये समानतायें ही तो शत्रुता उत्पन्न नही करतीहैं?दोनो देशों मे धार्मिक कट्टरवाद के उदय ने संबंधो को कैसे प्रभावित किया है या आगे कैसे प्रभावित करेगीं? भारत और पाकिस्तान- दोनों मे केन्द्र - विमुखी, उप- राष्ट्रीय आवेगों ने द्विपक्षीय संबंधों पर किस तरह प्रभाव डाला है? अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद ने भारत-पाकिस्तान समीकरण को कैसे परिवर्तित किया है? क्या समय ने भारतीयों और पाकिस्तानियों की युवा पीढ़ी मे विभाजन के कटुअनुभवों को समाप्त कर दिया है? दोनो देशों मे राजनीतिक संस्थानो और शासन प्रकियाओं ने उनके लोगो की मानसिकताओं और प्रवृत्तियों को कैसे प्रभावित किया है?
इन्ही सवालों का बेहतरीन विवेचना किया है भारतीय पूर्व विदेश सचिव एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री जे एन दीक्षित ने अपनी पुस्तक " भारत- पाक संबंध ( युद्ध और शांति में) । श्री जे एन दीक्षित भारत पाक संबधो के बनते बिगड़ते रूपो के साक्षी व प्रेक्षक रहे है। सन 1958 से 1994 तक विदेश सेवा के अधिकारी के रूप मे विभिन्न पदों पर रहते हुये वे स्वयं भी इन संबंधो के भागीदारी मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। 24 दिसंबर 1999को आई सी 814 विमान अपहरण कंधार कांड को भूमिका बना कर मुसर्रफ के जुलाई 2001मे आगरा यात्रा व असफल शिखर वार्ता के उपसंहार के क्रम को समेटे इस पुस्तक मे दीक्षित जी ने पाकिस्तान के जन्म से लेकर अब तक की मौलिक समस्या, चिंतन, जनता को छलावा देकर किये जा रहे प्रपंच, नीयत व स्वभाव का विश्लेषण किया है वह पूरी समस्या का शव विच्छेदन करने के लिये पर्याप्त ही नही बल्कि प्रांसगिक व महत्वपूर्ण है। वे स्वयं महसूस करते है कि हाल के वर्षों मे पाकिस्तान के मुसलमानो मे कट्टरपंथी संघर्षो से स्थिति और भी खराब हुई है। आज भी पाकिस्तान में अहमदियों को गैर मुसलमान मानकर जाति से बहिष्कृत कर दिया गया है। शिया और सुन्नी सिर्फ सैद्धान्तिक स्तर पर नही बल्कि हिंसक  संघर्ष मे गुत्थम गुत्था हो रहे हैं। सिंधी, बलूची और पठानों की गहन पहचानो के  परे जाने मे इस्लाम समर्थ नही हो पाया है जो पंजाबियों के जनसंख्या संबंधी और राजनीतिक प्रभुत्व से अप्रसन्न है। आजादी के साठ साल बाद भी भारत के विभिन्न भागो से पाकिस्तान गये लोग अब भी मोजाहिर ही कहलाते हैं । पाकिस्तानी समाज मे तनाव और चिड़चिड़ापन एक संवेदनशील स्थिति परस्थिर है। वहॉ आज भी लोकतंत्र सैन्यतंत्र के रहमोकरम व मर्जी से चल रहा है ऐसे विषम पाकिस्तानी राजनीति का भारत के प्रतिकूल होना स्वाभाविक है क्योंकि भारत की दुश्मनी, कश्मीर पाने का खयाली पुलाव व एटमबम के बल पर कुछ भी कर जाने की मुगालता ही वे सब्जबाग है जिन्हे दिखा कर पाकिस्तान के जम्हूरियत पर राज किया जा सकता है।
पुस्तक मे दुनिया के बड़े व चौधरी कहे जाने वालो की देशों की भारत पाक संबंधो पर संसय व ढुलमुल नीति पर भी अच्छी चर्चा की गयी है। कश्मीर के साथ ही दोनो देशो के  मध्य अन्य राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक मुद्दे समस्या के वास्तविक तह मे ले जाते हैं।
विधि का अध्यासु होने के नाते मैने संयुक्त राष्ट्र संघ व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय व अन्तर्राष्ट्रीय संबधो के आईने से अध्ययन करने पर मुझे लगा कि अंग्रेज जानबूझ कर भारत पाक के बीच यह समस्या बुनियादी तौर पर बोते गये और उन्होने हमारे नीतिनियन्ताओ व सेना को अपेक्षित व कारगर कदम नही उठाने दिया जिससे समस्या ज्यो की त्यों फलती फूलती गयी व आज भी हम इस समस्या रूपी पेड़ के कड़ुवे फल खाने को विवश है।
श्री दीक्षित ने संबंधो के अनुमानो की उपयुक्तता की जॉच करने का प्रयास किया है। उन्होने स्पष्ट किया है कि अब तक विभाजन की यादें धुंधली होती नही दिखी, न ही पूर्वाग्रहों से मुक्ति मिली है। पाकिस्तान भारत के साथ आर्थिक संबंधो के बारे मे गंभीर आशंकाओं से ग्रस्त है क्योकि उसे डर है कि एक बड़े पड़ोसी द्वारा उसकाशोषण किया जा सकता है और दबाया जा सकता है। इस सदी के शुरूआती वर्षों में सूचना क्रांति व आर्थिक भूमण्डलीकरण द्वारा यह उम्मीद की जा रही थी कि दक्षिण एशिया के ये दोनो देश अपनी प्रवृत्तियॉ व नीतियॉ संभवत: बदले किन्तु 9/11, संसद पर हमला, ओसामा बिन लादेन का प्रभुत्व, ताज होटल, बेनजीर भुट्टो की हत्या, इस्लामिक आतंकवाद व कंधार प्रकरण ने इन सभी उम्मीदो पर पानी फेर दिया।
श्री जे एन दीक्षित की यह पुस्तक  भारत पाक संबंधो के समस्त पहलूओं को विश्लेषित करती है। वर्ष 2004 मे प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित यह पुस्तक आज  और भी प्रासंगिक इसलिये भी हो जाती है कि आज पुन: कमोबेस वैसी ही परिस्थितियॉ व्याप्त हो चुकी है। पठानकोट एअरबेस पर हमला,  हाफिज सईद व मसूद अजहर की पाकिस्तान की राजनीति मे बढ़ती दखलंदाजी, नवाजशरीफ की धूमिल पड़ती राजनीति व राहिल शरीफ की महत्वाकांक्षा के साथ साथ भारतीय सर्जिकल स्ट्राईक व विमुद्रीकरण के चलते पाक की बौखलाहट ने समस्या को फिर से तनाव के मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है ऐसे मे इस किताब को पढ़ना  और भी समीचीन लगा।

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