सहस्राब्दी के स्वागत में,
गंगा में तैरते अनगिनत दीप
घाटो परखड़े लोगो के हर्ष पूर्ण कोलाहल
हा-हर महदेओ के उद्घोष के बीच
गूंजते घंटा घड़ियाल और शंख्ध्वानियाँ
आने वाले हजार वर्षों को मंगलमय
सुभ औए शिवमय करने की आकांछा
बीते सदी की कटु अनुभवों और त्रासदी
भुलाने की धरीं इच्छाएं
निश्चित ही सुंदर ल्लागति है बेहद सुंदर
दीपों की सद्य प्रकाशित लड़ियॉ
अन्धकार और घने कोहरे को चीरती हुयी
काश इस मद्धिम प्रकाश से मिटा पते
हम अपने अन्तेर के अंधियारों को
फ़िर नही होती कोई हिंसा , वैमनस्यता
त्रासदी की अमानवीय क्रूर घटनाएँ
फैलता सद्भाव का प्रकाश
नव सहस्राब्दी में.
(बीसवीं सदी मे लिखी गई आखिरी कविता)
घाटो परखड़े लोगो के हर्ष पूर्ण कोलाहल
हा-हर महदेओ के उद्घोष के बीच
गूंजते घंटा घड़ियाल और शंख्ध्वानियाँ
आने वाले हजार वर्षों को मंगलमय
सुभ औए शिवमय करने की आकांछा
बीते सदी की कटु अनुभवों और त्रासदी
भुलाने की धरीं इच्छाएं
निश्चित ही सुंदर ल्लागति है बेहद सुंदर
दीपों की सद्य प्रकाशित लड़ियॉ
अन्धकार और घने कोहरे को चीरती हुयी
काश इस मद्धिम प्रकाश से मिटा पते
हम अपने अन्तेर के अंधियारों को
फ़िर नही होती कोई हिंसा , वैमनस्यता
त्रासदी की अमानवीय क्रूर घटनाएँ
फैलता सद्भाव का प्रकाश
नव सहस्राब्दी में.
http://chitravansh.blogspot.com
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