#समाज_जिसमें_हम_रहते_है....
प्रेम का पुनर्जन्म।
वृद्धआश्रम के चिकित्सक ने बंशी सिंह को सलाह दिया। आप थोड़ी देर घूमे, टहले। यह सांस कि बीमारी ठीक हो जायेगी। अपनी पत्नी को लेकर बच्चों के पास घूमने भी जा सकते है।
डॉक्टर ने पूछा कितने बच्चे है आपके ?
बंशी बाबू बोले, तीन बेटे है। बड़ा बेटा अभय भेल में मैनेजर है। बहु भी भेल में काम करती है।
दूसरा बेटा संजय बंगलौर कि एक कम्पनी में काम करता है। उसके दो बच्चे है, लेकिन पत्नी से डिवोर्स चल रहा है। सबसे छोटा बेटा विवेक अमेरिका चला गया।
तीन वर्ष सेवानिवृत्त के बाद बंशी बाबू बड़े लड़के पास आये। फिर उसने वृद्धआश्रम भेज दिया, कभी कभी मिलने आते है। बंसी बाबू गाँव कि जमीन छोटे बेटे को पढ़ाने और अमेरिका भेजने में लगा दिया था।
उधर दूसरे बेटे संजय के ऑफिस में आकर उसकी पत्नी ने हंगामा कर दिया, पत्नी चाहती थी बंगलोर वाला फ्लैट उस मिले। जो संजय ने अपने नाम 50 लाख में खरीदा था। बॉस ने संजय को बुलाकर कहा इससे कम्पनी कि रिपोटेंशन खराब हो रही है।
मानसिक पीड़ा , अवसाद से पीड़ित संजय आत्महत्या करते। उसके पहले उन्हें एक ट्रेन दिखी जो दिल्ली जा रही थी। वह दिल्ली चले आये। वहां से प्रयागराज , फिर अपने गाँव बसवाड़ा आ गये।
गांव का वह घर अब भी ठीक स्थिति में था। बंसी के बड़े बेटे एक दुबई रहने वाले इस्माईल को बेचने के लिये बात चला रखी थी। वही उसको सुरक्षित रखे थे।
संजय बाबू, घर का दरवाजा खोल तो चारो तरफ अंधेरा था। एक बिजली का बल्ब था। उसको जलाये तो जल गया। वह आंगन, वह ओसारा देखकर रोने लगे। उनका बचपन वही बीता था।
कभी बंसी सिंह की बड़ी प्रतिष्ठा थी। वह सामाजिक व्यक्ति थे।बहुत सारे लोग उधार पैसे लेते थे। जो कभी दिया नहीं। लेकिन आज झाड़ियों के बीच घर है।
संजय बाबू आज 20 वर्ष बाद अपने घर आये थे। उनके साथ इंजीनियरिंग करने वाली लड़की प्रेम विवाह किया तो वापस न आये।
वह एक टूटी कुर्सी पर बैठकर। यह सोचने लगे कि क्या प्रेम, विवाह ने इतना मुझे विवश किया या यह मेरी दुर्बलता थी। जो मैंने मित्र, पैतृक घर, माता पिता सब कुछ छोड़ दिया। मैं प्रेम को अपने लिये उपयोग किया।
अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं है। ऐसे लगता है कि मैं मर चुका हूँ। जिस प्रेम के लिये मैं संसार छोड़ दिया। वह प्रेम पत्नी बनकर सारा संसार चाहती है।
उनका अवसाद और भी गहरा होता। तभी उनके सहपाठी रहे उदय आ गये। जिनकी मार्कट में एक दूकान है।
वह बोले क्या भाई 14 वर्ष में तो भगवान राम भी वापस आ गये थे। संजय उनको गले लगाये, बोले हाँ, मेरे जैसे सुविधाभोगी लोग कैसे शहर छोड़ सकते है।
उदय बोला, भाभी नही आई। क्या घर बेचकर आज ही चलो जाओगे क्या?
संजय बोले नहीं, अभी रहेंगें।
उदय बोले ठीक है, जब तक हो भोजन मेरे घर ही करना।
उदय के जाने के बाद, संजय बाबू दो दिन तक घर से नहीं निकले। एक दिन वह इस्माइल आया तो देखकर दंग रह गया।
पूरा घर व्यवस्थित, साफ सुथरा हो गया था। सामने कि झाड़ियां काट दी गई थी। बिजली कि व्यवस्था हो गई थी।
बंसी सिंह का कमरा महक रहा था। वहां फिर से भगवान की मूर्तियां रख दी गई थी। रामचरित मानस, गीता पर धूप बत्ती जल रो थी।
इस्माइल बोला मैं तो ऐसे ही ठीक ठाक पैसा देता था। आधा तो आपके बड़े भाई अभय को दे भी चुका हूँ। आप नाहक परेशान हुये।
संजय बाबू, बोले अब जाओ, जब बुलाये तभी आना। यह सोचकर आना कि यह घर मेरा है। यहां तुम्हारे जैसों के लिये स्थान नहीं है।
तभी उदय, मिनी टाटा से गैस सिलेंडर, बर्तन, अनाज आदि सभी सामान लेकर आये।
संजय पूछे कार्ड में पैसे थे या नहीं।
उदय बोले अरे अभी बहुत टेंशन ना लो। उन्होंने सलाह दिया कभी आपका नाऊ रहे कि पत्नी महराजिन को काम पर रख लो। बहुत मेहनती है।
महराजिन आ गई, सब कुछ व्यवस्थित हो गया। ऐसे 15 दिन बीत गये।
पहली बार संजय बाबू आज घर का भोजन किये। तो रोने लगें। उन्होंने महराजिन को घर देकर बोले मैं दो दिन में आता हूँ।
संजय बाबू सीधे वृद्धआश्रम पहुँचे। उनकी माँ देकर भावुक हो गई। बोली तुम्हारी क्या दशा हो गई है। पत्नी जो कहती है, मान जाओ। दांपत्य जीवन गाड़ी कि तरह होता है। जो दो चक्कों से चलता है।
संजय बाबू, सारी कागजी कार्यवाही पहले कर चुके थे। वह बोले ठीक है, आप मेरे साथ चलो।
बंसी बाबू बोले कहा चले ?
संजय ने कहा , आप चलिये तो पहले।
दिनभर कि यात्रा के बाद गाड़ी बनकी गांव, बंसी सिंह के द्वार पर पहुँची।
तीन साल बाद अपना घर देखकर बंसी बाबू घुटनो के बल बैठ गये। संजय बाबू कि माँ, महराजिन को गले लगा लिया।
बंसी बाबू के द्वार पर दो दिन लोग आते जाते रहे।
संजय ने एक दिन कहा आपको सांस वाले डॉक्टर को दिखा देते है।
बंसी बाबू बोले मुझे तो कुछ हुआ ही नहीं है। देखो सुबह पूरा गांव घूमकर आ रहा हूँ। अब थोड़ी देर भजन करूँगा।
आज संजय बाबू, बंगलोर अपनी पत्नी के पास फोन किये। उधर से पत्नी बोली भागने से काम नहीं चलेगा। मुझे फ्लैट चाहिये।
संजय बाबू बोले बच्चे कैसे है ?
पत्नी बोली, तुम से क्या मतलब बच्चों से, पहले भी नहीं था।
संजय बाबू बोले मैंने फ्लैट कि चाभी भेज दिया। अब वह फ्लैट तुम्हारा है। जब वहां आयेंगें तुम्हारे नाम कर देंगें। पाँच लाख रुपये मैंने तुम्हारे एकाउंट में बच्चों के लिये ट्रांसफर कर दिया है। अब बंगलौर में जॉब छोड़ दिया है। अपने वकील से कहना, सभी शर्त मुझे मंजूर है।
संजय एक स्कूल में 15 हजार पर पढ़ाने लगे। वह और उदय के फार्मा कंपनी खोले है। जो लोगों को बनारस से लाकर सस्ती दवा उपलब्ध कराती है।
अभी एक वर्ष ही बीते है। संजय ने अपनी आधी जमीनें वापस ले ली है। उनको क्षेत्र के लोग बहुत सम्मान करते है। वह सबके सुख दुख में सम्मलित होते है।
सुबह संजय बाबू अपने माता पिता के साथ चाय पी रहे थे। उनकी माँ ने कहा, बेटा जब भी मैं मंदिर जाती हूँ। भगवान से प्राथना करती हूँ, सबको तुम्हारे जैसा बेटा दे।
संजय बोले, माँ मैं वह नहीं हूँ। जो पहले था। परिस्थितियों ने मुझे फिर से जन्म दिया है। अब इस जन्म दो मैं गवाना नहीं चाहता।
तभी उनके पिता बंशी बाबू बोले। बंगलोर से बहु का फोन आया था। उसे बहुत आत्मग्लानी है। वह आना चाहती है।
तुम कहो तो बुला लेते है।
संजय बोले, मैं अब ना बुला सकता हूँ । न ही रोक सकता हूँ। वह चाहे तो आयें , मुझे किसी के आने जाने से कोई अंतर नहीं पड़ता है।
#व्योमवार्ता
साभार Dr. Ravishankar Singh
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