सोमवार, 14 जनवरी 2019

व्योमवार्ता/ स्वामी विवेकानंद की जाति? : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, १४ जनवरी,२०१९ सोमवार

व्योमवार्ता/ स्वामी विवेकानंद की जाति? : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, १४ जनवरी,२०१९ सोमवार
आज एक मित्र ने जिज्ञासा की कि स्वामी विवेकानंद किस जाति से थे क्योंकि अभी दो दिन पहले अर्दली बाजार स्थित एलटी कालेज मे हुये एक समारोह मे कुछ ब्राह्मण साथियों ने स्वामी जी को ब्राह्मण बताते हुये एक महिला वक्ता की इस बात पर आलोचना की थी कि उसने स्वामी जी को कायस्थ बतलाया था।
यूँ तो स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवनकाल मे ही समस्त जाति बंधन से ऊपर उठ कर स्वयं को राष्ट्र व श्री रामकृष्ण परमहंस की सेवा व मिशन के प्रति समर्पित कर दिया था। परंतु स्वयं को सर्वदा से उत्कृष्ट मान रहे समाज के कुछेक लोग स्वामी जी को भी अपने दायरे मे ही बांधे रखना चाहते हैं। मैने अपने मित्र के जिज्ञासा समाधान हेतु उनके अमेरिका मे दिये गये साक्षात्कार का निम्न अंश प्रस्तुत किया तब जा कर उन्हे अपने मन के उत्तर को संतोष मिला।

स्वामी विवेकानन्द ने अपनी जाति की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है:

“ मैं उन महापुरुषों का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि अपने पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारकों को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमाने में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता शेष क्या रहेगा? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, इतिहासवेत्ता, दार्शनिक, लेखक और धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चन्द्र बसु) से भारतवर्ष को विभूषित किया है। स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं। हम केवल बाबू बनने के लिये नहीं, अपितु हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिये पैदा हुए हैं। ”
                                                                           —स्वामी विवेकानन्द
(बनारस, १४ जनवरी २०१९, सोमवार)
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