अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
बुधवार, 21 फ़रवरी 2018
आज का सवाल
क्या सभी शैक्षणिक, व्यवसायिक, रोजगारपरक प्रमाणपत्रों को आधार से जोड़ कर छद्म बेरोजगारी और अवसर के दुरूपयोग को रोका नही जा सकता?
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