हमरे देश के बुद्धिजीवीता की बलिहारी
कल एक खबर आई छोटी सी मगर महत्वपूर्ण। पर वह मीडिया चैनलो के कन्हैया प्रलाप और आजादी के अभिव्यक्ति मे कही दब गई। इस जरूरी सवाल के लिये कोई बरखा दत्त, कोई रवीश, कोई एनडीटीवी, आजतक, एबीवीपी आगे नही आया। उनके लिये यह महत्वपूर्ण नही कि देश के सम्मान व संप्रभुता पर ऑच कैसे उठी बल्कि उनके लिये यह महत्वपूर्ण रहा कि कैसे विदेशी मीडिया के सामने भारत को गरिया कर उसके न्याय व्यवस्था के चिथड़े उठा कर यहॉ के गरीबी व कथित असहिष्णुता का व्यर्थ प्रलाप फैलाया जा सके। एक आरोपी छात्र नेता ( वुड बी माननीय विधायक) के महिमामंडन मे उसके स्वागत के लिये अपने पत्रकारो तक को पलक पावड़े बिछाने वाली मीडिया से इस देश ने कभी यह नही पूछा कि क्या यह मीडिया प्रोटोकाल देश के लिये शहीद हुये नवजवान की नवविवाहिता पत्नी के लिये भी कभी देने की जरूरत समझी मीडिया ने? नहीं ना। क्योंकि उस रिपोर्टिग से भारत का स्याह पक्ष नही उजागर होगा और स्याह पक्ष नही उजागर होने पर मीडिया वर्ड, मीडिया इण्टरनेसनल , एमनेस्टी इण्टरनेसनल जैसे बड़े संगठन कोई भाव नही देगें। विदेसी दौरे बंद हो जायेगे, विदेशी शराबे व विदेशी उपहार नही मिलेगें। और तो और वह विदेशी मुलम्मा व विदेशी लाईफस्टाईल नही मिलेगी जिसमे कई कई पति पत्नियो को चुनने, रहने व साझा करने की व्यवस्था है।
बहरहाल बात कल के खबर की। कल जेएनयू प्रकरण मे छात्रो के साथ हुये अत्याचार व उत्पीड़न ( जैसा उपरलिखित मीडिया वालो ने विश्व को बताया) के आलोक मे भारत मे राजनीतिक व धार्मिक स्वतंत्रता की जॉच करने आ रही अमेरिकी टीम को भारत सरकार ने आने व इस तरह की जॉच की अनुमति नही दी। लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवी तो इसी बात से खुश हो के मनमयूर नृत्य करने लगे होगे कि उनका अपने देश को बेइज्जत करने का मकसद पूरा हुआ व उनकी पूछ एक बार फिर विदेशो मे बढ़ गई। उल्लेखनीय है कि हमारे देश के निजी मामले ( जहॉ सिर्फ विदेशी उपहार व भीख पर पलने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियो व विदेशी धन से चलने वाले सुपर मीडिया हाऊस को छोड़ कर) राजनीतिक व धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी को कोई शिकायत नही है उसकी जॉच करने उस अमेरिका से जॉच दल आ रहा था जहॉ राष्ट्रपति के उम्मीदवार ट्रंप खुलेआम मुस्लिमो को अमेरिका मे प्रतिबंधित करने की बात कर रहे है, जहॉ चार दिन पहले गुरूद्वारे पर हमला हुआ था। जहॉ पिछले दो सालो से अश्वेतो पर हमले मे २५०% बढ़ोत्तरी हुई है। हमारे स्वर्णिम इतिहास के हजारो साल पैदा हुआ व मात्र २५० साल पहले आजाद हुआ अमेरिका विश्व के महानतम व बृहत्तम लोकतंत्र भारत मे राजनीतिक स्वतंत्रता की जॉच करना चाहता है जहॉ मात्र ७० साल के अपने संविधान मे तीन मुस्लिम , एक सिख , एक महिला राष्ट्रपति बने। जहॉ प्रधानमंत्री के रूप मे लौहमहिला इंदिरा गॉधी चुनी गई।राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राजनीति,न्यायपालिका, प्रशासन, विग्यान, उद्योग, फिल्म, साहित्य, शिक्षा,खेल, धर्म,सामाजिकसेवा तक एक अन्तहीन पंक्ति है हमारे देश मे अल्पसंख्यको के भागीदारी व योगदान की।
वही अमेरिका भूल गया कि उसके लाख बुलावे पर हमारे भारत रत्न (बुद्धिजीवी नजरो मे सिर्फ एक मुसलमान) उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब अपने मॉ समान गंगा नदी के लिये अमेरिकी प्रस्ताव को ठुकरा दिये थे। हमारे (अल्पसंख्यक) वैग्यानिक होमी भाभा व कलाम साहब ने कम गुजारे मे ही अपने भारत मे रहना स्वीकार किया था। रतन टाटा व जेआरडी को हमेसा फक्र था कि वे हिन्दुस्तानी हैं।
पर यह बात हमारे कथित बुद्धिजीवियो व मीडिया पर्सनाल्टिज के समझ मे नही आती। वे तो यही सोच कर खुश होते है कि उनके देश की विश्वपटल पर बेईज्जती हो रही है और इसके लिये उनकी प्रशंसा की जा रही है।
सच कहें तो जब अपनी ही मुर्गी खराब हो तो पड़ोसी के मुर्गो को आप कब तक दोषी ठहरायेगें।
कल एक खबर आई छोटी सी मगर महत्वपूर्ण। पर वह मीडिया चैनलो के कन्हैया प्रलाप और आजादी के अभिव्यक्ति मे कही दब गई। इस जरूरी सवाल के लिये कोई बरखा दत्त, कोई रवीश, कोई एनडीटीवी, आजतक, एबीवीपी आगे नही आया। उनके लिये यह महत्वपूर्ण नही कि देश के सम्मान व संप्रभुता पर ऑच कैसे उठी बल्कि उनके लिये यह महत्वपूर्ण रहा कि कैसे विदेशी मीडिया के सामने भारत को गरिया कर उसके न्याय व्यवस्था के चिथड़े उठा कर यहॉ के गरीबी व कथित असहिष्णुता का व्यर्थ प्रलाप फैलाया जा सके। एक आरोपी छात्र नेता ( वुड बी माननीय विधायक) के महिमामंडन मे उसके स्वागत के लिये अपने पत्रकारो तक को पलक पावड़े बिछाने वाली मीडिया से इस देश ने कभी यह नही पूछा कि क्या यह मीडिया प्रोटोकाल देश के लिये शहीद हुये नवजवान की नवविवाहिता पत्नी के लिये भी कभी देने की जरूरत समझी मीडिया ने? नहीं ना। क्योंकि उस रिपोर्टिग से भारत का स्याह पक्ष नही उजागर होगा और स्याह पक्ष नही उजागर होने पर मीडिया वर्ड, मीडिया इण्टरनेसनल , एमनेस्टी इण्टरनेसनल जैसे बड़े संगठन कोई भाव नही देगें। विदेसी दौरे बंद हो जायेगे, विदेशी शराबे व विदेशी उपहार नही मिलेगें। और तो और वह विदेशी मुलम्मा व विदेशी लाईफस्टाईल नही मिलेगी जिसमे कई कई पति पत्नियो को चुनने, रहने व साझा करने की व्यवस्था है।
बहरहाल बात कल के खबर की। कल जेएनयू प्रकरण मे छात्रो के साथ हुये अत्याचार व उत्पीड़न ( जैसा उपरलिखित मीडिया वालो ने विश्व को बताया) के आलोक मे भारत मे राजनीतिक व धार्मिक स्वतंत्रता की जॉच करने आ रही अमेरिकी टीम को भारत सरकार ने आने व इस तरह की जॉच की अनुमति नही दी। लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवी तो इसी बात से खुश हो के मनमयूर नृत्य करने लगे होगे कि उनका अपने देश को बेइज्जत करने का मकसद पूरा हुआ व उनकी पूछ एक बार फिर विदेशो मे बढ़ गई। उल्लेखनीय है कि हमारे देश के निजी मामले ( जहॉ सिर्फ विदेशी उपहार व भीख पर पलने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियो व विदेशी धन से चलने वाले सुपर मीडिया हाऊस को छोड़ कर) राजनीतिक व धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी को कोई शिकायत नही है उसकी जॉच करने उस अमेरिका से जॉच दल आ रहा था जहॉ राष्ट्रपति के उम्मीदवार ट्रंप खुलेआम मुस्लिमो को अमेरिका मे प्रतिबंधित करने की बात कर रहे है, जहॉ चार दिन पहले गुरूद्वारे पर हमला हुआ था। जहॉ पिछले दो सालो से अश्वेतो पर हमले मे २५०% बढ़ोत्तरी हुई है। हमारे स्वर्णिम इतिहास के हजारो साल पैदा हुआ व मात्र २५० साल पहले आजाद हुआ अमेरिका विश्व के महानतम व बृहत्तम लोकतंत्र भारत मे राजनीतिक स्वतंत्रता की जॉच करना चाहता है जहॉ मात्र ७० साल के अपने संविधान मे तीन मुस्लिम , एक सिख , एक महिला राष्ट्रपति बने। जहॉ प्रधानमंत्री के रूप मे लौहमहिला इंदिरा गॉधी चुनी गई।राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राजनीति,न्यायपालिका, प्रशासन, विग्यान, उद्योग, फिल्म, साहित्य, शिक्षा,खेल, धर्म,सामाजिकसेवा तक एक अन्तहीन पंक्ति है हमारे देश मे अल्पसंख्यको के भागीदारी व योगदान की।
वही अमेरिका भूल गया कि उसके लाख बुलावे पर हमारे भारत रत्न (बुद्धिजीवी नजरो मे सिर्फ एक मुसलमान) उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब अपने मॉ समान गंगा नदी के लिये अमेरिकी प्रस्ताव को ठुकरा दिये थे। हमारे (अल्पसंख्यक) वैग्यानिक होमी भाभा व कलाम साहब ने कम गुजारे मे ही अपने भारत मे रहना स्वीकार किया था। रतन टाटा व जेआरडी को हमेसा फक्र था कि वे हिन्दुस्तानी हैं।
पर यह बात हमारे कथित बुद्धिजीवियो व मीडिया पर्सनाल्टिज के समझ मे नही आती। वे तो यही सोच कर खुश होते है कि उनके देश की विश्वपटल पर बेईज्जती हो रही है और इसके लिये उनकी प्रशंसा की जा रही है।
सच कहें तो जब अपनी ही मुर्गी खराब हो तो पड़ोसी के मुर्गो को आप कब तक दोषी ठहरायेगें।
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