गुरुवार, 8 जनवरी 2009

व्योमेश की कवितायें : परदेश में

आज फ़िर न्यूयार्क की बारिस भरी सुबह
मै ब्लू अंजिल बिल्डिंग के सोलहवें मेल की खिड़की पर बैठा
आँखे देख रही है चौडी कलि सडको पर पड़ती वर्षकी बुँदे
पर मन कही दूर , सैट समुंदर पार अपने भारत में
मै सोच रहा हूँ ऐसी रिमझिम बारिस हो रही होगी मेरे आँगन में
मेरे देश की मति पर
और महक रहा होंगा भारत मई का प्यार
सोंधी सोंधी महको में
छलक कर बह रहा होगा मई का दुलार
मगर मै इतने दूर परदेश में बैठा बस सोच रहा हूँ
हे मई मुझे बुला ले वापस अपने आचल में
मै फ़िर फ़िर खो जाना चाहता हूँ
तेरी ममता भरी गोंड mएन
जिसमे खेल कर इतना बड़ा हुआ हूँ मै
माँ मै आ रहा हूँ , मै आ रहा हूँ.

1 टिप्पणी:

Divya Narmada ने कहा…

दूर देश में आ रहा, तुम्हें याद यह देश.

जो बैठे इस देश में, पछता रहे विशेष.

पछता रहे विशेष विदेश न क्यों जा पाए.

अपनी माटी-देश उन्हें किंचित न भाए.

कहे 'सलिल' कविराय न कोई देश लेश में-

तुम्हें याद यह देश, आ रहा दूर देश में.


-divyanarmada.blogspot.com