गुरुवार, 8 जून 2023

#व्योमवार्ता; /#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं ; /#विश्व_पर्यावरण_दिवस पर

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं 
#विश्व_पर्यावरण_दिवस पर

मैनें पेड़ से फोन कर के पूछा कैसे हो, कहाँ रहते हो, आजकल दिखाई नहीं देते ?
पेड़ बोला मात्र चालिस साल पहले तक हम बहुत सारे नीम, पीपल, बड़, कीकर, शीशम, जांडी, आम, जामुन, कंदू, शहतूत व लेसुवे आदि आपके आसपास ही रहते थे।
याद करो तब तक आपके घरों में फर्नीचर के नाम पर खाट, पीढे व मूढ़े ही होते थे। खाट व पीढे के सिर्फ पावे हमारी लकड़ी से बनते थे। सेरू व बाही बाँस की ही होती थी, मूढ़े सरकंडे से बने होते थे।
फिर आप लोगों को पता नहीं क्या हुआ आपने हमें अखाड़ बाडे काटना शुरू कर दिया। हमारी लकड़ी से डबल बैड, सोफे, मेज, अलमारी व कुर्सी आदि बना कर अपने घरों में भर ली। आप स्कूलों में टाट बिछाकर पढ़ा करते थे फिर हमें काट कर बैंच बना डाले। नजर घुमाओ और देखो कोई तीस चालिस साल पुराणा पेड़ आसपास है के !!!
हम पेड़ आजकल आपके घर, दफ्तर व स्कूल कालेजों में ही हैं।
मैनें फिर पेड़ से पूछा कि आज तो विश्व पर्यावरण दिवस है चलो एक पेड़ मैं लगा देता हूँ।
पेड़ भड़क गया और कहा कि जन्मजात मुर्ख हो या पढ़ लिख कर हो गये, लगता है हमारी लाश से बने सोफे या डबल बैड पर बैठकर, ऐ•सी• चलाकर, सोशल मीडिया से प्रभावित हो कर फोन कर रहे हो। बाहर निकल कर देखो इस 48℃ के तापमान में हमारी वृद्धि कैसे होगी। 
अरे !! वो पश्चिमी जगत वाले अपने मौसम व मान्यताओं के हिसाब से दिन निर्धारित करते हैं और तुम अक्ल से अंधे भारतीय आँख मिंच कर उन्हें मानने लगते हो।😡😡
पेड़ एक नहीं अनेक लगाना पर मानसून आने पर। जेठ के महीने में पेड़ लगायेगा खाद-पानी तेरा बाप देगा। अषाढ़ से फागुन तक जितने मर्जी लगा लेना😠😠
फिर पेड़ गाना गाने लगा "तेरी दुनिया से दूर, चले हो के मजबूर, हमें याद रखना"
इतना कह कर पेड़ ने फोन रख दिया।
साभार

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